79th India Independence Day: भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र 78 साल का हो गया है। इस महान देश की गाथा तो वैसे हजारों साल पुरानी है, लेकिन इसका दूसरा उदय 15 अगस्त 1947 को हुआ। भारत के इतिहास की वो तारीख जिस दिन इस देश ने एक नया सवेरा देखा, ऐसा सवेरा जहां अंग्रेजों से मुक्ति का मौका था, गुलामी को पीछे छोड़ने का अवसर था और भविष्य के लिए नए कीर्तिमान स्थापित करने का समय था। अब उन सपनों को देखे 78 साल पूरे हो गए हैं, कई पूरे हुए हैं, कई अधूरे हैं तो कई अभी भी बस सपने ही हैं। लेकिन फिर भी 78 साल की हो चुकी ये ‘भारत यात्रा’ खास है, गौरवान्वित करने वाली है और काफी कुछ सिखाने वाली भी रही है।
अब तक की इस भारत यात्रा ने कई युद्ध देखे, कई क्रांतिकारी फैसले देखे और कई भयंकर दंगों का दंश भी झेल लिया। यानी कि उतार चढ़ाव वाले इस सफर ने भारत को और ज्यादा परिपक्व बना दिया है, उसे इतना सशक्त कर दिया है कि वो अब आने वाले 78 साल में खुद को सिर्फ सबसे बड़े लोकतंत्र के तमगे तक सीमित नहीं रखने वाला है, बल्कि खुद को सबसे मजबूत लोकतंत्र के रूप में भी स्थापित करने जा रहा है। अब भविष्य की तरफ मजबूती से कदम तभी बढ़ सकते हैं जब अपने इतिहास के बारे में सारी जानकारी रहे, ऐसे में आपके सामने 78 सालों का लेखा-जोखा लेकर हम आ गए हैं।
आजादी का जश्न और बंटवारे का दंश
भारत के इतिहास में बंटवारे को सबसे काले अध्याय के तौर पर याद किया जाता है। ये इस महान देश की बदकिस्मती ही रही कि उसे आजादी की खुशी के साथ बंटवारे का ये दर्द भी झेलना पड़ा। आजादी से ठीक एक दिन पहले भारत से अलग होकर पाकिस्तान नाम का देश बन गया था। धर्म के आधार पर हुए इस एक बंटवारे ने 10 लाख लोगों की जान ली, 1.46 करोड़ शरणार्थियों को अपना घर छोड़ना पड़ा और लाखों लोग अपनों से हमेशा के लिए बिछड़ गए। भारत के हुए बंटवारे के कई किरदार रहे जिनकी वजह से ही आजादी के साथ देश को ये दर्द भी झेलना पड़ा। असल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कभी भी बंटवारे के पक्ष में नहीं थे। लेकिन उस समय देश का धार्मिक समीकरण कुछ ऐस था, कई समुदाय अपने भविष्य को लेकर आशंकित थे।

असल में आजादी से पहले भारत में सिर्फ 25 प्रतिशत मुसलमान थे, काफी कम तादाद में सिख, बौध धर्म के लोग भी रहे। लेकिन हिंदू धर्म मानने वालों की संख्या सबसे ज्यादा थी। इसी वजह से आजादी से पहले कई मुस्लिम नेताओं को इस बात का डर था कि हिंदू बाहुल भारत में मुस्लिमों के साथ क्या होगा, उन्हें कैसे रखा जाएगा, उनके अधिकारों की कैसे रक्षा की जाएगी। इसी सोच के सबसे बड़े समर्थक थे मोहम्मद अली जिन्हा जो हर कीमत पर मुस्लिमों के लिए अलग देश की पैरवी कर रहे थे। बड़ी बात ये भी रही कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी भारत पर जो 200 साल राज किया, उसका आधार धर्म के नाम पर बंटवारा ही रहा। हिंदू-मुस्लिमों की अलग वोटर लिस्ट, हिंदू-मुस्लिमों के लिए बैठने के लिए अलग-अलग जगह, ये कुछ ऐसे कदम थे जिसने आजादी से पहले ही बंटवारे वाली सोच को बढ़ावा दे दिया था।
उसी सोच ने आगे चलकर पाकिस्तान बनाने की मांग को बल दिया और फिर आजादी से एक महीने पहले ब्रिटिश वकील सर सिरिल रेडक्लिफ को भारत-पाकिस्तान की सीमा तय करने का जिम्मा सौंप दिया गया। सिर्फ 30 दिन के अंदर में उन्हें ये काम करने को कहा गया। बताया जाता है कि आजादी से तीन दिन पहले 12 अगस्त, 1947 को ही सीमांकन रेखा को अंतिम रूप दे दिया गया था और फिर 17 अगस्त से उसे लागू भी कर दिया गया। लेकिन उस बंटवारे के बाद भी ज्यादा से ज्यादा इलाके हड़पने की चाहत ने दंगों का रूप ले लिया और एक बंटवारे ने आजादी के जश्न को फीका कर दिया।
कश्मीर पर पाकिस्तान का पहला हमला और दुश्मनी का नया अध्याय
भारत जब आजाद हुआ, उस समय सरदार वल्लभ भाई पटेल की कौशल की वजह से कई रियासतों को साथ लाने का काम सफलतापूर्वक कर लिया गया था। सिर्फ तीन शासकों ने आजादी के समय भारत के साथ विलय करने पर सहमति नहीं जताई थी। एक रहा जूनागढ़, दूसरा रहा हैदराबाद और तीसरा जम्मू-कश्मीर। अब जनमत संग्रह के तहत जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया, सेना की कार्रवाई ने हैदराबाद को 17 सितंबर 1948 को भारत में ला दिया। लेकिन तब जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने विलय करने से मना कर दिया। जम्मू-कश्मीर की तरफ से स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट पर साइन किया गया जिसका स्वागत पाकिस्तान ने तो किया, लेकिन भारत को ये बात स्वीकार नहीं हुई।

ये वो समय था जब नया-नया बना पाकिस्तान चोरी-छिपे कश्मीर पर अपना कब्जा जमाना चाहता था। इसी वजह से कबायली लड़ाकों ने 24 अक्टूबर 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। उस समय तक क्योंकि कश्मीर का भारत के साथ विलय नहीं हुआ था, ऐसे में भारत की सेना भी वहां जाकर उन कबायली लड़ाकों से मुकाबला नहीं कर सकती थी। उस समय भारत सरकार ने राजा हरि सिंह को प्रस्ताव दिया कि वे जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कर लें और भारतीय सेना को वहां जाकर लड़ने का मौका दें। काफी समझाने के बाद 26 अक्टूबर 1947 को राजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिया और फिर 27 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया।
