आक्रामक तर्क शैली और विरोधियों के सवालों का प्रचंडता से जवाब देने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का अदांज अब शायद अधिकांश लोगों के जहन से उतरता जा रहा है। लाल कृष्ण आडवाणी वर्तमान में लोकसभा सांसद हैं, लेकिन बीते 5 सालों में उन्हें सदन में बोलते हुए काफी कम सुना गया है। एक जमाना था जब बीजेपी में फायरब्रांड शब्द आते ही आडवाणी का चेहरा दिखाई देता था। सदन से लेकर पार्टी में वही मुद्दों की लकीर खींचा करते थे। लेकिन, विगत 296 दिनों में उन्होंने सदन में सिर्फ 365 शब्द ही बोले हैं।

बीजेपी के लौह-पुरुष नाम से विख्यात लाल कृष्ण आडवाणी तमाम शोर-शराबे के बावजूद अपनी बात सदन के समक्ष रखने में माहिर माने जाते थे। 8 अगस्त, 2012 में सदन में दिया गया उनका भाषण अभी भी कई लोगों के दिमाग में जिंदा होगा। उस दौरान मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी और आडवाणी विपक्ष में थे। तब असम में बड़े पैमाने पर हुए जातीय हिंसा और अवैध घुसपैठ पर लाए ‘स्थगन प्रस्ताव’ पर बहस चल रही थी। सदन में काफी शोर-शराबा था और मनमोहन सिंह की सरकार स्थगन प्रस्ताव को गिराने पर आमादा थी। लेकिन, तमाम शोरगुल के बीच में आडवाणी बोले और जोरदार ढंग से उन्होंने अपनी बात पूरी की। हालांकि, उनके राजनीतिक करियर का ऐसा यह पहला और आखिरी उदाहरण नहीं हो सकता। कई मर्तबा उन्होंने अपने भाषण से शोर-शराबे के बीच अपनी बात पुरजोर ढंग से सदन में कही है।

लेकिन, बीते पांच सालों में फायरब्रांड छवि वाले लालकृष्ण आडवाणी अब कहीं खो से गए हैं। वह सदन में सत्ता पक्ष की तरफ से पहली पंक्ति में बैठे दिखाई देते हैं, लेकिन मौन धारण किए रहते हैं। पिछले महीने 8 जनवरी, 2018 को एक बार फिर भारी हंगामा मचा था। इस दौरान पीएम मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ने सदन में नागरिकता (संशोधन) बिल पेश किया था। इस दौरान भी एलके आडवाणी सदन में मौजूद थे। लेकिन, बिल के महत्वपूर्ण होने के बावजूद उन्होंने इस पर एक शब्द भी नहीं बोला। जबकि, यही आडवाणी 8 साल पहले इसी विषय पर तमाम रुकावटों के बावजूद अपनी बात जोरदार ढंग से रखे थे।