देश की अदालतों में कई ऐसे मामलों का फैसला आना बांकि है, जो करीब 40-50 वर्षों से लंबित है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, करीब 140 मामले ऐसे हैं जो 60वर्षों से लंबित हैं। इनमे से अधिकांशत: वर्ष 1951 के बाद की हैं। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, 28 दिसंबर 2018 तक जिला और अधीनस्थ अदालतों में करीब 66,000 मामले 30 वर्षों से ज्यादा समय से लंबित हैं। वहीं, 5 साल से ज्यादा लंबित मामलों की संख्या 60 लाख से ज्यादा है।
सरकार द्वारा हाल ही में किए गए एक आंकलन में कहा गया है कि वर्तमान में मामलों के निष्पादन की जो गति है, ऐसी स्थिति में अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे में 324 वर्षों का समय लग जाएगा। आंकड़ों के अनुसार, लंबित मामलों की संख्या बढ़कर 2.9 करोड़ पहुंच चुकी है। इनमें से 71 प्रतिशत अपराधिक मामले हैं, जिनमें या तो आरोपी को गिरफ्तार किया जा चुका है या वे विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में बंद हैं। पिछले महीने अधीनस्थ अदालतों ने 8 लाख मामलों का निष्पादन किया था। वहीं, 10.2 लाख नए मामले दर्ज किए गए। ऐसे में देखा जाए तो वर्तमान निष्पादन दर के अनुसार औसतन 2.2 लाख केस प्रति महीने बैकलॉग हो रहे हैं। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, 1951 के बाद से करीब 1800 मामलों की 48 से 58 वर्षों से सुनवाई चल रही है। 13,000 मामले 40 वर्षों से लंबित हैं तथा करीब 51,000 मामले 37 वर्षों से लंबित हैं। सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 26,000 मामले 30 वर्षों से लंबित हैं। महाराष्ट्र में भी 13,000 मामले करीब इतने ही समय से लंबित हैं।
वहीं इस तरह के कुल लंबित मामले का 96 प्रतिशत यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात और ओडिशा का है। इन छह राज्यों में करीब 1.8 करोड़ मामले अधीनस्थ अदालतों में लंबित है। यह संख्या पूरे देश में लंबित 2.93 करोड़ मामले का 61 प्रतिशत है। कुछ ऐसे मामले भी लंबित हैं, जिनमें दूसरे पक्ष को हमेशा तारीख पे तारीख दी जा रही है लेकिन वे अदालत में हाजिर नहीं हो रहे हैं।