अब वडोदरा में सी-295 सैन्य परिवहन विमान की विनिर्माण केंद्र के निर्माण की तैयारियां शुरू की गई हैं। जोर पश्चिमी सीमा पर वायु रक्षा पंक्ति को मजबूत करने पर है। डीसा तो पाकिस्तान सीमा से मात्र 130 किलोमीटर दूर है। तैयारी इस तरह की हो रही है कि जरूरत पड़ने पर भारतीय लड़ाकू विमान किसी भी तरह का हमला कर सकें। इसे डीसा के नानी गांव में बनाया जाएगा। इसे बनाने में करीब 935 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। यह सैन्य हवाई अड्डा 4518 एकड़ जमीन में फैला हुआ होगा। यह वायुसेना का 52वां स्टेशन होगा।

क्या होगी डीसा की दिशा

यह सैन्य अड्डा देश की सुरक्षा और इलाके के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सैन्य अड्डे को लेकर साफ कहा है कि पश्चिमी सीमा पर किसी भी तरह के दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देना और आसान हो जाएगा, क्योंकि यहां वायुसेना की ताकतवर टीम तैनात होगी। इससे रक्षा मामलों में फायदा होगा, कई अन्य फायदे भी होंगे। डीसा एअरफील्ड के बनने कच्छ और दक्षिणी राजस्थान के इलाकों में स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर रोजगार के अवसर बढ़ जाएंगे। उड़ान योजना के तहत स्थानीय उड़ान सेवाएं भी शुरू हो सकेंगी।

यह एअरफील्ड कांडला पोर्ट और जामनगर रिफायनरी से पूर्व की ओर स्थित है। इस केंद्र को अहमदाबाद और वडोदरा जैसे कास आर्थिक केंद्रों के रक्षा कवच के रूप में देखा जा रहा है। इस केंद्र को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बचाव अभियानों के प्रमुख स्थल के तौर पर भी विकसित किया जा रहा है। इस एअरफील्ड पर जो रनवे बनने वाला है, उसपर बोइंग सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे बड़े विमान भी उतर सकेंगे।

रणनीतिक समन्वय केंद्र

डीसा एअरबेस को वायुसेना के दक्षिण-पश्चिम कमांड के रणनीतिक एअरबेस के तौर पर विकसित किया जा रहा है। यहां से गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र – तीनों राज्यों की सुरक्षा की जा सकेगी। रक्षा जानकारों के मुताबिक, इसके बनने से भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की क्षमता और रेंज काफी ज्यादा हो जाएगी। इसके बनने से भारतीय वायुसेना के अन्य पड़ोसी बेस को भी फायदा होगा।

गुजरात में मौजूद भुज और नलिया, राजस्थान में मौजूद जोधपुर, जयपुर और बाड़मेर- सभी केंद्र आपस में रणनीतिक समन्वय कायम कर सकेंगे। फिलहाल डीसा एअरफील्ड पर एक रनवे है। यह करीब 1000 मीटर लंबा है। इसपर अभी नागरिक और निजी विमान उतारे जाते हैं। या फिर हेलिकाप्टर उतारे जाते हैं। इस जगह को विकसित करने के पहले चरण में इस एअरबेस पर रनवे, टैक्सीवे और एअरक्राफ्ट हैंगर्स बनाए जाएंगे। दूसरे चरण में अन्य तकनीकी ढांचे बनाए जाएंगे।

वडोदरा की इकाई

वडोदरा में सी-295 सैन्य परिवहन विमान की विनिर्माण परियोजना को लेकर टाटा समूह ने यूरोप की कंपनी एअरबस के साथ पिछले साल सितंबर में 21,935 करोड़ रुपए का समझौता किया। यहां 40 सी-295 परिवहन विमान का विनिर्माण होना है। समझौते के मुताबिक, उड़ान के लिए तैयार 16 विमानों को सितंबर, 2023 से लेकर अगस्त, 2025 के बीच भारतीय वायुसेना को सौंप दिया जाएगा।

