आतंकवाद से कौन सा देश पीड़ित नहीं है, कितनों ने अपनी इस वजह से जान गंवाई है। हमला होता है, उस पर प्रतिक्रिया होती है और अशांति का दौर बढ़ता चला जाता है। लेकिन कभी सोचा है इस आतंकवाद को मोटिवेशन कहा से मिलता है? अब इसी सवाल पर एक फिल्म आई है, नाम है- 72 Hoorain। फिल्म में बताया गया है कि आतंकियों को हमला करने के लिए 72 हूरों का सपना दिखाया जाता है। कहा जाता है कि अगर हमला करोगे, तुम्हें शहादत मिलेगी और फिर तुम 72 हूरों से जन्नत में मिलोगे।

72 Hoorain, कितना काल्पनिक कितना सच?

अब फिल्म को लेकर बवाल है, उसके अपने कारण हैं, लेकिन सवाल कुछ और है। क्या सही में 72 हूरे जैसी कोई मान्यता है? क्या इस्लाम में इस 72 हूरे का कही कोई जिक्र है? क्या कुरान इस 72 हूरे के बारे में कुछ बताता है? अब इन तमाम सवालों के जवाब हमारे पास नहीं है, लेकिन जो इस्लाम की जानकारी रखते हैं, जिन्होंने कई सालों तक इस पर रिसर्च की है, हमने उनसे सीधी बात की। दो इस्लामिक स्कॉलर्स से इस मुद्दे पर विस्तार से बात की गई।

असल में हूर का मतलब होता है- एक सुंदर लड़की जो आपको जन्नत में तोहफे के तौर पर मिलती है। इसका कॉन्सेप्ट ये है कि जन्नत में आपकी हर इच्छा पूरी होती है। जो आपको चाहिए, वो मिलता है। जैसे स्वर्ग को लेकर कहा गया है कि वो एक सपनों की दुनिया होगी, उसी तरह जन्नत भी वही जगह है। जो असल जिंदगी में आपको नहीं मिल पाता, जन्नत में सब मिलता है।

इस बारे में इस्लामिक स्कॉलर डॉक्टर मुहिउद्दीन गाज़ी कहते हैं कि

प्रोफेट मोहम्मद ने कहा है कि जो जिहाद करेगा, जो जिहाद करते हुए शहीद हो जाएगा, उसे 22 हूरे मिलेंगी AS A REWARD। कुछ हदीजों में इस बात का जिक्र किया गया है, लेकिन दिक्कत ये है कि लोगों ने जिहाद और आतंकवाद को एक समझ लिया है। ये दो अलग चीजें हैं। WORD OF PROPHET साफ कहता है कि जो आतंकवाद फैलाएगा, वो गलत कर रहा है, बुरा कर रहा है, और अगर ये सब करते हुए वो मारा जाता है, तो ये बुरे आदमी की मौत होगी। उसको किसी तरह का REWARD नहीं दिया जाएगा, बुरे आदमी के लिए सिर्फ नर्क है, स्वर्ग नहीं।

डॉ मुहिउद्दीन गाज़ी, इस्लामिक स्कॉलर

अब इस बयान से एक बात साफ होती है, हूरों का जिक्र किया गया है, लेकिन अच्छे कामों के साथ, आतंकवाद के साथ नहीं। लेकिन फिर भी जो हमले करते हैं, हिंसा का सहारा लेते हैं, उनका एक ही तर्क रहता है कि उन्हें ऐसा कर जन्नत नसीब होगी। उस जन्नत में जाने के लिए वो मासूम लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं। अब इन तर्कों पर जब हमने दूसरे इस्लामिक स्कॉलर अबुल आला सुब्हानी से बात की, तो उन्होंने दो टूक कहा कि ये पूरी थ्योरी की गलत तथ्यों पर आधारित है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कुरान या फिर इस्लाम के किसी भी दूसरे ग्रंथ में हिंसा की कोई बात नहीं की गई है।

