इसरो के अपने पहले सौर मिशन आदित्य-1 के सफल प्रक्षेपण के साथ ही दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा चलाए जा रहे सूर्य अभियानों को लेकर चर्चा तेज हो गई है। अमेरिका, जापान, चीन समेत कई देश सूर्य के गूढ़ रहस्य को सुलझाने में जुटे हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी नेशनल एरोनाटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने अगस्त 2018 में पार्कर सोलर प्रोब का प्रक्षेपण किया था।

पार्कर ने कणों और चुंबकीय क्षेत्रों की जानकारी लेने का प्रयास किया

दिसंबर 2021 में, पार्कर ने सूर्य के ऊपरी वायुमंडल ‘कोरोना’ से उड़ान भरी और वहां कणों और चुंबकीय क्षेत्रों की जानकारी लेने का प्रयास किया। नासा के अनुसार, यह पहली बार था कि किसी अंतरिक्ष यान ने सूर्य से संबंधित पहलुओं का अध्ययन किया। नासा ने फरवरी 2020 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजंसी के साथ हाथ मिलाया और डेटा एकत्र करने के लिए ‘सोलर आर्बिटर’ का प्रक्षेपण किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि सूर्य ने पूरे सौर मंडल में लगातार बदलते अंतरिक्ष वातावरण को कैसे निर्मित और नियंत्रित किया।

जापानी अंतरिक्ष एजंसी जेएएक्सए ने 1981 में पहला उपग्रह प्रक्षेपित किया

नासा की ओर से अन्य सक्रिय सौर मिशन में अगस्त, 1997 में प्रक्षेपित ‘एडवांस्ड कंपोजिशन एक्सप्लोरर’, अक्तूबर, 2006 में प्रक्षेपित सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशंस आर्ब्जवेट्री,  फरवरी, 2010 में प्रक्षेपित सोलर डायनेमिक्स वेधशाला, और जून 2013 में प्रक्षेपित इंटरफेस रीजन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ शामिल हैं। इसके अलावा, दिसंबर, 1995 में नासा, ईएसए और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजंसी (जेएएक्सए) ने संयुक्त रूप से सोलर एंड हेलिओस्फेरिक आब्जर्वेटरी (एसओएचओ) का प्रक्षेपण किया था। जापान की अंतरिक्ष एजंसी जेएएक्सए ने 1981 में अपना पहला सौर प्रेक्षण उपग्रह, हिनोटोरी (एस्ट्रो-ए) प्रक्षेपित किया।

जेएएक्सए के अनुसार, इसका उद्देश्य कठोर एक्स-रे का इस्तेमाल करके सौर ज्वालाओं का अध्ययन करना था। जेएएक्सए के अन्य सौर अन्वेषण मिशन में 1991 में प्रक्षेपित योहकोह (सोलर-ए), 1995 में प्रक्षेपित एसओएचओ (नासा और ईएसए के साथ),  और 1998 में नासा के साथ ट्रांजिएंट रीजन एंड कोरोनल एक्सप्लोरर (ट्रेस) शामिल हैं। वर्ष 2006 में, हिनोड (सोलर-बी) लांच किया गया था, जो परिक्रमा करने वाली सौर वेधशाला योहकोह (सोलर-ए) का उत्तराधिकारी था।

जापान ने इसे अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर प्रक्षेपित किया था। हिनोड का उद्देश्य पृथ्वी पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन करना है। योहकोह का उद्देश्य सौर ज्वालाओं और सौर कोरोना का निरीक्षण करना था। जेएएक्सए की वेबसाइट के अनुसार, यह लगभग पूरे 11 साल के सौर गतिविधि चक्र को ट्रैक करने वाला पहला उपग्रह था।

