अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक गुरूद्वारा पर हुए आतंकी हमले में मरने वाले 25 लोगों में एक तीन साल की बच्ची तान्या कौर भी थी। तान्या 10 दिन बाद 4 साल की होने वाली थी। तान्या के पिता हरिंदर सिंह सोनी (40 वर्ष) ने बताया कि आतंकी हमले से पहले वह अपने केक को लेकर बातें करती रहती थी। आतंकी हमला काबुल के शोर बाजार स्थित हर राय साहिब गुरूद्वारा पर हुआ। हरिंदर सिंह सोनी इसी गुरूद्वारे के कीर्तन सेवादार हैं।

इस हमले में तान्या के साथ ही उसकी मां सुरपाल कौर (40 वर्ष) की भी हत्या कर दी गई। इसके अलावा हरिंदर सिंह के पिता निर्मल सिंह सोनी (60 वर्ष) जो कि गुरूद्वारे में प्रमुख ग्रंथी थे, वह भी इस हमले में अपनी जान गंवा बैठे। हरिंदर के ससुर भगत सिंह (75 वर्ष), चचेरा भाई कुलविंदर सिंह खालसा (35 वर्ष), चचेरे भाई की मां रवैल कौर इस हमले में घायल हुए हैं।

हरिंदर सिंह के दो बेटे और चार भाई हमले के वक्त गुरूद्वारे में नहीं थे, जिसके चलते उनकी जान बच गई। द इंडियन एक्सप्रेस के साथ टेलीफोन पर बातचीत में हरिंदर सिंह ने बताया कि ‘अब वक्त आ गया है कि वह अपनी मां, बच्चों और भाईयों के साथ यह देश छोड़ दें, वरना वह भी मारे जाएंगे।’

हरिंदर सिंह ने बताया कि हमले के वक्त चार बंदूकधारी आतंकी गुरूद्वारे में घुसे थे। वहीं अफगानिस्तान इंटीरियर मिनिस्टरी के हवाले से एपी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इस हमले को एक आतंकी ने अंजाम दिया। हरिंदर सिंह ने बताया कि उनकी बेटी तान्या को सिर में गोली मारी गई। वह लगातार चिल्ला रही थी ‘मुझे बचा लो डैडी, मुझे बचा लो डैडी’।

हरिंदर सिंह ने बताया कि ‘हमले वाले दिन काबुल का सिख समुदाय सुबह 6.30 बजे प्रतिदिन की प्रार्थना के लिए गुरूद्वारे में इकट्ठा होना शुरू हो गया था। मैं स्टेज पर था…उस दौरान गुरूद्वारे में करीब 100 श्रद्धालु मौजूद थे। प्रार्थना के बीच में ही लोगों ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि ‘चोर आ गए हैं, डाकू आ गए हैं’, जिसके बाद वहां भगदड़ के हालात बन गए।’

‘चारों आतंकियों ने आकर फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग करीब एक घंटे चली और अधिकतर लोगों को सिर में गोली मारी गई।’ हरिंदर सिंह ने बताया कि अफगानिस्तान में सिख समुदाय के करीब 800 परिवार हैं, जिनमें से अधिकतर काबुल, जलालाबाद और गजनी में रहते हैं। अधिकतर परिवार आतंकी हमलों में अपने किसी ना किसी परिजन को खो चुके हैं।

उन्होंने बताया कि ‘पहले मैं ये सोचता था कि अफगानिस्तान मेरा देश है लेकिन अब यह नहीं रहा। मैं अब यहां नहीं रहना चाहता।’ साल 1970 के दशक में अफगानिस्तान में करीब 3 लाख सिख और हिंदू रहते थे लेकिन अब ये घटकर सिर्फ 800-850 रह गए हैं।