नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को नालंदा यूनिवर्सिटी के बोर्ड में जगह नहीं मिली। वह यूनिवर्सिटी के चांसलर, गवर्निंग बोर्ड के मेंबर रह चुके हैं। गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों में सेन ने मोदी सरकार के खिलाफ काफी कुछ कहा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना के बाद फरवरी 2015 में चांसलर के पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद वह गवर्निंग बॉडी के सदस्य रहे। उन्हें 2007 में मनमोहन सरकार द्वारा नालंदा यूनिवर्सिटी का पुनः प्रवर्तन करने के बाद नालंदा मेंटर ग्रुप (NMG) का सदस्य बनाया गया था। सेन के अलावा हॉवर्ड के पूर्व प्रोफेसर और टीएमसी सांसद सुगता बोस और यूके के अर्थशास्त्री मेघनाथ देसाई को भी नए बोर्ड में जगह नहीं मिली है। वे दोनों भी NMG के सदस्य थे। इंडियन एक्सप्रेस को जानकारी मिली है कि साथ ही साथ नए बोर्ड का भी गठन हो गया है। नए बोर्ड में चांसलर, वाइस चांसलर और पांच सदस्य होंगे। ये पांच सदस्य भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, लाउस पीडीआर और थाईलैंड के होंगे। बोर्ड को तीन साल तक अधिकतम वित्त सहायता भी प्रदान की जाती है।

सूत्रों से पता चला है कि भारत की तरफ से पूर्व नौकरशाह एन के सिंह को चुना गया है। वह भाजपा सदस्य और बिहार से राज्यसभा सांसद भी हैं। उनके अलावा केंद्र सरकार द्वारा तीन और नामों को दिया गया है। उनमें प्रोफेसर अरविंद शर्मा (धार्मिक अध्ययन संकाय, मैकगिल विश्वविद्यालय, कनाडा), प्रोफेसर लोकश चंद्रा (अध्यक्ष, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद) और डॉ अरविंद पनगढिया (वाइस चेयरमैन, नीति आयोग) के नाम शामिल हैं।

जानकारी मिली है कि प्रणब मुर्खजी ने नालंदा यूनिवर्सिटी के विजिटर की क्षमता से गर्वनिंग बॉडी के निर्माण की इजाजत दी थी। गौरतलब है कि नालंदा विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2013 को अगस्त 2013 में राज्यसभा के सामने लाया गया था। जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 के कुछ प्रावधानों में संशोधन करने को कहा गया था। लेकिन फिर लोकसभा चुनाव की वजह से उसपर काम नहीं हो पाया था।