यूपी में जज की तरफ से गलत कानून के तहत फैसला सुनाने का मामला सामने आया है। संबंधित मामले में हाईकोर्ट की तरफ से जवाब मांगे जाने पर जिला जज मनोज कुमार शुक्ला ने कहा कि यह फैसला मेरे से पहले वाले जज ने सुनाया है। ऐसे में मुझे बुलाने का क्या मतलब है।
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक पीठ ने एक मुस्लिम दंपति के मामले की सुनवाई कर रही थी। इससे पहले निचली अदालत ने मुस्लिम कपल के मामले का फैसला हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कर दिया था। इतना ही नहीं, मामले में पति को अपनी पत्नी को निश्चित गुजारा भत्ता राशि देना भी तय कर दिया था।
मामले की सुनवाई करते हुए जब हाईकोर्ट ने जब फैमिली कोर्ट के जज मनोज कुमार शुक्ला को अदालत में बुलाया और पूछा कि इस तरह की गलती कैसे हो सकती है। इस पर जज शुक्ला ने कहा कि उनके पूर्ववर्ती जज ने यह आदेश पारित किया था। इतनी ही नहीं जिला जज शुक्ला ने खुद को अदालत में बुलाए जाने को लेकर हाईकोर्ट के ज्ञान पर ही सवाल खड़े कर दिए।
सोमवार को पारित अपने आदेश में हाईकोर्ट ने जज के व्यवहार को ‘बुरा आचरण’ बताया। अदालत ने यह भी कहा कि जिला जज से इस तरह के व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जाती है। जस्टिस अनिल कुमार और जस्टिस सौरभ लवानिया ने कहा कि फैमिली कोर्ट के जज ने कहा कि उन्हें अनावश्यक रूप से पीठ के समक्ष बुलाया गया है।
मालूम हो कि हाईकोर्ट ने इस साल अक्टूबर में इस फैसले पर रोक लगा दी थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि न्यायिक अधिकारी मनोज कुमार शुक्ला की तरफ से कोर्ट रूम के भीतर जिस तरह का माहौल बनाया गया उससे न्यायपालिका की छवि धूमिल हुई है जो कि आवांछनीय है। इससे कोर्ट का भी अपमान होता होता है साथ ही किसी न्यायिक अधिकारी से इस तरह के व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जाती है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि जज शुक्ला ने कोर्ट रूम के भीतर यह भी तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट में अधिक भीड़ होने के कारण न्यायिक अधिकारी की तरफ से इस तरह की गलतियां हो जाती हैं। जज शुक्ला ने कहा कि इस तरह की गलतियां होने के पीछे एक वजह यह भी है कि लेखन/आदेश के लिए केवल एक स्टेनो दिया गया है।