जॉर्ज फ्लॉयड की मौत ने एक बार फिर इस तथ्य को आम चर्चा में ला दिया कि अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ दमन और हिंसा की बातें आपवादिक नहीं रहीं बल्कि ये वहां के समाज और राजनीति का अब ढांचागत हिस्सा हैं। फ्लॉयड की मौत के विरोध ने वहां लोगों में ज्यादा गुस्सा इसलिए भी दिखा क्योंकि इसने 2014 में एक अश्वेत युवक एरिक गार्नर की मौत की याद ताजा कर दी। तब भी न्यूयॉर्क शहर के एक पुलिस अधिकारी ने एरिक की गर्दन तब तक अपने घुटने के बीच में दबाए रखी थी, जब तक उसकी मौत नहीं हो गई। जिस तरह फ्लॉयड ने कराहते हुए कहा था कि मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं, एरिक ने भी 11 बार पीड़ा के साथ यह बात कही थी। यह बर्बरता और असंवेदनशीलता का एक असामान्य पर खतरनाक दुहराव है।

हाल के सालों में अमेरिका में पुलिसिया बर्बरता के बेहद चर्चित हुए मामलों में 2014 में फर्गुसन शहर में 18 साल के निहत्थे युवक माइकल ब्राउन को गोली मारने की घटना भी है। इसके बाद वहां के लोग तब खासे भड़क गए थे, जब गोली मारने वाले पुलिस अधिकारी के ऊपर से हत्या की धाराएं हटा ली गई थीं।

इसके अगले ही वर्ष बाल्टीमोर में 25 साल के अश्वेत युवक फ्रेडी ग्रे की मौत के मामले ने तूल पकड़ा था। ग्रे को गिरफ्तार करते समय पुलिस ने इतनी ताकत लगाई थी कि पुलिस वैन में ही उसकी मौत हो गई थी।

2016 में मिनेसोटा प्रांत में 32 साल के एक अश्वेत युवक फिलैंडो कैस्टिल ने ट्रैफिक सिग्नल पर जैसे ही एक पुलिस अधिकारी को बताया कि उसके पास पिस्तौल है, पुलिस अधिकारी ने उस पर एक के बाद सात गोलियां दाग दीं। इस घटना ने लोगों को तब सड़कों पर उतरने पर मजबूर कर दिया जब इस पुलिस अधिकारी को अदालत ने सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था।

2016 में ही लुइसियाना शहर में पुलिस ने बाजार में सरेआम एक 37 वर्षीय अश्वेत एल्टन स्टर्लिंग को गोली मार दी थी, जो बाजार में सीडी बेच रहा था। ब्रिटिश अखबार ‘द गार्डियन’ के एक अध्ययन के मुताबिक अमेरिकी पुलिस ने 2016 में प्रति दस लाख लोगों में औसतन 10.13 लोगों को गोली मारी। इनमें अश्वेतों को गोली लगने की दर 6.6 फीसद थी जबकि श्वेतों की 2.9।

2018 में ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में प्रति एक लाख लोगों में पुलिस के हाथों अश्वेत लोगों के मारे जाने की दर 1.9 से 2.4 फीसद के बीच है, जबकि गोरे लोगों के लिए यह दर 0.6-0.7 ही है। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के मुताबिक 2015 से लेकर अब तक अमेरिका में पुलिस की गोलीबारी के करीब 4,400 मामले दर्ज किए गए हैं। अखबार के मुताबिक अमेरिका में 13 फीसदी आबादी ही अश्वेतों की है, लेकिन पुलिस की गोली से कुल मरे लोगों में एक चौथाई हिस्सा अश्वेत नागरिकों का है।

अखबार अपने निष्कर्ष में कहता है कि अमेरिका में किसी निहत्थे गोरे व्यक्ति की तुलना में किसी निहत्थे अश्वेत व्यक्ति के पुलिस द्वारा मारे जाने की संभावना चार गुना अधिक है। गौरतलब है कि यह उस अमेरिका का सच है जो अर्थ से लेकर भाषा और संस्कृति तक पूरी दुनिया का कहीं न कहीं आदर्श है।