Allahabad High Court Decision: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक पति की इस दलील को मानने से इनकार कर दिया कि उसकी पत्नी द्वारा पर्दा न करने पर वह मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक पाने का हकदार हो जाएगा। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की बेंच ने फैसला सुनाया कि पत्नी का अपनी मर्जी से घर से बाहर निकलना, पर्दा ना करना और लोगों से दोस्ती रखना पति के खिलाफ क्रूरता नहीं माना जा सकता है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अपीलकर्ता-पति का मामला यह था कि दोनों पक्षों ने फरवरी 1990 में शादी की थी और दिसंबर 1995 में दोनों पक्षों के एक लड़के का जन्म हुआ था। दोनों पक्षों ने कुल मिलाकर केवल 8 महीने ही एक साथ समय बिताया और आखिरी बार दिसंबर 2001 में एक साथ रहे। दोनों पक्षों ने माना कि उनके साथ रहने के बाद से 23 साल बीत चुके हैं और अब वे अलग-अलग रहते हैं।

पति ने क्या लगाए थे आरोप

पति का आरोप था कि उसकी पत्नी किसी दूसरे शख्स के साथ संबंध रखती थी और वह बाजार और अन्य जगहों पर अकेले जाती थी और पर्दा नहीं करती थी। उसने यह भी कहा कि उसकी पत्नी उसकी खराब आर्थिक स्थिति के कारण उसे गालियां देती थी। उसने दावा किया कि इस तरह के कृत्य और बाकी कृत्य उसके खिलाफ क्रूरता का मामला है।

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क्रूरता पर कोर्ट ने साफ किया पक्ष

बेंच ने कहा कि पत्नी अगर अपने से काम करती है। किसी व्यक्ति के साथ अवैध या अनैतिक संबंध बनाए बिना उसके साथ या अकेले यात्रा करती है या फिर, समाज में अन्य लोगों से मिलती-जुलती है, इन तथ्यों के आधार पर इस तरह के कार्यों को क्रूरता नहीं कहा जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि दोनों की शादी परिवार ने की थी और एक दूसरे की आर्थिक स्थिति जानते थे और अलग होने से पहले कुछ दिन तक वह साथ भी रहे। कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष अच्छी तरह पढ़ें लिखे हैं। अपीलकर्ता पति एक काबिल इंजीनियर है और प्रतिवादी पत्नी एक सरकारी टीचर है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने लगाई फटकार