अब जबकि म्यांमा में तख्तापलट के बाद सू की फिर से नजरबंद हैं। उनके लिए खुद की हिफाजत के साथ अपने देश के लिए संघर्ष का आगे का रास्ता खासा मुश्किलों भरा है। ऐसे में यह देखना खासा दिलचस्प है कि अपनी समझ और हसरत की दुनिया में सू की कैसी हैं।
1991 में नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के 21 साल बाद सू की जब यह पुरस्कार लेने पहुंचीं तो भावुकता से तर होते हुए कहा था, ‘मैंने तकलीफें सही हैं। जिनसे प्यार था, उनसे दूर रहना पड़ा। जिनसे मुहब्बत नहीं थी, उनके साथ रहना पड़ा। ऐसे समय में मैं बंदियों और शरणार्थियों के बारे में सोचती थी। ऐसे लोगों की तकलीफें याद आती थीं, जिन्हें उनकी मिट्टी से उखाड़ दिया गया, जिनकी जड़ें नोच दी गईं। उन्हें उनके घर, परिवार और दोस्तों से दूर कर दिया गया।’
अलबत्ता म्यांमा की सत्ता संभालने के बाद सू की जिस तरह रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को लेकर चुप्पी ओढ़े रहीं, उसे लेकर दुनियाभर में लोगों ने निराशा जताई। सबको यह देखकर हैरत हुई कि दुनिया को प्रेम और करुणा का पैगाम देने वाली सू की किन मजबूरियों में अपने ही सिद्धांतों से समझौता करने को मजबूर हुर्इं।
किसी ने भी यह समझने की जरूरत नहीं समझी कि म्यांमा में लोकतांत्रिक सुधार की राह में सबसे बड़ा रोड़ा सैन्य हस्तक्षेप है। शासन में सेना के साथ मिलकर काम करना उनके लिए आसान नहीं था। लिहाजा सू की मूल्य-स्फीति के नाम पर कोसने वालों को अपनी समझ विकसित करनी चाहिए। सू की के नोबेल संबोधन में धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक सद्भाव, शांति, शरणार्थियों की पीड़ा जैसे मानवता से जुड़े वे तमाम हवाले और चिंताएं यों ही नहीं थीं। यह अलग बात है कि शासन में आने के बाद भी उनके हाथ बंधे रहे और वो अपने मन का ज्यादा कुछ न कर सकीं। रोहिंग्या उत्पीड़न के सवाल पर सू की के मन और मंशा को समझने के लिए उनके तारीखी संबोधन को याद करना चाहिए।
उन्होंने अपने नोबेल संबोधन में कहा था, ‘हमारा मकसद एक ऐसी दुनिया बनाना है, जहां कोई विस्थापित न रहे। जहां लोगों को शरणार्थी न बनाया जाए। जहां कोई बेघर और नाउम्मीद न हो। एक ऐसी दुनिया बनाएं जिसका हर कोना लोगों को सुकून भरी पनाह दे सके। जहां रहने वाले लोगों को आजादी मयस्सर हो। जहां हर कोई शांति से जी सके।’ सू की कही बातों में लौटते हुए, उनके संघर्ष और हसरत को देखते हुए लगता है कि दुनिया के लिए आज भी वो एक बड़ी उम्मीद की तरह हैं। इस उम्मीद का पूरा होना दुनिया के बेहतर होने के सपने का हिस्सा है।