हैदराबाद दुष्कर्म के आरोपियों की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौतों के बाद कहीं फूल बरसाए गए तो कहीं पुलिस वालों की वाहवाही हो रही है। लगे हाथ ये सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या पुलिस को तालिबानी स्टाइल में न्याय करने की इजाजत दी जा सकती है? सड़क पर इंसाफ के ऐसे ही मंजर को बिहार की सिल्क सिटी भागलपुर ने 1979-80 में झेले हैं। दस साल बाद 1989 में भी भागलपुर के आम लोग कौमी दंगा की आग में झुलस चुके हैं। ऐसा देश की न्याय प्रणाली में भरोसा नहीं रखने की वजह से ही हुआ है। अब चर्चा हो रही है कि हो सकता है हैदराबाद पुलिस ने असली मुठभेड़ में ही आरोपियों को मारा हो मगर पुलिस को कानून हाथ में लेने की इजाजत कत्तई नहीं दी जानी चाहिए।

1980 के दशक के दौरान भागलपुर में अपराध चरम पर थे। युवा आईपीएस अधिकारी विष्णु दयाल राम जिले के एसपी पद पर तैनात हुए थे। कहा जाता है कि इनके ही इशारे पर पुलिसवालों ने 33 अपराधियों की आंखें फोड़ दी थी। शहर में ‘ऑपरेशन गंगाजल’ चला था। बाद में फिल्म निर्माता प्रकाश झा के निर्देशन में ‘गंगाजल’ फ़िल्म भी बनी।

कहा जाता है कि भागलपुर में बढ़ते अपराध से निपटने के लिए पुलिस ने गजब तरीका ईजाद किया था। पुलिस उन्हें पकड़ती और आंखों में टेकुआ घोपकर तेजाब डाल देती। हालांकि, हैदराबाद की तरह उस वक्त भागलपुर की जनता भी पुलिस के अमानवीय तरीके के साथ थी मगर देश इसके खिलाफ हो गया था। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे सबसे पहले खबर छापकर इस बारे में खुलासा किया था। बाद में सारे अखबार और पत्रिकाओं की सुर्खियां बनी। संसद में हंगामा तक मचा था। तब राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे अमानवीय बताया था।

संसद से सड़क तक हंगामा मचने के बाद एसपी का फौरन तबादला कर दिया गया था। मामले में चालीस से ज्यादा पुलिसवालों पर मुकदमे हुए थे। वो बाद में निलंबित किए गए। आगे जाकर कई बर्खास्त भी किए गए। समर्थन में उतरी जनता तो शांत हो गई मगर पुलिस अधिकारियों और उनके परिवारों को हाल तक जलालत झेलनी पड़ी। इस कांड के लिए भागलपुर पूरे विश्व में आज भी बदनाम है। आईपीएस बीडी राम बाद में झारखंड के डीजीपी बनकर रिटायर हुए। बहरहाल, ये पलामू से दूसरी बार भाजपा सांसद हैं।

इस घटना के एक दशक बाद भागलपुर पर 1989 कौमी दंगे की वजह से दोबारा काला धब्बा लगा। यह भी पुलिस मुठभेड़ की ही देन बताई जाती है। तब एसपी कृपा स्वरूप द्विवेदी एसपी ओहदे पर आए थे। हाल ही में ये बिहार के डीजीपी होकर रिटायर हुए हैं। 1989 में भागलपुर के चंपानाला पुल पर समुआ मियां गिरोह से मठभेड़ हुई थी जिसमें आठ बदमाश इक्कट्ठे मारे गए थे। पुलिस की खूब वाहवाही हुई। संयोगवश ये सभी एक ही समुदाय के थे इस वजह से उसे कौम रंग दे दिया गया। बदमाशों के गिरोह ने एसपी द्विवेदी के खिलाफ साजिश रच रामशिला पूजन जुलूस के दौरान मुस्लिम स्कूल के पास हमला बोल दिया। इसके बाद शहर में दंगा भड़क गया। दंगे में सैकड़ों बेकसूर लोग मारे गए। पुलिस की इसमें भी काफी बदनामी हुई थी।