Gonda college, 30 girls quit college: गोंडा जिले के एक निजी इंटरमीडिएट कॉलेज के प्रिंसिपल ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर कॉलेज में पुलिस सुरक्षा प्रदान करने को कहा है। प्रिंसिपल ने ये कदम युवाओं के एक समूह द्वारा कॉलेज में किए जा रहे उत्पीड़न को रोकने के लिए उठाया है। इन युवाओं के आतंक से कुछ छात्रों ने कॉलेज छोड़ दिया है वहीं कुछ छात्रों ने रोज कॉलेज ना आने की अनुमति मांगी है। लगभग 30 छात्रों ने कथित तौर पर “व्यक्तिगत कारणों” का हवाला देते हुए कॉलेज छोड़ दिया है और लगभग 10 लड़कियों ने कॉलेज प्रशासन से अनुरोध किया है कि उन्हें केवल परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए क्योंकि वे ऐसी स्थिति में कॉलेज नहीं आना चाहती।

शनिवार को जिला मजिस्ट्रेट के हस्तक्षेप के बाद, गोंडा के पुलिस अधीक्षक (एसपी), राज करण नैय्यर ने कहा कि उन्होंने छात्रों के कॉलेज छोड़ने के पीछे के कारणों की जांच के लिए एक सर्कल अधिकारी और महिला पुलिस स्टेशन की एसएचओ को ज़िम्मेदारी दी है। एसपी ने दावा किया, क्षेत्र में एक विशेष एंटी-रोमियो स्क्वाड ड्राइव शुरू किया गया है। प्रिंसिपल ने कहा “ये हमारे संस्थान का एक बड़ा मुद्दा है। मुझे बताया गया है कि युवाओं के दो समूह हैं, जो 15-20 बाइक पर चलते हैं और लड़कियों को परेशान करते हैं। कुछ छात्रों ने इसके कारण कॉलेज छोड़ दिया है। पिछले साल, हमने कॉलेज के तीन-चार लड़कों को निष्कासित किया था, अब वे भी इन समूहों में शामिल हो गए हैं।”

प्रिंसिपल ने आगे कहा “हालांकि अधिकांश छात्राएं और उनके गार्डियन इस संबंध में खुले तौर पर शिकायत नहीं करते हैं, उनमें से कुछ हमारे पास आईं और अनुरोध किया कि चूंकि कॉलेज प्रशासन परिसर के बाहर लड़कियों को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं है, इसलिए लड़कियों को कॉलेज नहीं आने की छूट दी जानी चाहिए। लड़कियां नियमित कक्षाओं में भाग नहीं लेंगी और शेष वर्ष के लिए घर से पढ़ाई करते हुए अपनी परीक्षा की तैयारी करेंगी।” प्रिंसिपल ने कहा कि लगभग 30 छात्राओं ने कॉलेज छोड़ दिया है, लेकिन जैसा कि वे शिकायत दर्ज नहीं करना चाहती हैं या इसमें शामिल नहीं होती हैं, केवल चार ने कारण के रूप में उत्पीड़न का हवाला दिया है। इंटर कॉलेज एक निजी संस्थान है जिसमें 300 से अधिक छात्र नामांकित हैं।

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प्रिंसिपल ने कहा “शनिवार की पुलिस ड्राइव के बाद, लड़कियां अब बिना किसी डर के कॉलेज में आने के लिए तैयार हैं। अतीत में, कोई भी छात्र शिकायत दर्ज नहीं करना चाहता था क्योंकि उन्हें लगा कि कानूनी औपचारिकताओं में जाने से बेहतर है चुप रहना और यह भी डर था कि इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हो सकती है। हम पहले मामले की गंभीरता को समझने में विफल रहे और यहां तक कि जब युवाओं के समूहों के बीच झड़प की घटनाएं हुईं, तो हमने इस मुद्दे को नजरअंदाज कर दिया। जब कुछ छात्र और अभिभावक हाल ही में हमारे पास आए, तो हमने पुलिस और प्रशासन से संपर्क किया।”