इस्लामिक स्कॉलर अबुल आला सुब्हानी कहते हैं कि

जो लोग भी ये चीज कहते हैं कि 72 हूरे मिलेंगी या जन्नत नसीब होगी, वो सब गलत है। ये तो साधारण सी बात है हिंसा करने से आपको जन्नत मिलेगी या जहन्नुम? मतलब धरती पर आप इंसानों का सुकून खत्म करोगे, तो आगे वाली दुनिया में सुकून कैसे मिल सकता है। हमारे इस्लाम में तो एक किस्सा है, कहा जाता है कि एक बिल्ली को औरत ने भूखा रखा, उस बिल्ली की मौत हो गई, हमारे जो पैगंबर हैं, उन्होंने कहा वो औरत जहन्नुम में जाएगी। यानी कि इस्लाम इन बातों को लेकर काफी Sensitive है।

अबुल आला सुब्हानी, इस्लामिक स्कॉलर

जिहाद और आतंकवाद, समान या फर्क?

अब इस्लाम जब हिंसा के इतने विरोध है तो ये आतंकी जिहाद के नाम पर इतना खून कैस बहा देते हैं? क्या जिहाद को कुछ लोगों ने गलत तरह से समझ लिया है, या कुछ लोग जानबूझकर ऐसे नेरेटिव सेट करने में लगे हैं जिससे उनकी दुकान चलती रहे। सवाल ये भी उठता है कि क्या जिहाद कोई निगेटिव शब्द है या इसे निगेटिव बनाने का काम कर दिया गया है? अब जिस फर्क को समझना काफी मुश्किल रहता है, उस बारे में डॉक्टर मुहिउद्दीन गाज़ी ने दो टूक जवाब दिया है। वे कहते हैं

जिहाद तो जुल्म को दूर करने के लिए होता है। कहीं पर जुल्म होता है और आप जालिम को रोकने का काम करते हैं, लेकिन ये करते वक्त आपकी मौत हो जाती है, ऐसी सूरत में 72 हूर का वादा किया गया। लेकिन बात वही है, आतंकवाद की मौत और जिहाद की मौत दो अलग चीजे हैं। इस DIFFERENCE को अगर आप बनाकर चलेंगे तो कही कोई दिक्कत नहीं है। किसी भी COMMUNAL ACT के लिए कोई REWARD नहीं है।

डॉ मुहिउद्दीन गाज़ी, इस्लामिक स्कॉलर

कौन कर रहा गुमराह, किसकी जिम्मेदारी तय?

अब सवाल ये उठता है कि अगर गलत कर्म करने से जन्नत नसीब नहीं होती, तो ये आतंकी क्यों दूसरों की जान लेते रहते हैं। इस पर भी दोनों इस्लामिक स्कॉलर अबुल आला सुब्हानी और मुहिउद्दीन गाज़ी ने अपने विचार रखे हैं। अबुल आला का कहना है कि इस बात में कोई दो राय नहीं कि कुछ लोग गुमराह करने का काम करते हैं। इसमें कुछ मुस्लिम स्कॉलर्स भी शामिल हो सकते हैं जिन्हें पूरा ज्ञान नहीं होता। वहीं इसी बात को आगे बढ़ाते हुए मुहिउद्दीन गाज़ी ने बताया है कि यहां दोनों पहलुओं को समझना ज्यादा जरूरी है।

उनके मुताबिक एक तरफ कुछ लोग शायद गुमराह करने वाले हों, लेकिन एक फैक्टर ये भी है कि इस समय ISLAMOPHOBIA का डर दिखाया जा रहा है। वे मानते हैं कि अगर गुमराह किया भी जा रहा है तो ये दोनों तरफ से हो रहा है, कुछ मुस्लिम भी ऐसा कर रहे हैं, लेकिन इस्लाम के नाम पर डर फैलाने वाले भी शामिल हैं।