लेकिन क्योंकि कबायली लड़ाके लगातार कश्मीर पर हमला करते रहे, ऐसे में 1948 में ही सबसे पहले ये मुद्दा संयुक्त राष्ट्र के पास पहुंच गया और फिर सवा साल के युद्ध के बाद 31 दिसंबर 1948 को सीजफायर लागू हो गया। अब जिस समय सीजफायर किया गया, तब जम्मू-कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा भारत के पास रहा, तो वहीं एक तिहाई पाकिस्तान ने अपने कब्जे में ले लिया। ये इतिहास का एक ऐसा पहलू रहा जिस वजह से आज भी पूरा कश्मीर भारत के पास नहीं है। जानकार मानते हैं अगर सेना को और ज्यादा वक्त दिया जाता तो शायद पाक अधिकृत कश्मीर कभी ना होता।
भारत को मिला उसका संविधान
अंग्रेज भारत को छोड़ जा चुके थे, लेकिन उनके आदर्शों पर चलकर इस महान देश का निर्माण नहीं किया जा सकता था। भारत को जरूरत थी खुद के कानून की, खुद के संविधान की, खुद के सिद्धांतों की। उसी जरूरत को समझते हुए आजादी के तुरंत बाद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और दूसरे बुद्धिजीवियों ने मिलकर भारत के संविधान पर काम करना शुरू कर दिया। दो साल, 11 महीने तक खूब बहस हुई, तकरार हुई, मतभेद हुए, लेकिन क्योंकि उदेश्य नेक था, ऐसे में काम चलता रहा। उसी वजह से 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना खुद का संविधान मिला, कह सकते हैं उसे उस दिन लागू कर दिया गया। एक लाख 45 हजार शब्दों वाला ये संविधान भारत की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया। इसमें कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के रिश्तों को स्पष्ट किया गया, नागरिकों के अधिकारों का उल्लेख किया गया।

रेलवे का राष्ट्रीयकरण
भारतीय रेलवे का राष्ट्रीयकरण आजादी के बाद देश का पहला बड़ा और निर्णायक कदम रहा। 1951 में रेलवे का सबसे पहले राष्ट्रीयकरण किया गया था और तब उसे कुल तीन जोन में बांटा गया। उस एक कदम के बाद से अब भारत दुनिया का एक सबसे बड़ा रेल तंत्र बन चुका है, जहां 119,630 किलोमीटर के ट्रैक बिछ चुके हैं और 7000 से ज्यादा स्टेशन बनाए गए हैं। इसके ऊपर अब भारत बुलेट ट्रेन की तरफ अपने कदम बढ़ा चुका है, वंदे भारत की संख्या भी लगातार बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
भारत का पहला एशियन गेम्स और फुटबॉल में गोल्ड
भारत को आजाद हुए चार साल ही हुए थे। चुनौतियों का अंबार खड़ा था, लेकिन फिर भी भारत ने एशियन गेम्स पहली बार होस्ट कर दुनिया के सामने अपनी अलग ही धमक दिखाई। राजधानी दिल्ली में आयोजित किए गए उस टूर्नामेंट में 11 देशों ने हिस्सा लिया, कुल 489 खिलाड़ी भारत आए और यादगार खेल देखने को मिला। अपने पहले एशियन गेम्स में भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 51 मेडल अपने नाम किए, वहां भी 15 तो स्वर्ण पदक रहे। जापान के बाद भारत एशियन गेम्स में दूसरे नंबर पर रहा। बड़ी बात ये रही कि उसने फुटबॉल में गोल्ड मेडल लाकर दिखा दिया। नंगे पैर फील्ड पर उतरे और इरान को ऐसा हराया कि आज भी उसे याद कर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
भारत का पहला IIT कैंपस और बड़ी क्रांति की ओर कदम
आजाद भारत बहुत महत्वकांक्षी था, उसे आने वाले सालों के लिए एक ऐसे देश का निर्माण करना था जो सशक्त हो, आधुनिक हो और सबसे बड़ी बात आत्मनिर्भर हो। उसी वजह से 1951 में ही भारत ने अपना पहला IIT कैंपर खड़गपुर में शुरू किया था। सरकार का उस समय ये मानना था कि अगर भारत को आगे बढ़ाना है तो स्किल मैनपावर की जरूरत है और वो तभी संभव हो पाता जब देश के पास होशियार इंजीनियर हों। अब उस एक क्रांतिकारी कदम ने आजाद भारत को अब तक 23 IIT दे दिए हैं, 20 IIM खुल चुके हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर में जो जबरदस्त विकास देखने को मिल रहा है, उसकी नींव भी ये खड़गपुर IIT कैंपस रहा है।

भारतीय जन संघ की स्थापना जो आगे चलकर बनी भाजपा
आजाद भारत में कांग्रेस ही एक सबसे मजबूत पार्टी थी। लोकतंत्र के लिहाज से ये ठीक नहीं था, ऐसे में एक अलग विचारधारा,एक अलग सिद्धांत के साथ भारतीय जन संघ की स्थापना की गई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही इस नई पार्टी की शुरुआत की और 1951 वाला पहला लोकसभा चुनाव भी लड़ा। इस पार्टी का एजेंडा साफ था, अखंड भारत की नींव रखना, पाकिस्तान के खिलाफ तुष्टीकरण की राजनीति को समाप्त करना और एक स्वंतत्र विदेश नीति की शुरुआत।
भारत का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर और होमी जहांगीर भाभा