पिछले साल सितंबर में भारत ने प्रमुख विमान विनिर्माता कंपनी एअरबस डिफेंस एंड स्पेस के साथ समझौता किया था, जिसके तहत वायुसेना के पुराने पड़ चुके परिवहन विमान एवरो-748 की जगह लेने के लिए एयरबस से 56 सी-295 विमानों की खरीद का प्रावधान था। एवरो विमानों को 1960 के दशक में सेवा में शामिल किया गया था। इस समझौते के तहत एअरबस स्पेन के सेविले स्थित अपनी असेंबली इकाई से 16 विमानों को पूरी तरह तैयार स्थिति में चार साल के भीतर भारत को सौंपेगी। बाकी 40 विमानों को भारत में ही टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) के सहयोग से बनाया जाएगा।

वहीं, भारत में स्थानीय स्तर पर बनने वाला पहला सी-295 विमान वडोदरा विनिर्माण संयंत्र में सितंबर, 2026 तक तैयार हो जाएगा। बाकी 39 विमानों को अगस्त, 2031 तक बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया है।

भविष्य की योजना

भारत को अगले 15 वर्षों में 2,000 से अधिक लड़ाकू विमानों की जरूरत होगी। भविष्य में दूसरे देशों को निर्यात के लिए आर्डर लेने की योजना है। भारत सरकार का लक्ष्य 2025 तक अपने रक्षा निर्माण को 25 अरब अमेरिकी डालर से अधिक करना है। रक्षा निर्यात भी पांच अरब अमेरिकी डालर से अधिक हो जाएगा। इस संयंत्र में बनने वाले मध्यम दर्जे के परिवहन विमानों की आपूर्ति भारतीय वायुसेना को की जाएगी।

इसके अलावा विदेशी बाजारों को भी ये विमान भेजे जाएंगे। भारतीय वायु सेना दुनिया भर में 35वां सी-295 आपरेटर बन जाएगा। अब तक, कंपनी को दुनिया में 285 आर्डर मिल चुके हैं, जिनमें से 200 से अधिक विमानों की आपूर्ति की जा चुकी है। कुल 34 देशों के 38 आपरेटर की तरफ से ये आर्डर आए थे। वर्ष 2021 में, सी-295 विमानों ने पांच लाख से अधिक उड़ान घंटे दर्ज किए।

एअरबस का यह परिवहन विमान पहली बार यूरोप से बाहर किसी देश में बनाया जाएगा। भारतीय वायुसेना के लिए निर्धारित 56 विमानों की आपूर्ति करने के बाद एअरबस को इस संयंत्र में तैयार विमानों को दूसरे देशों के असैन्य विमान परिचालकों को भी बेचने की इजाजत होगी। हालांकि, दूसरे देशों में इन विमानों की मंजूरी के पहले एयरबस को भारत सरकार से मंजूरी लेनी होगी।

क्या कहते हैं जानकार

छोटी या आधी-अधूरी हवाई पट्टियों से परिचालन की प्रमाणित क्षमता के साथ, सी-295 का इस्तेमाल 71 सैनिकों या 50 पैराट्रूपर्स के सामरिक परिवहन के लिए और उन स्थानों पर साजो सामान पहुंचाने के अभियान के लिए किया जाता है जो वर्तमान भारी विमानों के लिए सुलभ नहीं हैं।
ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) वी महालिंगम ,रक्षा विशेषज्ञ

डीसा का सैन्य हवाई अड्डा हमलावर नहीं बल्कि रक्षात्मक अड्डा होगा। डीसा के निर्माण का बड़ा कारण जामनगर की रिलायंस तेल रिफाइनरी की सुरक्षा है। दो साल पहले लद्दाख में चीन से टकराव के बाद भारत बड़े पैमाने पर अपनी वायु सेना को आधुनिक बनाने में लगा हुआ है।
मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एसबी अस्थाना, रक्षा विशेषज्ञ