ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक बयान पर विवाद पैदा हो गया है। दरअसल, AIMPLB के कार्यकारी महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने गुरुवार को अंतरधार्मिक शादी पर शरिया कानून का जिक्र किया। उन्होंने बयान में साफ कहा कि एक मुस्लिम और गैर-मुस्लिम के बीच निकाह शरिया के तहत प्रतिबंधित है। उन्होंने ऐसे निकाहों को अफसोसनाक और दुर्भाग्यपूर्ण भी करार दिया।
अंतरधार्मिक विवाह रोकने के कदम गिनाए: रहमानी यहीं नहीं रुके। उन्होंने अंतरधार्मिक विवाह रोकने के लिए माता-पिता, अभिभावकों और मस्जिद-मदरसे के प्रतिनिधियों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों को लेकर भी बात रखी। उन्होंने कहा कि इस्लाम किसी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम के बीच निकाह को वैध नहीं मानता। अगर यह सामाजिक मानकों के हिसाब से वैध भी लगे, तो शरिया के नजरिए से यह वैध नहीं है।
इसके बाद उन्होंने मौजूदा संस्कृति पर सवाल उठाते हुए कहा कि आज साथ में काम करने, धार्मिक शिक्षा और माता-पिता के पालन-पोषण में अभाव के कारण कई अंतरधार्मिक विवाह हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास कई ऐसे मामले आए, जहां मुस्लिम लड़की ने किसी गैर-मुस्लिम के साथ निकाह कर लिया, लेकिन बाद में उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि कुछ मामलों में उनकी जान भी चली गई। इसलिए हमने माता-पिता, अभिभावकों और हमारे समाज के जिम्मेदार स्तंभों से चौकसी बढ़ाने और युवा बच्चों की मदद की अपील की है।
अंतरधार्मिक विवाह रोकने के लिए 7-पॉइंट में निर्देश: AIMPLB की तरफ से मुस्लिम समुदाय को जारी सात पॉइंट के निर्देशों में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, “आमतौर पर जब अंतरधार्मिक विवाह होते हैं, तो मैरिज रजिस्ट्री दफ्तर के बाहर शादी करने वालों के नाम लगाए जाते हैं। धार्मिक संस्थानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मदरसा शिक्षकों और धर्म के प्रति जिम्मेदार लोगों से यह अपील है कि वे ऐसे युवाओं के घर जाएं और उन्हें जुनून में उठाए जा रहे ऐसे कदमों को उठाने से रोकें। मौत बाद ही नहीं, जिंदगी में भी इस तरह की शादिया टूट रही हैं।”
इसके अलावा बोर्ड की तरफ से जारी दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि माता-पिता अपनी बच्चों, खासकर लड़कियों की शादी में बिल्कुल देर न करें। उन्होंने कहा कि देर से किए गए निकाह से ज्यादा परेशानियां उभरती हैं।
बोर्ड ने आगे कहा कि माता-पिता को बच्चों के मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के बारे में निगरानी रखनी चाहिए। साथ ही उन्हें अपने बच्चों, खासकर लड़कियों को किसी ऐसे स्कूल में नहीं डालना चाहिए, जहां लड़के भी पढ़ते हों। इतना ही नहीं मस्जिद के इमामों को निर्देश दिए गए हैं कि वे मुस्लिम समुदाय के अंदर ही निकाह को लेकर शिक्षा के लिए शुक्रवार को सभा करें।