भारत सिर्फ आजाद नहीं हुआ था, उसे आगे भी बढ़ना था। उसी सोच ने देश कई ऐसे वैज्ञानिक दिए जिन्होंने समय से आगे चलकर देश के विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। ऐसे ही एक महान वैज्ञानिक थे डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा जिन्होंने देश को उसका पहला न्यूक्लियर रिएक्टर अप्सरा दिया था। 1956 में इसे शुरू किया गया और एक साल बाद ही पीएम जवाहर लाल नेहरू ने इसे देश को समर्पित कर दिया। इस एक अविष्कार ने भारत को इतना सशक्त बना दिया कि उसने रेडियो आइसोटोप का उत्पादन शुरू कर दिया। रेडियो आइसोटो का चिकित्सा, खाद्य संरक्षण जैसे कामों में इस्तेमाल किया गया।
मदर इंडिया और ऑस्कर वाली उड़ान
भारत का सिनेमा वैसे तो कई साल पुराना रहा, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर मेहबूब खान की मदर इंडिया ने देश को अलग ही पहचान देने का काम किया। उस फिल्म को ऑसकर में बेस्ट फॉरन लैंग्वेज फिल्म’ में नॉमिनेट किया गया था। ये फिल्म सिर्फ एक वोट से ऑस्कर में जीतने से चूक गई थी। बताया जाता है कि तब ऑस्कर के चयनकर्ता भारत की संस्कृति से पूरी तरह अवगत नहीं थे, उसी वजह से फिल्म के कुछ सीन उन्हें समझ नहीं आए और इतिहास रचने से रह गया।

गोवा को सेना ने करवाया आजाद
भारत को आजाद हुए 14 साल हो चुके थे। कई रियासतें साथ आ गई थीं, लेकिन हैरानी इस बात की रही कि गोवा जैसा छोटा राज्य भारत का अभिन्न अंग नहीं बन पाया था। उस राज्य पर 1961 तक पुर्तगालियों का ही राज चल रहा था। लेकिन फिर करो या मरो की स्थिति देखते हुए सेना ने ऑपरेशन विजय चला दिया और देखते ही देखते एक भीषण युद्ध हुआ और पुर्तगलियों को गोवा से हमेशा के लिए खदेड़ दिया गया। ये युद्ध दो दिन तक चला जिसमें भारतीय सेना के 22 जवान शहीद हुए और पुर्तगालियों के भी 30 जवान मारे गए।
नेहरू की उदारता और चीन के साथ 1962 की जंग
आजाद भारत के दो सबसे बड़े दुश्मन रहे, एक पाकिस्तान तो दूसरा वो चीन जिस पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता। तभी तो जब जवाहर लाल नेहरू ने चीन को यूएन में शामिल करने की पैरवी की थी, तब सभी ने समर्थन दिया। लेकिन बाद में जब चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार जमाया और दलाई लामा भारत आ गए, उसके बाद से दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई। देखते ही देखते चीन ने बिना बताए कई ऐसे नक्शे जारी कर दिए जिनमें भारत के हिस्से भी उसके पाले में दिखाए जाने लगे। ये विरोध की शुरुआत हो चुकी थी। फिर अचानक से एक दिन चीन ने दोनों पूरब और पश्चिम दिश से आक्रमण कर दिया। भारतीय सेना तैयार नहीं थी, ऐसे में भारी नुकसान उसे उठाना पड़ा। बाद में चीन ने ही सीजफायद का ऐलान कर दिया और भारत का बड़ा हिस्सा उसके कब्जे में हमेशा के लिए चला गया।
नेहरू का निधन और एक अध्याय का अंत
27 मई 1964 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का निधन हो गया था। आजाद भारत को दिशा दिखाने में उनकी अहम भूमिका रही। जिस समय देश खुद को अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद भी असहाय सा महसूस कर रहा था, नेहरू ने ही अपने नेतृत्व में ना सिर्फ देश को आगे बढ़ाया बल्कि कई ऐसे कदम उठाए जो आगे चलकर काफी अहम साबित हुए। कुछ उनके जीवन के ब्लंडर रहे तो कुछ कामों के लिए उन्हें विपक्ष से भी सरहाना मिली।

हरित क्रांति की शुरुआत और खेती को मिला नया आयाम
1960 के दशक में भारत के सामने नई चुनौती थी। उसे अपनी खेती की उपज को भी बढ़ाना था और आधुनिकता की ओर भी चलना था। इसी वजह से हरित क्रांत शुरू की गई जिसका श्रेय एम एस स्वामीनाथन को जाता है। कृषि उत्पादकता में कैसे उछाल लाया जाए, उसी उदेश्य के साथ ये योजना शुरू की गई थी। आने वाले सालों में भारत को इस योजना का पूरा फायदा मिला। बीजों की गुणवक्ता में बदलाव आने लगा और कीटनाशक के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर दिया गया।
पाकिस्तान ने फिर की हिमाकत
1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच में दूसरा युद्ध। Operation Gibraltar शुरू हो गया था। कश्मीर का राग अलापते हुए फिर पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने की हिमाकत की। भारतीय सेना ने उस समय मुंहतोड़ जवाब दिया और पाकिस्तान की करारी हार हुई। उसी समय तब के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए और शांति स्थापित करने का एक और मौका मिला। ताशकंद के तहत दोनों भारत और पाकिस्तान अगस्त वाली स्थिति में वापस चले गए लेकिन पाकिस्तान को फिर कड़ा सबक सिखाया गया।
क्रिकेट को मिला सुनील गावस्कर और रिकॉर्ड की झड़ी
आजादी के बाद धीरे-धीरे भारत में क्रिकेट का शौक बढ़ता जा रहा था। उस शौक ने 1971 में तब परवान चढ़ा जब भारत को उसका लिटल मास्टर सुनील गावस्कर मिला। वेस्टइंडीज के खिलाफ डेब्यू करने जा रहे गावस्कर ने पहली ही टेस्ट सीरीज में रिकॉर्डों की बरसात कर डाली। 774 रन बनाए, 155 के करीब का औसत रहा। गावस्कर ने अपने करियर में टेस्ट में 10 हजार से ज्यादा रन बनाए, 34 शतक जड़े और कई यादगार पारियां खेलीं।

पाकिस्तान के साथ तीसरा युद्ध और बांग्लादेश का जन्म