अक्तूबर 1990 में, यूरोपीय एजंसी ने सूर्य के ध्रुवों के ऊपर और नीचे अंतरिक्ष के पर्यावरण का अध्ययन करने के लिए यूलिसिस का प्रक्षेपण किया, जिससे वैज्ञानिकों को सूर्य के आसपास के अंतरिक्ष पर पड़ने वाले परिवर्तनशील प्रभाव के बारे में जानकारी मिली। नासा और जेएएक्सए के सहयोग से प्रक्षेपित विभिन्न सौर मिशन के अलावा, ईएसए ने अक्टूबर, 2001 में प्रोजेक्ट फार आनबोर्ड आटोनोमी (प्रोबा)-2 प्रक्षेपित किया। प्रोबा-2, प्रोबा शृंखला का दूसरा मिशन है, जो लगभग आठ वर्षों के प्रोबा-1 के सफल अनुभव पर आधारित है। यह बात और है कि प्रोबा-1 सौर अन्वेषण मिशन नहीं था। ईएसए के आगामी सौर मिशनों में 2024 के लिए निर्धारित प्रोबा-3 और 2025 के लिए निर्धारित स्माइल शामिल हैं।

चीन ने एडवांस्ड स्पेस-बेस्ड सोलर आब्जर्वेट्री (एएसओ-एस) को नेशनल स्पेस साइंस सेंटर, चाइनीज एकेडमी आफ साइंसेज (सीएएस) द्वारा अक्तूबर, 2022 में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था। सेंटर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, एएसओ-एस मिशन को सौर चुंबकीय क्षेत्र, सौर ज्वालाएं और कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) के बीच संबंधों की जानकारी हासिल करने के लिए डिजाइन किया गया है। सौर ज्वालाएं और सीएमई विस्फोटक सौर घटनाएं हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि ये सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन से प्रेरित होती हैं।

‘सूर्य का अध्ययन करने में भारत की महत्त्वपूर्ण छलांग’ भारत का आदित्य-एल1 मिशन अंतरिक्ष-आधारित सौर अध्ययन में देश के शुरुआती प्रयास का प्रतीक है और यह सूर्य की गतिविधियों और पृथ्वी पर उनके प्रभाव के बारे में अहम अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा। यह बात विशेषज्ञों ने कही।

भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, कोलकाता में अंतरिक्ष विज्ञान उत्कृष्टता केंद्र के प्रमुख दिव्येंदु नंदी ने कहा, ‘यह मिशन सूर्य के अंतरिक्ष-आधारित अध्ययन में भारत का पहला प्रयास है। यदि यह अंतरिक्ष में लैग्रेंज बिंदु एल1 तक पहुंचता है, तो नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद इसरो वहां सौर वेधशाला स्थापित करने वाली तीसरी अंतरिक्ष एजंसी बन जाएगी।’ वैज्ञानिकों के मुताबिक, पृथ्वी और सूर्य के बीच पांच ‘लैग्रेंजियन’ बिंदु (या पार्किंग क्षेत्र) हैं, जहां पहुंचने पर कोई वस्तु वहीं रुक जाती है। लैग्रेंज बिंदुओं का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर पुरस्कार प्राप्त करने वाले उनके अनुसंधान पत्र-‘एस्से सुर ले प्रोब्लेम डेस ट्रोइस कार्प्स, 1772’ के लिए रखा गया है।

लैग्रेंज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी जैसे आकाशीय पिंडों के बीच गुरुत्त्वाकर्षण बल एक कृत्रिम उपग्रह पर केंद्राभिमुख बल के साथ संतुलन बनाते हैं। सूर्य मिशन को ‘आदित्य एल-1’ नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि यह पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर लैग्रेंजियन बिंदु1 (एल1) क्षेत्र में रहकर अपने अध्ययन कार्य को अंजाम देगा।

नंदी ने कहा, ‘अंतरिक्ष के मौसम में सूर्य-प्रेरित परिवर्तन पृथ्वी पर प्रभाव डालने से पहले एल1 पर दिखाई देते हैं, जो पूर्वानुमान के लिए एक छोटी, लेकिन महत्वपूर्ण खिड़की प्रदान करता है।आदित्य-एल1 उपग्रह, एक सहयोगी राष्ट्रीय प्रयास है, जिसका उद्देश्य ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई) सहित सूर्य की गतिविधि के विभिन्न पहलुओं को उजागर करना है। यह पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष पर्यावरण की भी निगरानी करेगा और अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान मॉडल को परिष्कृत करने में योगदान देगा।’