विमान के इंजन बनाने वाली कंपनी रोल्स-रायस ने हाइड्रोजन र्इंधन से विमान उड़ाने का परीक्षण शुरू कर दिया है। रोल्स-रायस ने विमानन कंपनी ईजी जेट के साथ मिलकर परीक्षण शुरू किए हैं, जो दुनिया में विमानन उद्योग की दिशा और दशा बदल सकते हैं। दक्षिणी इंग्लैंड के सेलिसबरी में एक छोटे विमान को एई2100 इंजन के साथ उड़ाया जा रहा है। आमतौर पर एई2100 इंजन को ही छोटे क्षेत्रीय विमानों में प्रयोग किया जाता है। इस बार फर्क र्इंधन का है। अब रोल्स-रायस और ईजी जेट परीक्षण कर रहे हैं कि इसी इंजन को हाइड्रोजन से चलाया जा सकता है या नहीं।

सितंबर में कंपनी ने इस बात का एलान कर दिया था कि ये परीक्षण शुरू होने वाले हैं। तब ट्वीट करके उसने बताया था कि एई2100 को इन परीक्षणों में प्रयोग किया जाएगा। रोल्स-रायस ने ट्विटर पर लिखा था, ‘इस एई2100 इंजन को देखिए, जिसे हम पहले हाइड्रोडन ग्राउंड टेस्ट के लिए प्रयोग करेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगले कदम चुनौतीपूर्ण होंगे। हालांकि, इस परीक्षण के नतीजे हमारी उस महत्त्वाकांक्षा को पूरी करेंगे, जो इस तकनीक को हवा में ले जाना चाहती है।’

यह पहली बार है जब किसी आधुनिक विमान को हाइड्रोजन र्इंधन से चलाने की कोशिश की जा रही है। इस वक्त सेलिसबरी में जो परीक्षण हो रहे हैं, उनका मकसद बस यह दिखाना है कि जेट इंजन को पारंपरिक विमान र्इंधन के बजाय हाइड्रोजन से भी चलाया जा सकता है। परीक्षण कामयाब रहते हैं तो अगला कदम इस र्इंधन को पारंपरिक र्इंधन की जगह लेने के पूरी तरह तैयार करना होगा।

हाइड्रोजन को कार्बन उत्सर्जन के लिहाज से ज्यादा सुरक्षित र्इंधन माना जाता है। विमानों में जेट र्इंधन इस्तेमाल होता है। यह केरोसीन से बनने वाला परिष्कृत उत्पाद होता है जिसका कार्बन उत्सर्जन किसी भी जीवाश्म र्इंधन जैसा होता है। लेकिन विमानों से होने वाले उत्सर्जन को कारों या अन्य वाहनों के उत्सर्जन से ज्यादा खतरनाक माना जाता है क्योंकि यह उत्सर्जन वातावरण में काफी ऊंचाई पर होता है।

संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण पर काम करने वाली समिति इंटरगवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) ने 1999 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें विस्तार से बताया गया था कि विमानन उद्योग जलवायु परिवर्तन पर कितना असर डाल रहा है। उस रिपोर्ट में बताया गया कि विमान ऐसी गैसें और पार्टिकल वातावरण में उत्सर्जित करते हैं, जो ग्रीन हाउस गैसों की सघनता बढ़ा देते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक विमानों का जलवायु परिवर्तन में 3.5 फीसद का योगदान है।

रोल्स-रायस में एअरोस्पेस टेक्नोलाजी के प्रमुख ऐलन न्यूबी के मुताबिक, हम हाइड्रोजन की तरफ इसलिए देख रहे हैं ताकि पूर्ण शून्यता (नेट जीरो) का लक्ष्य हासिल किया जा सके। आमतौर इस्तेमाल होने वाला केरोसीन एक हाइड्रोकार्बन है और जलने पर कार्बन डाईआक्साइड पैदा करता है। हाईड्रोजन में कार्बन नहीं होता और इसके जलने पर कार्बन डाईआक्साइड पैदा नहीं होती। इससे पहले बैट्री और सौर ऊर्जा को लेकर भी कई प्रयोग हो चुके हैं।

हालांकि, विमान की विशालता को देखते हुए उसके लिए अत्यधिक ऊर्जा की जरूरतों ने ऐसे विकल्पों को थोड़ा कमजोर कर दिया है। प्रति किलोग्राम ऊर्जा के मामले में हाईड्रोजन सोलर या बैट्री से कहीं ज्यादा ताकतवर है। हाईड्रोजन से विमान उड़ाने की तकनीक अभी शुरुआती दौर में है। फिलहाल एई2100 के साथ जो प्रयोग हो रहे हैं, वे बस इतना दिखा पाएंगे कि ऐसा करना संभव है। लेकिन, विशालकाय विमानों को उड़ाने के लिए ऐसे इंजन बनाने होंगे जो हाईड्रोजन से चल सकेंगे। साथ ही विमानों के डिजाइन में भी बदलाव करने होंगे।

द्रव रूप में हाईड्रोजन केरोसीन से करीब चार गुना ज्यादा जगह लेती है। यानी अब के मुकाबले विमानों का फ्यूल टैंक चार गुना ज्यादा बड़ा करना होगा। पर ऐसा करते ही विमान भारी हो जाएंगे और उनकी उड़ने की क्षमता प्रभावित होगी। लिहाजा, वैज्ञानिकों को कोई जुगत निकालनी होगी। इसके अलावा हाईड्रोजन को द्रव रूप में रखना भी अपने आप में एक चुनौती है। इसे द्रव बनाने के लिए -253 डिग्री सेल्सियस पर ठंडा करना पड़ता है। विमानों में उसे लगातार द्रव रूप में बनाए रखना आसान नहीं होगा।