पाकिस्तान आजादी के 24 साल बाद भी अपनी नीयत में कोई बदलाव नहीं कर पाया था। भारत ने हर बार शांति समझौता किया, लेकिन उसने सिर्फ धोखा देने का काम किया। उस समय के ईस्ट पाकिस्तान में बंगाली लोगों की संख्या ज्यादा थी। लेकिन पाकिस्तान ने क्योंकि सिर्फ एक धर्म को तवज्जो दी, वो बंगाली भाषा को कभी सम्मान नहीं दे पाया। ना भाषा को सम्मान दिया और ना ही उसकी संस्कृति को। इसी वजह से जब ईस्ट पाकिस्तान की आवामी लीग के नेता मुजिबुर रहमान ने चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की, वेस्ट पाकिस्तान ने उस जनादेश को मानने से इनकार कर दिया। उसी के बाद पाकिस्तान का ईस्ट पर अत्याचार शुरू हुआ, हजारों के शरणार्थी भारत आए और वहीं से पाकिस्तान के साथ तीसरा युद्ध शुरू हो गया। कई महीने चले उस युद्ध के बाद भारत की जीत हुई और बांग्लादेश आजाद हो गया।
विकास के साथ प्रकृति भी, चिपको आंदोलन का आगाज
1973 में भारत विकास की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा था, लेकिन किस कीमत पर, कई जगहों पेड़ काटे जा रहे थे, जंगल साफ हो रहे थे। लेकिन एक राज्य ने उस समय अपनी आवाज उठाई, ऐसी मुहिम शुरू की कि उसे इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया गया। चिपको आंदोलन की शुरुआत 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले से हुई थी। गौरा देवी की अगुवाई में महिलाओं के एक गुट ने पेड़ों को गले लगाना शुरू कर दिया। ये एक अहिंसक अभियान था जहां पर सिर्फ पेड़ों को गले लगाकर बड़े-बड़े बिल्डरों से लेकर ठेकेदारों को चुनौती दी गई जो इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर पेड़ काटना चाहते थे।
जय प्रकाश नारायण का उदय और गैर कांग्रेसी राजनीति
1974 में बिहार से इंदिरा सरकार के खिलाफ विरोध की एक तेज आवाज गूंजी। शुरुआत में प्रदर्शन कुछ छात्रों का रहा, बिहार विधानसभा को भंग करने की मांग रही। रिटायरमेंट की उम्र में जेपी को फिर राजनीति में लाने की मांग उठी। उस एक मांग ने जेपी के जीवन को बदल कर रख दिया और एक छोटे मुद्दे के लिए शुरू हुआ आंदोलन संपूर्ण क्रांति तक जा पहुंचा। पूरे देश में जेपी ने समर्थकों को एकजुट किया, इंदिरा सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन किया और देखत ही देखते जेपी आंदोलन सुर्खियों में आ गया।

आपातकाल का समय और इंदिरा का पतन
आजादी के 28 साल बाद राजनीतिक तौर पर देश ने अपना सबसे काला अध्याय देखा। उसने आपातकाल का दंश झेला। 25 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल का ऐलान कर दिया। नागरिकों के अधिकार समाप्त हो गए, राजनीतिक कार्यकर्ता गिरफ्तार हो गए, पत्रकारिता पर सेंसरशिप की कैची तेजी से चल पड़ी। इलहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था, उसके बाद ही इस आपातकाल की पटकथा लिखी गई जो दो साल तक जारी रही।
पहली गैर कांग्रेसी सरकार और अंदरूनी झगड़े
भारत को 1977 में जाकर पहली गैर कांग्रेसी सरकार मिली। आपातकाल के खिलाफ विरोध करके ही जनता ने जनता पार्टी को वोट दिया और कई छोटो दलों ने साथ मिलकर तब सरकार बनाई। मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार किया गया। बड़ी बात ये रही कि पूर्ण बहुमत वाली सरकारों का दौर खत्म हुआ और पहली गठबंधन सरकार बनी। लेकिन जनता पार्टी ने जिस तरह का गठबंधन किया था, वहां सिर्फ इंदिरा का विरोध रहा, विचारधाराएं कभी मेल नहीं खाईं। इसी वजह से 1980 के आते-आते जनता पार्टी की सरकार गिर गई और कांग्रेस ने फिर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की।
एशियन गेम्स और कलर टीवी की सौगात
1982 भारत के लिए अहम साल रहा। तीन दशक बाद देश में फिर एशियन गेम्स तो हो ही रहे थे, इसके साथ-साथ कलर टीवी की शुरुआत भी होने जा रही थी। इंदिरा गांधी नई-नईं सत्ता में वापस आई थीं, ऐसे में उन्होंने सियासी ताकत दिखाते हुए एक बड़ा ऐलान कर दिया। एशियन गेम को कलर टीवी पर दिखाने की बात हो गई। दूरदर्शन को सिर्फ 18 महीने का वक्त दिया गया और साफ कहा गया कि खुद को कलर टेक्नोलॉजी की ओर परिवर्तित किया जाए।
भारत का पहला क्रिकेट वर्ल्ड कप
भारत को क्रिकेट से प्यार था, लेकिन उसे रिटर्न गिफ्ट 1983 में मिला जब पहला क्रिकेट वर्ल्ड कप अपने नाम किया गया। भारत किसी की फेवरेट टीम नहीं थी, कोई सोच ही नहीं रहा था कि भारत क्वालिफाई भी कर पाएगी। वैसे भी वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया वाले ग्रुप में ही भारत को डाल दिया गया था, ऐसे में कपिल देव की टीम के लिए चुनौतियां शुरुआत से ही ज्यादा रहीं। लेकिन पड़ाव दर पड़ाव आगे बढ़ा गया, एक नहीं चला तो दूसरे ने कमाल किया। इस एकजुटता वाले प्रयास ने भारत को फाइनल में पहुंचाया और फिर अजय कहे जाने वाली तब की वेस्टइंडीज को 43 रनों से मात दी।

राकेश शर्मा की स्पेस वाली उड़ान
