असम सरकार ने सैन्य बल (विशेष अधिकार) कानून (अफ्सपा) को राज्य की मौजूदा ‘अशांत क्षेत्र’ स्थिति के तहत 27 फरवरी से छह और महीने के लिए बढ़ाने का बुधवार को फैसला किया। एक आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक, ‘‘सैन्य बल (विशेष अधिकार) कानून, 1958 की धारा तीन के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए असम के राज्यपाल ने पूरे असम राज्य को 27 फरवरी से आगे छह महीने के लिए ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया है।’’

इसमें अफ्सपा की अवधि बढ़ाने का कोई खास कारण नहीं बताया गया, लेकिन सूत्रों ने कहा कि अप्रैल-मई में होने वाले विधानसभा चुनाव और राज्य के कुछ हिस्से में गोला-बारूद की बरामदगी के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है। असम में अफ्सपा नवंबर 1990 में लागू हुआ था। यह कानून असम उस वक्त लागू किया गया था, जब उल्फा उग्रवाद अपने चरम पर था। पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित करने के बाद अफ्सपा लागू हुआ था। कुछ सालों में कई सारे जिलों में स्थिति सुधरने पर सेना को धीरे-धीरे वहां से हटा दिया गया। पुलिस और पैरामिलिट्री ने सेना की जगह ले ली।

असम में तबसे राज्य सरकार द्वारा समीक्षा के बाद प्रत्येक छह महीने पर इसका विस्तार किया जाता रहा है। पूर्वोत्तर में अफ्सपा असम, नगालैंड, मणिपुर (इंफाल नगर परिषद इलाके को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगडिंग और तिरप जिलों तथा असम की सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के आठ थाना क्षेत्र वाले इलाकों में लागू है।

क्या है अफ्सपा कानून?: भारतीय संसद ने आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर ऐक्ट, 1958 एक फौजी कानून है। इसे ऐसे क्षेत्रों में लागू किया जाता है, जहां तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। इसके तहत कानूनन सुरक्षाबल और सेना को कुछ विशेष अधिकार और शक्तियां दी जाती हैं, ताकि आम लोगों के लिए सुरक्षा के दायरे को बढ़ाया जा सके। इस कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है और अशांति फैलाता है, तो उस पर मृत्यु तक बल का इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही हथियारबंद हमले के शक पर भी किसी ढांचे को तबाह किया जा सकता है।

इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है। इसके अलावा किसी भी व्यक्ति के घर की तलाशी ली जा सकती है और उसे व्यवधान डालने से रोकने के लिए बल प्रयोग भी हो सकता है। यह कानून सुरक्षाबलों को वाहन की तलाशी की भी छूट देता है। इस कानून से सुरक्षाबल और सेना को कई अन्य छूटें भी मिलती हैं, जिसकी वजह से इसे अधिकारियों का कवच भी कहा जाता है। हालांकि, केंद्र सरकार इन शक्तियों में हस्तक्षेप कर सकता है।