Pulwama Terror Attack के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में तल्खी बढ़ती जा रही है। देश में बदले का कार्रवाई किए जाने की मांग हो रही है। करीब दो दशक पहले भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी का माहौल था। दोनों देशों के बीच युद्ध की आशंका घर कर रही थी, तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर तक बस से सफऱ कर पड़ोसी मुल्क को न केवल शांति का पैगाम दिया था बल्कि दोनों मुल्कों के बीच जंग नहीं होने देने का भरोसा भी दिया था। आज (19 फरवरी, 2019) से ठीक बीस साल पहले यानी 19 फरवरी, 1999 को पीएम वाजपेयी अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों, सांसदों, लेखकों, कलाकारों को लेकर बस से लाहौर पहुंचे थे। लाहौर पहुंचने पर वाजपेयी ने कहा था, “हम जंग ना होने देंगे..तीन बार लड़ चुके लड़ाई, कितना महंगा सौदा.. हम जंग ना होने देंगे।” पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने वाजपेयी समेत भारतीय प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए उन्हीं की पंक्तियां दुहराई थी और कहा था, “हम जंग ना होने देंगे।”

वाजपेयी जी की ये बस डिप्लोमेसी तब दक्षिण एशियाई देशों के साथ-साथ पाकिस्तान के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ था। उस बस में पीएम वाजपेयी के अलावा तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह, केंद्रीय मंत्री और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा, अभिनेता देव आनंद, लेखक जावेद अख्तर समेत 22 लोग गए थे। जब इस बस यात्रा का कार्यक्रम बना था तब यह तय हुआ था कि पीएम बस को सीमा पार कराकर लौट जाएंगे लेकिन जब बाघा बॉर्डर पर भारत-पाकिस्तान सीमा पार कर ये बस पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हुई तब वहां नवाज शऱीफ ने बड़ी ही गर्मजोशी से वाजपेयी जी और भारतीय प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया था। तब शरीफ ने पीएम वाजपेयी को लाहौर तक आने के लिए यह कहकर निमंत्रित किया और विवश कर दिया था, “दर तक आए हो, घर नहीं आओगे?”

तब भारतीय प्रतिनिधिमंडल लाहौर तक गया था। वहां पाकिस्तान ने खूब मेहमाननबाजी की थी और पलटकर वाजपेयी जी की पंक्तियों में ही शांति का पैगाम दिया था, “हम जंग ना होने देंगे।” लेकिन तीन महीने बाद ही मई 1999 में हिमालय की ऊंची पहाड़ियों में करगिल जंग छिड़ गई जो जुलाई 1999 तक चली। भारत ने इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना को करारी शिकस्त दी थी। इसके बाद भी पाकिस्तानी आतंकियों ने दिसंबर 1999 में दिल्ली-काठमांडू इंडियन एयरलाइन्स के विमान आईसी-814 का अपहरण कर लिया था। विमान को हाईजैक कर आतंकी कांधार ले गए थे। तब सरकार को मजबूर होकर कुख्यात आतंकी मौलाना मसूद अजहर को छोड़ना पड़ा था।