भारत 1983 तक स्पेस की दुनिया को काफी देख चुका था। रॉकेट लॉन्च हो गए थे, सैटेलाइट छोड़ दी गई थीं। लेकिन अब लंबी छलांग का समय था। वो छलांग भारत के एस्ट्रोनॉट राकेश शर्मा ने 3 अप्रैल 1984 को लगाई जब वे एक सोविएंट मिशन के तहत पहली बार स्पेस में गए। जब इंदिरा गांधी ने राकेश से स्पेस में पूछा था कि भारत कैसा दिखता है, उनका जवाब रहा- सारे जहां से अच्छा, हिंदुस्तान हमारा। वो शब्द आज भी लोगों के कान में गूंजते हैं।
ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या और सिख दंगे
एक जून 1984 को पंजाब के गोल्डन टैंपल में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया। खालिस्तानी समर्थक जरनैल सिंह भिंडरांवाले और उसके समर्थकों ने गोल्डन टैंपल को अपने कब्जे में ले लिया था। बड़ी कार्रवाई की जरूरत थी, इंदिरा गांधी ने वैसा ही फैसला भी किया। उन्होंने गोल्डन टैंपल में सेना की कार्रवाई को हरी झंडी दिखा दी। सेना सफल रही, भिंडरावाले की मौत हुई और गोल्डन टैंपल को बचा लिया गया। लेकिन सिखों का एक समुदाय आक्रोशित हो गया। उनकी पावन जगह पर कितना खून-खराबा हुआ। उसी आक्रोश ने 31 अक्टूबर 1984 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या करवा दी। उन्हीं के दो सिख बॉडीगार्ड ने उस हत्या को अंजाम दिया।
इंदिरा गांधी की हत्या ने देश को एक दंगे में धेकल दिया। ये दंगे भीषण थे, इतने कि इसने 1000 से ज्यादा सिखों को मार डाला। बदले की भावना से हुए इस बवाल भारत की आजादी को फिर कलंकित करने का काम किया।
शाह बानो का मामला और राजीव का फैसला
आजादी के बाद मुस्लिम महिलाओं के हक में सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में निर्णायक फैसला सुनाया था। कहा गया था कि मुस्लिम महिला को CrPC के तहत गुजारा भत्ता दिया जाएगा। लेकिन जैसी देश की राजनीति रही, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले ने मुस्लिम समुदाय को नाराज कर दिया, कह सकते हैं कि पुरुषों को नाराज कर दिया। राजीव गांधी की सरकार डर गई, हिम्मत ऐसी दिखाई कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया। अब राजीव गांधी ने उस फैसले को पलटा, हिंदुओ में संदेश गया कि तुष्टीकरण की राजनीति की जा रही है। ऐसे में फिर राजीव ने बाबरी मस्जिद के विवादित हिस्से को खुलवा दिया। यानी कि राजनीति के चक्रव्यूह में राजीव गांधी पूरी तरह फंस गए थे।

बोफर्स घोटाला और राजीव गांधी की सरकार का गिरना
रक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़े घोटाले ने भारत की नींव को हिलाकर रख दिया था। ये साल 1986 की बात है जब कहा गया कि बोफर्स गन खरीदी तो गईं, लेकिन स्वीडन और भारत दोनों ही जगह सरकारी अधिकारियों ने पैसे खाए। भ्रष्टाचार की आंच राजीव गांधी तक आई, वीपी सिंह ने भी मोर्चा खोल दिया। कह सकते हैं कि ये आजाद भारत की पहली ऐसी सरकार थी जिसे भ्रष्टाचार की करारी चोट लगी और सीधे से बेदखल होना पड़ गया। फिर 1989 में वीपी सिंह ने बतौर प्रधानमंत्री शपथ ले ली थी।
कश्मीर में अलगाववाद की शुरुआत और अशांति का दौर
जम्मू-कश्मीर भारत का हमेशा से अभिन्न अंग रहा, लेकिन पड़ोसी पाकिस्तनी की तेढ़ी नजर ने हर बार इस घाटी को अशांत करने का काम किया। ऐसी ही एक खतरनाक और विध्वंसक दौर 1989 में तब शुरू हुआ जब कश्मीर में अलगावद सिर उठाने लगा। इसके ऊपर 8 दिसंबर 1989 को तब के तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मई सईद की बेटी का अपहरण कर लिया गया। पांच आतंकियों कि रिहाई के बाद सईद की बेटी को छोड़ा गया। उस एक फैसले ने भी घाटी में आतंकवाद को और ज्यादा उग्र करने का काम किया।
मंडल कमिशन का आना और कमंडल की राजनीति
भारत की राजनीति आजादी के बाद कई दौर से गुजरी। लेकिन सबसे बड़ा मोड़ साल 1989 में आया जब कुछ महीनों वाली वीपी सिंह की सरकार ने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को हरी झंडी दिखा दी। अब ओबीसी खुश थे, नौकरियों में उन्हें तवज्जो मिलने जा रही थी। लेकिन एक को खुश करने के लिए दूसरों का क्या? यहीं सवाल देश सर्वणों के मन में आया और सड़कों पर फिर एक बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, हिंसक घटनाएं हुईं, लेकिन फैसला वापस नहीं हुआ।
इसके ऊपर देश में एक दूसरी तरह की सियासत भी जन्म ले रही थी। ये वर्तमान बीजेपी का पुराना दौर था जो धर्म के नाम पर वोटरों का ध्रुवीकरण करना चाहती थी। अयोध्या का राम मंदिर ऐसा ही एक मुद्दा था जिसने भी तभी सुर्खियां बटोंरी जब मंडल कमिशन आया। तभी राजनीति के उस दौर को मंडल बनाम कमंडल के तौर पर याद किया गया।
आजाद भारत का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार
1991 में भारत बड़े संकट से जूझ रहा था। कर्ज बढ़ता जा रहा था, विदेशी मुद्रा समाप्त हो रही थी। उस नरसिम्हा राव की सरकार ने अपना बजट पेश किया। सभी को उम्मीद थी कि भविष्य की राह दिखाई जाएगी, अंधकार से देश को बाहर लाया जाएगा। ऐसा हुआ भी क्योंकि तब के वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने सबसे बड़ा आर्थिक सुधार करते हुए निजीकरण, उदारीकरण, वैश्वीकरण के लिए दरवाजा खोला दिया। कई ने इसका विरोध किया, लेकिन क्योंकि उनका विश्वास अटूट रहा, उस एक कदम का फायदा आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलता है। विदेशी निवेश में जो तेजी दिखती है, उसकी नींव इस फैसले में छिपी है।

