मोबाइल और इंटरनेट का बढ़ता इस्तेमाल जहां लोगों को सहूलियत दे रहा है वहीं इसके कारण लोगों में मानसिक विकार, अनिंद्रा व बेचैनी भी बढ़ रही है। इंटरनेट एडिक्शन के कारण लोगों का लोगों से आत्मीय रिश्ता कमजोर हो रहा है, जो समाज को और बीमार बना रहा है। ये बातें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मानसिक रोग विभाग के डॉक्टरों ने कहीं।  हाल ही में एम्स में एक खास ओपीडी शुरू किया गया है, जिसमें इंटरनेट की लत या मोबाइल के प्रयोग के कारण बीमार हो रहे लोगों का इलाज किया जा रहा है। इनमें सबसे ज्यादा युवा हैं। विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि मानसिक स्वास्थ्य का सामाजिक परिवेश से गहरा रिश्ता है। मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ राकेश चड्ढा ने बताया कि 21वीं सदी के तकनीकी विकास ने मानव जीवन को आसान तो किया है, लेकिन इसके परोक्ष प्रभाव का आकलन करने से पता चलता है इसके काफी नुकसान भी हैं जो धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं।

मसलन मोबाइल व इंटरनेट के बढ़ते चलन ने लोगों क ी एकाग्रता, गहरी नींद, सुकून व आत्मीयता को बुरी तरह से प्रभावित किया है। दुनिया भर में मानसिक रोगियों की तादाद बढ़ रही है। इसके बावजूद मनोरोग को आज भी छुपाया जाता है। मानसिक रोग का दायरा कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ग्लोबल बर्डन आॅफ डिजीज की 2010 की रिपोर्ट के मुताबिक मानसिक रोगियों की संख्या एक अरब 83 करोड़ 90 लाख रोजाना है। यह आंकड़ा एचआइवी व तपेदिक से अधिक है। इनका आकलन करने के लिए मरीजों के सामाजिक परिवेश को समझना अहम है। मानसिक रोगियों के मनोवैज्ञानिक पहलू पर तो कुछ शोध हुए हैं, लेकिन सामाजिक पहलू के अध्ययन पर अभी काफी काम किए जाने की दरकार है।

उन्होंने आगे कहा कि मानसिक रोगियों की तादाद व इलाज के उपलब्ध संसाधनों में भारी अंतर, गरीबी, बेरोजगारी, नौकरी की असुरक्षा व दफ्तरों में उत्पीड़न सहित बदलता सामजिक परिवेश लोगों को बहुत बीमार बना रहा है। बढ़ता शहरीकरण, एकाकी जीवन,मोबाइल व वर्चुअल जगत पर निर्भरता और लोगों से मेलजोल में कमी इन बीमारियों को और बढ़ा रहा है।