नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने विमानन कंपनियों का दो महीने की अवधि का विशेष लेखा परीक्षण (आडिट) शुरू किया है। औचक निरीक्षण के दौरान विमानों के प्रस्थान से पहले अपर्याप्त और अयोग्य इंजीनियरिंग कर्मियों द्वारा उन्हें प्रमाणित करने की बात सामने आने पर डीजीसीए ने यह कदम उठाया है। भारतीय विमानन कंपनियों के विमानों में बीते 45 दिन में तकनीकी गड़बड़ी की कई घटनाएं हुई हैं।
डीजीसीए के 18 जुलाई की तारीख वाले आदेश में कहा गया है कि उस अभियान के दौरान हैंगर और स्टोर, विमानन कंपनी के कर्मियों द्वारा उपयोग किए जा रहे उपकरणों, विमानन कंपनियों की गुणवत्ता, अतिरिक्त पुर्जों की कमी के कारण खड़े विमान और विमानन कंपनियों के रखरखाव नियंत्रण केंद्र पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। आदेश में कहा गया है कि विशेष लेखा परीक्षण के दौरान ‘पर्याप्त, योग्य और अनुभवी’ श्रम बल की उपलब्धता, ड्यूटी की समय सीमा, सभी प्रकार के विमानों के लिए वर्तमान रखरखाव आंकड़ों की उपलब्धता आदि पर भी गौर किया जाएगा।
यह विशेष लेखा परीक्षण 19 जुलाई से शुरू किया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विमानन कंपनियां ‘तय मानकों’ का पालन कर रही हैं। यह लेखा परीक्षण दो महीने में पूरा हो जाएगा। फौरी तौर पर डीजीसीए ने अपनी जांच में कुछ वजहों का पता लगाया है। इनमें यह बात प्रमुखता से सामने आई है कि किसी खराबी का पता चलने पर उसकी वजह की सही पहचान नहीं हो पाती। दूसरा यह कि एमईएल (न्यूनतम उपकरण सूची) जारी किए जाने की परिपाटी बढ़ी है।
एमईएल जारी होने का मतलब है किसी वायुयान को खराब उपकरणों के साथ उसकी मरम्मत हो जाने तक एक निश्चित अवधि के लिए उड़ने की अनुमति देना। तीसरे, कम अंतराल पर कई तयशुदा उड़ानों पर ध्यान देने के लिए जरूरी प्रमाणित स्टाफ की अनुपलब्धता। इसके समाधान के लिए डीजीसीए ने आदेश दिया है कि अब बेस और ट्रांजिट स्टेशंस पर सभी हवाई जहाजों को एएमई कैटेगरी बी1/बी2 लाइसेंस धारक प्रमाणित स्टाफ ही जाने की अनुमति देगा।
डीजीसीए के पूर्व प्रमुख भारत भूषण कहते हैं, लगातार तकनीकी खामियों का कारण जानना जरूरी है। यह काम डीजीसीए ही कर सकता है, उसके पास पूरे संसाधन हैं। जानकारों का मानना है कि कोरोना संक्रमण के कारण दो सालों तक हवाई जहाजों के खड़े रहने के कारण संभव है कि कुछ गड़बड़ियां आ गई हों।
हालांकि, भारत भूषण कहते हैं कि अगर किसी विमान को उड़ने की इजाजत दी गई है, तो इसका मतलब है कि वो उड़ने के लिए फिट है। अगर विमान में कुछ भी गड़बड़ी है, तो वो नहीं उड़ सकता। हम 99 फीसद नहीं, 100 फीसद तक सटीक होने पर ही, विमानों को उड़ने की इजाजत दे सकते हैं। सुरक्षा की जिम्मेदारी एअरलाइन कंपनियों और डीजीसीए दोनों की है, लेकिन जानकार मानते हैं कि डीजीसीए अगर कड़ाई से नियमों का पालन और विमानों की टेस्टिंग करे, तो हादसों में कमी आ सकती है।
कंपनियों की आर्थिक स्थिति
तकनीकी खामियों को लेकर बयान में स्पाइस जेट के मालिक अजय सिंह ने कहा था कि विमान में इस्तेमाल होने वाले तेल की कीमत साल भर के दौरान 120 फीसद बढ़ गई है जिसका भार विमान कंपनियों के लिए उठा पाना बहुत मुश्किल है। उनके मुताबिक, विमान में प्रयोग किए जानेवाले तेल, जिसे तकनीकी भाषा में एटीएफ या एविएशन टर्बाइन फ्यूल कहते हैं, की कीमत भारत में दुनिया भर में सबसे अधिक है। उड्डययन विशेष मोहन रंगनाथन के मुताबिक, जब एअरलाइन के पास नकदी की कमी होती है तो वो अक्सर एक विमान के पुर्जे का इस्तेमाल दूसरे विमान में करते हैं। कई बार पायलट को भी कहा जाता है कि वे गड़बड़ियों के बारे में न बताएं, उन्हें नौकरी खोने का डर होता है।
