अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और चार पीठ के शंकराचार्यों ने फर्जी शंकराचार्यों के खिलाफ अब कमर कस ली है। इलाहबाद में 2019 और हरिद्वार में 2021 में लगने वाले कुंभ मेले में फर्जी शंकराचार्यों को अखाड़ा परिषद घुसने नहीं देगी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की उच्चाधिकारप्राप्त कमेटी की महत्त्वपूर्ण बैठक में फर्जी शंकराचार्यों के खिलाफ पूरे देश में अभियान छेड़ने का फैसला किया गया है। परिषद की इस बैठक में सभी तेरह अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने पत्रकारों को बताया कि इस समय देश में सौ से ज्यादा फर्जी शंकराचार्य बने हुए हैं, जिनसे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा को ठेस पहुंच रही है और साधु-समाज का सम्मान भी गिर रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों कुछ साधु-संतों ने मिलकर फर्जीवाड़े से हरिद्वार में भूमानिकेतन के स्वामी अच्युतानंद तीर्थ महाराज को द्वारिका शारदा पीठ का शंकराचार्य बना दिया था। इस पर बहुत हो-हल्ला मचा था।
अखाड़ा परिषद ने स्वामी अच्युतानंद तीर्थ द्वारा आयोजित समारोह में जाने वाले साधु-संतों को कारण बताओ नोटिस भेजा है। अखाड़ा परिषद ने स्वामी अच्युतानंद तीर्थ के कार्यक्रम में साधु-संतों के जाने पर रोक लगा रखी थी। इस रोक के बावजूद सुमेरू पीठ के शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने स्वामी अच्युतानंद तीर्थ को द्वारिका शारदापीठ का फर्जी शंकराचार्य नामित करने पर नोटिस भेजा है। अखाड़ा परिषद द्वारा स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती को भेजे गए नोटिस में उनसे माफी मांगने को कहा गया है। जिससे साधु-संतों की राजनीति गरमा गई है। सुमेरू पीठाधीश्वर नरेंद्रानंद सरस्वती ने अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों को आढेÞ हाथों लेते हुए कहा कि परिषद को उन्हें नोटिस भेजने का कोई अधिकार नहीं है। अखाड़ा परिषद खुद ही साधु समाज की परंपराओं को मिट्टी में मिलने में लगी है और आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपराओं को नष्ट करने में तुली हुई है। उन्होंने कहा कि अखाड़ा परिषद शराब और भू-माफियाओं के दबाव में एक शराब माफिया को एक अखाडेÞ का महामंडलेश्वर बना देती है, जिसमें अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी शराब माफिया के पट्टाभिषेक समारोह में एक अन्य अखाडेÞ के महामंडलेश्वर के साथ भाग लेते हैं। एक अन्य अखाड़ा मुंबई में मॉडलिंग का काम करने वाली एक शादीशुदा और बच्चों वाली महिला को महामंडलेश्वर बना देता है। तब अखाड़ा परिषद को संत समाज की गरिमा का ध्यान नहीं रहता है।
