अल फलाह यूनिवर्सिटी के खिलाफ चल रही जांच के मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है। पता चला है कि इस यूनिवर्सिटी के चेयरमैन और फाउंडर जवाद अहमद सिद्दीकी ने पांच लोगों के नाम पर फर्जी दस्तावेज बनाकर दिल्ली के मदनपुर खादर इलाके में धोखाधड़ी से जमीन हासिल की थी।

जब यह जमीन हासिल की गई थी उससे पहले ही ये पांचों लोग मर चुके थे और इस जमीन पर उनका मालिकाना हक था। जांच एजेंसी ईडी इस मामले में जांच कर रही है।

दिल्ली में हुए बम धमाके के बाद से ही अल फलाह यूनिवर्सिटी लगातार जांच के घेरे में है क्योंकि इसमें काम करने वाले तीन डॉक्टर्स की पहचान बम धमाके में संदिग्ध के रूप में हुई है।

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इसके बाद ईडी ने यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जवाद अहमद सिद्दीकी को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था और केंद्र सरकार ने यूनिवर्सिटी के सभी रिकॉर्ड्स की फॉरेंसिक ऑडिट कराने को कहा था।

फर्जी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बनाई गईं

जांच के दौरान ईडी ने सभी वित्तीय मामलों की जांच की और उसे पता चला कि जमीन के मालिकों के नाम से फर्जी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (जीपीए) बनाई गईं और बाद में इसे जवाद अहमद सिद्दीकी के तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन ने हासिल कर लिया।

ईडी को पता चला है कि यह जीपीए झूठी हैं। ईडी के एक सूत्र के मुताबिक, ‘मरे हुए लोगों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान फर्जी हैं। जमीन फर्जी जीपीए के आधार पर ट्रांसफर की गई थी और इसका फायदा तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन को मिला जिसने इस जमीन को फर्जी जीपीए के आधार पर खरीदा था।’

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तमाम डॉक्यूमेंट्स की जांच करने पर यह भी पता चला है कि विनोद कुमार नाम के शख्स के पास कम से कम पांच जमीन मालिकों की पावर ऑफ अटॉर्नी थी और ये सभी 7 जनवरी 2004 को पावर ऑफ अटॉर्नी के रजिस्टर होने तक मर चुके थे।

सूत्र के मुताबिक, ‘ईडी को पता चला है कि एक जमीन मालिक नाथू की मौत 1 जनवरी, 1972 को हुई थी, उसके बाद हरबंस सिंह की मौत 27 अप्रैल, 1991 को हुई, हरकेश की मौत 12 जून, 1993 को हुई, शिव दयाल की मौत 22 जनवरी, 1998 को हुई और जय राम की मौत 15 अक्टूबर, 1998 को हुई।’

ईडी ने दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के द्वारा दर्ज दो एफआईआर के आधार पर अल फलाह ग्रुप के खिलाफ जांच शुरू की थी।

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