राजीव गांधी की हत्या और LTT कनेक्शन
राजीव गांधी एक बार फिर सत्ता में आने को तैयार थे। ये साल 1991 की बात है, चुनाव नजदीक थे, प्रचार जोरों पर चल रहा था। राजीव गांधी तमिलनाडु में एक विशाल जनसभा को संबोधित करने गए थे। सबकुछ सही जा रहा था, मंच पर एक महिला गुलदस्ता लेकर उन्हें देने आई और अचानक से एक तेज धमाका हुआ। राजीव गांधी ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया और इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी की भी हत्या कर दी गई। बाद में पता चला कि LTT की एक कार्यकर्ता ने सुसाइड बॉम्बर बन हमले को अंजाम दिया।
बाबरी मस्जिद विध्वंस और बॉम्बे ब्लास्ट
भारत तेज गति से विकास कर रहा था, आजादी के इतने सालों बाद आत्मनिर्भर भी होने जा रहा था। लेकिन दूसरी तरफ देश की राजनीति उबाल मार रही थी। अयोध्या में राम मंदिर वाली मुहिम बहुत तेज हो गई थी। उसी तेजी ने 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद गिरवा दी। उस एक घटना की हजारों तस्वीरें आज भी प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़ा करती हैं। बाबरी विध्वंस के बाद 12 मार्च 1993 को मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुए, 257 लोगों की मौत हो गई। उन बम धमाकों में डी कंपनी का हाथ माना गया यानी कि दाऊद इब्राहिम का।
रोमांस किंग शाहरुख खान का जलवा
बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान को 1995 में अपने करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म मिली- दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे। आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बनी ये फिल्म ना सिर्फ ब्लॉक्बस्टर साबित हुई, बल्कि इसे कल्ट का दर्जा भी दिया गया। फिल्म में शाहरुख के अपोजिट काजुल को रखा गया था। कई सालों बाद ये फिल्म हालों में फिर रिलीज करवा दी जाती है।
बीजेपी की पहली सरकार जो 13 दिन में गिरी
साल 1996 में आजादी के बाद देश में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम के रूप में शपथ ली। लेकिन वो सरकार सिर्फ 13 दिन चली क्योंकि वाजपेयी बहुमत साबित नहीं कर पाए। ये आजाद भारत में किसी भी पीएम का सबसे छोटा कार्यकाल रहा। इसके बाद अगले चुनाव में फिर जीत दर्ज कर वाजपेयी ही पीएम बने, लेकिन ये सरकार भी 13 महीनों में गिर गई। बताया जाता है कि सिर्फ एक वोट ने उस सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। इसके बाद 1999 में पूरे पांच साल के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम के रूप में काम किया।
पोखरण में परमाणु परीक्षण, सशक्त भारत की पहचान
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के पीएम रहते हुए भारत ने साल 1998 में ऑपरेशन शक्ति के तहत पांच परमाणु बमों का पोखरण में सफल परीक्षण किया। भारत के मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम ने उस प्रोजेक्ट की अगुवाई की और सफलतापूर्वक उसे अंजाम तक भी पहुंचाया। भारत पर उसके बाद कई पाबंदियां जरूर लगीं, लेकिन देश एक परमाणु हथियार वाला मुल्क बन चुका था।
पाकिस्तान के साथ चौथा युद्ध, करगिल फतेह
पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा जमाने की एक और नाकामयाब कोशिश साल 1999 में की थी। पूरी ताकत के साथ पाकिस्तानी आर्मी घुसपैठ की थी और उसी वजह से भारत को भी मुंहतोड़ जवाब देना पड़ा। बड़ी बात ये रही कि उस युद्ध में भारत की जीत तो हुई ही, पहली बार पूरी दुनिया ने टीवी पर उस युद्ध का प्रसारण भी देखा। कई दिग्गज पत्रकारों की ग्राउंड रिपोर्टिंग भी तब चर्चा का विषय बन गई थी।

भारत के लोकतंत्र पर आतंकी हमला
जिस संसद में भारत की नींव रखी गई थी, उसी पर पाकिस्तान से आए जैश ए मोहम्मद के आतंकियों ने हमला किया था। 13 दिसंबर 2001 को जब संसद में 100 के करीब नेता मौजूद थे, तब पांच आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की। बताया गया कि सरकारी स्टीकर लगाकर आतंकी एक गाड़ी से सदन के परिसर में दाखिल हो गए थे और उसके बाद ही हमले को अंजाम दिया गया। उस हमले में कुल 9 लोगों की मौत हुई, पांच तो आतंकी रहे, बाकी दूसरे बचाने वाले लोग।
गोल्डन क्वाडिलेट्रल परियोजना और इंफ्रास्ट्रक्चर में क्रांति
भारत का सबसे बड़ा हाईवे प्रोजेक्ट शुरू करने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को देना पड़ेगा। उनकी तरफ से बड़ा कदम उठाते हुए गोल्डन क्वाडिलेट्रल परियोजना की शुरुआत की गई थी। उस योजना के तहत चार प्रमुख महानगरों को चार दिशाओं – दिल्ली (उत्तर), चेन्नई (दक्षिण), कोलकाता (पूर्व) और मुंबई (पश्चिम) से जोड़ने की तैयारी थी।
गुजरात के दंगे और एक्शन पर रिएक्शन
