गोवा में आयोजित 46वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में जहां एक ओर स्त्री फिल्मकारों की फिल्मों का विशेष खंड दिखाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर ‘आज के बॉलीवुड में स्त्री’ विषय पर जमकर बहस हुई। सुधीर मिश्रा ने कहा कि जबतक स्त्रियां फिल्म के बिजनेस और निवेश में नहीं आएंगी तबतक हालात नहीं बदलेंगे। यदि फिल्म में पैसा लगानेवाला रचनात्मक नहीं होगा तो स्त्रियों के प्रति संवेदनशील फिल्में नहीं बन सकतीं।

मुख्यधारा के सिनेमा पर बाजार का कब्जा है। उन्होंने पूछा कि कोई ऐसा गीत बताइए जिसमें औरत या नायिका मर्द या नायक की सुंदरता की तारीफ करती है। मतलब यह कि जबसे भारत में सिनेमा में गीत-संगीत आया तबसे पुरुष ही औरतों की तारीफ करते चले आ रहे हैं। कभी स्त्रियों का पक्ष भी तो सामने आना चाहिए।

बर्फी जैसी फिल्म बनानेवाले अनुराग बसु ने कहा कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री में पुरुषों का वर्चस्व है। एक-दो फिल्मों में जो औरतों को समानता मिलती दिखती है वह अपवाद है। सवाल मानसिकता के साथ बिजनेस का है। विडंबना यह है कि स्त्री फिल्मकार भी पुरुषों की तरह मसाला फिल्में ही बनाना चाहती हैं। आज की किसी भी अभिनेत्री में यह साहस नहीं है कि वह उन दृश्यों को करने से मना कर दे जिनमें स्त्रियों का अपमान होता हो। इस इंडस्ट्री में पटकथा लेखन में स्त्री बहुत कम हैं, अधिकतर लेखक पुरुष हैं। आज हमें जूही चतुर्वेदी जैसी कई लेखिकाएं चाहिए जिन्होंने पीकू जैसी पटकथा लिखी।

सुधीर मिश्रा ने कहा कि हमारा सेंसर बोर्ड अभी भी मदर्वादी है। उसे अपना पितृसत्तात्मक रवैया बदलना होगा। हमारा दर्शक कब का परिपक्व हो चुका है। गुरुदत्त, विमल राय, राजकपूर से कोई निवेशक यह नहीं पूछता था कि वे क्या दृश्य डाल रहे हैं। आज मुख्यधारा के फिल्मकार को वह आजादी नहीं है। विधु विनोद चोपड़ा इसलिए आजाद हैं कि वे खुद निर्माता हैं और पैसा लगाते हैं। गौरी शिंदे की ‘इंगलिश विंगलिश’ विकास बहल की ‘क्वीन’ या आनंद एल राय की ‘तनु वेड्स मनु’ जैसी फिल्में अपवाद हैं।

स्त्री और सिनेमा के विशेष खंड में अपर्णा सेन की 36 चौरंगी लेन, प्रेमा कारंथ की फणिअम्मा, सई परांजपे की स्पर्श, भावना तलवार की धर्म जोया, अख्तर की जिंदगी ना मिलेगी दोबारा सहित कई फिल्में दिखाई जा रही हैं। इन फिल्मों के जरिए स्त्रियों की निगाह से दुनिया को देखने की कोशिश की गई है। फिल्मोत्सव में आज केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिहं राठौड़ ने भारतीय पैनोरामा का उद्घाटन किया। उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन के कार्यालय का भी उद्घाटन किया जो भारत में विदेशी फिल्मकारों के लिए शूटिंग संबंधी तमाम समस्याएं देखेगा।