अजेमर में सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशज एवं वंशानुगत सज्जादा नशीन दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से आग्रह किया है कि रोहिंग्या मुसलामनों को तब तक उनके देश वापस न भेजा जाए जब तक म्यांमार की सरकार उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले ले। खान ने कल जारी एक बयान में कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि भारत म्यांमार में हो रहे रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार पर अपना विरोध दर्ज कराए और इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में भी उठाए।
दीवान ने कहा ‘‘एशिया में भारत एक बड़ी शक्ति माना जाता है। इसलिए हमारा फर्ज है कि अगर हमारा पड़ोसी मुल्क मानवता को शर्मसार करने वाला काम करता है तो हम उस पर विरोध दर्ज कराएं।’’ उन्होंने पत्र में आग्रह किया कि भारत सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को इस नाजुक समय में तब तक वापस न भेजे जब तक म्यांमार की सरकार उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी न ले, क्योंकि दुनिया में भारत की एक अलग पहचान है।
उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए हमले की कड़ी निंदा की है। उन्होंने उन पर हुए हमले को ‘आतंकियों की कायराना हरकत’ की तरह ही करार दिया है। उन्होंने कहा कि वह इस मामले पर विदेश मंत्री से मुलाकात करेंगे और उनसे रोहिंग्या मुसलमानों की आवाज को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की मांग करेंगे। मालूम हो कि दीवान की यह टिप्पणी केंद्र सरकार के उस प्रयास के बाद आई है जिसके तहत सोमवार को केन्द्र सरकार ने न्यायालय से रोहिंग्या मुद्दे पर हस्तक्षेप न करने का आग्रह करते हुए कहा कि उन्हें प्रत्यर्पित करने का निर्णय सरकार का नीतिगत फैसला है।
केंद्र ने साथ ही यह भी कहा कि उनमें से कुछ का संबंध पाकिस्तानी आतंकवादी गुटों से है। शीर्ष न्यायालय रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि यह देशहित में लिया गया एक ‘आवश्यक कार्यकारी’ फैसला है। केंद्र ने साथ ही कहा कि म्यांमार से रोहिंग्या शरणार्थियों का आना 2012 में शुरू हुआ था। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने मामले की अगली सुनवाई तीन अक्टूबर को करने का निर्देश दिया है।