साल 2001 में गुजरात ने अपने इतिहास के सबसे भयंकर दंगे देखे थे। पहले 27 फरवरी को 57 करसेवकों की ट्रेन में जलने से मौत हो गई। उसके बाद बदले की भावना के साथ दंगे हुए और 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। कई एजेंसियों ने समय-समय पर इस मामले की जांच की, घंटों पूछताछ चली, लेकिन ज्यादा कुछ कभी सामने नहीं आ पाया। ये अलग बात रही कि इस दंगे गुजरात की राजनीति में ध्रुवीकरण को और ज्यादा तेज कर दिया था।
दिल्ली को मिली मेट्रो की सौगात, नई लाइफलाइन
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजधानी को मेट्रो की सौगात दी थी। यात्रियों का सफर इतना आसान कर दिया गया कि ट्रैफिक में फंसने के बजाय ज्यादातर लोग अब टाइम पर ऑफिस पहुंच रहे हैं। वैसे बाद में कई और राज्यों तक इस रेल नेटवर्क का विस्तार हुआ।
क्रिकेट का नया अध्याय- IPL की दस्कत
भारत में साल 2007 में सबले टी20 विश्व कप हुआ, उस छोटे फॉर्मेट का क्रेज ऐसा रहा कि BCCI ने 13 सितंबर 2007 को IPL टूर्नामेंट का ऐलान कर दिया। इसे क्रिकेट का मॉर्डन रूप कहा गया जहां पैसा था, ग्लैमर था, रोमांच था और सबसे बढ़कर क्रिकेट का जबरदस्त डोज था। पहला सीजन इतना सफल रहा कि आगे चलकर हर साल IPL ही क्रिकेट का सबसे बड़ा त्योहार बन गया।
भारत का पहला मून मिशन, चंद्रयान की उड़ान
इसरो ने भारत के स्पेस मिशन को फर्श से अर्श तक पहुंचाने के लिए बहुत मेहनत की। उस मेहनत का ही नतीजा रहा कि भारत ने साल 2008 में अपने मिशन चंद्रयान को चांद पर भेजने का काम किया। अक्टूबर 2008 में लॉन्च हुए इस मिशन का काम चांद पर वॉटर मॉलिक्यूल ढूंढना था।
भारत का पहला ओलंपिक गोल्ड मेडल
साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक में भारत के अभिनव बिंद्रा ने क्रांति करते हुए एयर राइफेल इवेंट में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। वे ऐसा करने वाले पहले भारतीय बने। अभिनव बिंद्रा चंडीगढ़ के एक छोटे से जिले से आते थे, सिर्फ मेहनत और कड़ी ट्रेनिंग के दम पर उन्होंने भारत को ये गोल्ड दिलवाया था। बड़ी बात ये रही कि जिस राइफल इवेंट में भारत कभी नहीं ज्यादा प्रभावित कर पाया, उस स्पोर्ट में अभिनव ने गोल्ड हासिल कर दिखाया।
पाक की नापाक साजिश और 26/11 हमला
2008 में मायानगरी एक बार फिर आतंकी हमले से दहल उठी थी। रेलवे स्टेशन, दो होटल, एक अस्पताल में आतंकियों ने हमला किया था। तीन दिन तक आतंकियों ने अपनी हैवानियत जारी रखी। उस हमले में 166 मासूम लोगों की मौत हुई, कई घायल बताए गए। कई दूसरे देश के नागरिक भी इस हमले में अपनी जान गंवा गए थे। हमेशा की तरह पाकिस्तान अपनी भूमिका से इनकार करता रहा, लेकिन दुनिया के सामने उसे कूटनीतिक चैनलों के जरिए कई मौकों पर एक्सपोज किया गया।
2011 वर्ल्ड कप और युवराज सिंह का गदर
28 साल बाद 2 अप्रैल 2011 को महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में भारत ने अपना एक और वर्ल्ड कप हासिल किया। फाइनल में जरूर धोनी और गौतम गंभीर ने शानदार बल्लेबाजी की, लेकिन मैन ऑफ द टूर्नामेंट युवराज सिंह बने। उनकी तरफ से विकटे चटकाए गए, बल्लेबाजी की गई और शानदार फील्डिंग का भी नमूना पेश किया।
अन्ना आंदोलन और यूपीए पर दबाव
2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने एक देश व्यापी आंदोलन शुरू किया। तब की यूपीए सरकार पर दबाव बनाने के लिए उनकी तरफ से भी कई दिनों का एक अनशन भी किया गया। मांग की गई थी कि लोकपाल बिल तुरंत पारित करवाया जाए और उसमें नेताओं को भी शामिल रखा जाए। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया जैसे कई नेता उस समय सक्रिय हो गए थे और आने वाले सालों में राजनीति में कदम रखने जा रहे थे।
निर्भया कांड और भारत में महिला सुरक्षा पर नई बहस
16 दिसंबर 2012 को निर्भया कांड हुआ। एक मासूम की अस्मिता को चोट पहुंचाई, विरोध में पूरा देश सड़क पर आ गया। इंडिया गेट पर हजारों की भीड़ ने पुलिस का सामना किया, दूसरे कई राज्यों से भी न्याय की मांग उठी। उस दबाव की वजह से ही कई कानूनों को बदला गया तो कई को और ज्यादा सख्त किया गया। बताया जाता है कि उस कांड की वजह से ही यूपीए को अपनी सत्ता गंवानी पड़ गई थी।
भारत की मंगल यात्रा जिसने रचा इतिहास
भारत ने चांद तक का सफर तो तय किया ही, लेकिन कुछ नया करने के लिए मंगलयान मिशन की शुरुआत की गई। जिस समय दूसरे देश उस मिशन में फेल हो रहे थे, भारत की तरफ से पांच नवंबर को मंगलयान मिशन को लॉन्च कर दिया गया। 24 सितंबर, 2024 को मंगलयान मार्स तक भी पहुंच गया था।

मोदी का उदय और पूर्ण बहुमत वाली सरकार
साल 2014 देश की राजनीति में नया अध्याय लाने वाला साबित हुआ। उस साल हुए लोकसभा चुनाव ने देश को तीन दशक बाद गठबंधन वाली सरकारों से मुक्ति दिलवाने का काम किया। बड़ी बात ये रही कि इसके बाद हुए अगले लोकसभा चुनाव में भी जनता ने मोदी को ही बंपर जीत दिलवाई और फिर प्रंचड बहुमत के साथ सरकार बनाने का मौका दिया।
नोटबंदी का ऐलान और भ्रष्टाचार पर चोट का दावा
