कृषि सुधार संबंधी विधेयक राज्यसभा और लोकसभा से पास हो चुके हैं। हालांकि बड़ी संख्या में किसान इन विधेयक का विरोध कर रहे हैं। वहीं विपक्षी पार्टियां इन विधेयक को काला कानून करार दे रही हैं। बता दें कि कृषि सुधार विधेयकों में विपक्षी पार्टियां और किसान ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Price (MSP)) को लेकर आशंकित हैं। दरअसल विधेयक में एमएसपी की जिक्र नहीं है। हालांकि सरकार कह रही है कि किसानों को पहले की तरह ही एमएसपी की सुविधा मिलती रहेगी।
जानिए क्या होता है एमएसपीः किसानों के हितों की रक्षा के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था शुरू की गई थी। इसके तहत यदि फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाती है तो किसानों की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाएगी, जिससे उन्हें नुकसान ना उठाना पड़े। देश में एमएसपी तय करने की जिम्मेदारी कृषि मंत्रालय और भारत सरकार के अधीन आने वाले कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की है। एमएसपी के तहत सरकार अभी 23 फसलों की खरीद करती है।
एमएसपी के जरिए सरकार किसानों की फसल एक तय रकम पर खरीदती है और फिर उस फसल को एफसीआई के गोदामों में स्टोर करती है। इसके बाद ये अनाज पीडीएस स्कीम के तहत गरीब जनता को बांटा जाता है।
साल 1964 में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में खाद्य-अनाज मूल्य समिति का गठन हुआ। 1964 में ही दिसंबर माह में इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। इसके बाद 1966-67 में पहली बार गेहूं और धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया। समर्थन मूल्य तय करने के लिए सरकार ने कृषि मूल्य आयोग का गठन किया, जिसका नाम बाद में बदलकर कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) कर दिया गया था।
बता दें कि कृषि मंत्रालय और CACP लागत, मांग, आपूर्ति की स्थिति, मंडी-मूल्यों का रुख, अलग-अलग लागत और अंतरराष्ट्रीय बाजार के मूल्यों के आधार पर किसी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते हैं। अभी जब सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात करती है, तब एक समिति की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि एमएसपी का लाभ सिर्फ देश के 6 फीसदी किसानों को मिलता है। इस तरह देश के किसानों को 2000 से 2017 के बीच करीब 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
किसानों की चिंता है कि एमएसपी उन्हें मंडियों और आढ़तियों से मिलता रहा है। अब जब सरकार नए विधेयक ला रही है तो आरोप लगाया जा रहा है कि इससे देश में मंडियों और आढ़तियों की अहमियत कम हो जाएगी। जिससे किसानों को मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी असर पड़ेगा। यही वजह है कि किसान एमएसपी को लेकर सरकार से गारंटी कानून की मांग कर रहे हैं।