8 नवंबर 2016 को भारत ने आजादी के बाद एक बार फिर किसी सरकार द्वारा ऐसा कदम देखा जिसने सीधे तौर पर पूरे देश को ही हिला कर रख दिया। रात आठ बजे पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा ऐलान किया गया कि 12 बजे के बाद से 500 और 1000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। उस एक फैसले ने लोगों को बैंक के बाहर खड़ा कर दिया और लंबी कतारें हर जगह देखने को मिलीं। दावा किया गया कि भ्रष्टाचार को खत्म करने और फेक करेंसी के रैकेट तो तोड़ने के लिए ये सबकुछ किया गया।
आजाद भारत का सबसे बड़ा कर सुधार और राजनीति
एक जुलाई 2017 को देश में पहली बार जीएसटी लागू किया गया। इसे आजाद भारत का सबसे बड़ा कर सुधार बताया गया। क्रेडिट लेने की होड़ जरूर दोनों कांग्रेस और बीजेपी में दिखी, लेकिन जानकारों ने माना कि ये एक निर्णायक कदम साबित हुआ। बड़ी बात ये रही कि कुछ महीनों के संघर्ष के बाद हर महीने का जीएसटी कलेक्शन तेजी से बढ़ता चला गया।
भारतीय वायुसेना का पराक्रम और पाक पर एयरस्ट्राइक
2019 लोकसभा चुनाव से पहले पुलवामा हमले में भारत के 40 जवान शहीद हो गए थे। देश आक्रोशित था, सरकार चिंता में थी, लेकिन एक्शन प्लान तैयार कर लिया गया था। पाकिस्तान के उस एक हमले का जवाब भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक के जरिए दिया। बताया गया कि वायुसेना ने जैश के कई आतंकी ठिकानों को खत्म कर दिया था। उस कार्रवाई का कोई आधिकारिक आकंड़ा तो कभी जारी नहीं किया गया, लेकिन दावा है कि 300 से ज्यादा आतंकी मारे गए।
जम्मू-कश्मीर 370 से किया गया मुक्त
5 अगस्त 2019 को आजाद भारत का जम्मू-कश्मीर पर सबसे बड़ा फैसला लिया गया। दोनों सदन से बिला ला अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। इस फैसले पर अभी भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है।
राम मंदिर का रास्ता साफ, सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी
9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ कर दिया था। मुस्लिम पक्ष को भी मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने की बात कही गई। बड़ी बात ये रही कि उस एक फैसले के बाद आशंका जाहिर की गई थी कि दंगे भड़क सकते थे, लेकिन कानून व्यवस्था एकदम दुरुस्त रही और दोनों हिंदू और मुस्लिम पक्ष कोर्ट के फैसला का शांति से सम्मान किया।
भारत में कोरोना का पहला मामला, सबसे बड़ी महामारी
भारत में कोरोना की दस्तक 30 जनवरी 2020 को हुई थी। इसके बाद कोरोना की पहली और फिर दूसरी लहर ने लाखों लोगों की जान ली। लेकिन उस कोरोना काल में जिस तरह से भारत ने तेजी से वैक्सीन बनाई, अपने नागरिकों का तेज गति से टीकाकरण किया, पूरी दुनिया ने उस कौशल की तारीफ की। भारत में कोरोना से लाखों लोगों की मौत हुई, बताया जाता है कि कई तो ऑक्सीजन की कमी की वजह से जान गंवा बैठे।
अभिनव के बाद नीरज चोपड़ा चमके, गोल्ड पर ठोका दाव
7 अगस्त, 2021 को नीरज चोपड़ा ने भारत को ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाकर दिया। जैवलिन थ्रो में 87.58m की ऐतिहासिक थ्रो ने कई कीर्तिमान हमेशा के लिए ध्वस्त कर दिए। उसके बाद कई और टूर्नामेंट्स में नीरज के प्रदर्शन ने भारत को गौरवान्वित करने का मौका दिया।शांत हो गईं भारत की स्वर कोकिला
शांत हो गईं भारत की स्वर कोकिला
भारत रत्न और स्वर कोकिला लता मंगेशकर का 6 फरवरी को निधन हो गया था। आजाद भारत की सबसे सुरीली आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई थी। लता मंगेशकर ने अपने सिंगिंग करियर में 14 भाषाओं में करीब 50 हजार से ज्यादा गाने रिकॉर्ड किए थे। 1960 के दशक में तो उनकी तरफ से 30 हजार गाने रिकॉर्ड किए गए, उस वजह से उन्हें गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल किया गया।
भारत के चंद्रयान 3 ने रचा इतिहास
भारत के चंद्रयान 3 ने इतिहास रचते हुए 23 अगस्त को चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की। भारत का ये मून मिशन अत्याधुनिक रहा, सस्ता रहा और सबसे बड़ी बात पुरानी गलतियों से सीखकर और ज्यादा सटीक भी साबित हुआ।
मोदी ने बनाई तीसरी बार सरकार
2024 के शुरुआत महीने पूरी तरह सियासी और चुनावी रहे। देश ने लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व में हिस्सा लिया और फिर एनडीए की सरकार केंद्र में बन गया। पीएम मोदी के मुताबिक 400 पार का नारा तो सच नहीं हुआ लेकिन फिर भी सरकार बना लेना भी बड़ी बात रही। बीजेपी खुद तो बहुमत हासिल नहीं कर पाई, लेकिन अपने सहयोगियों के सहारे पूर्ण बहुमत हासिल किया।
पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर
पहलगाम में इस साल 22 अप्रैल को आतंकी हमला हुआ था जिसमें 26 पर्यटकों की दर्दनाक मौत हुई। उसके बाद भारत की तीनों ही सेनाओं ने मिलकर पाकिस्तान को सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया और 100 से ज्यादा दहशतगर्दों को मौत के घाट उतारा। बाद में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कई सारे एयर डिफेस सिस्टम भी ध्वस्त कर दिए।