Tiger Poaching In India: देश में पिछले तीन सालों में करीब 100 चीतों की मौत हुई है, शिकारियों ने ही अपने बड़े नेटवर्क के दम पर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया है। इंडियन एक्सप्रेस ने एक विस्तृत जांच की है जिसमें पता चला है कि शिकार करने का तरीका अब पूरी तरह बदल चुका है। अब तकनीक का इस्तेमाल होने लगा है, हवाला नेटवर्क के जरिए करोड़ों का कारोबार हो रहा है और उन्हें ट्रेस करना भी मुश्किल हो रहा है। इस समय पांच राज्यों के जांच अधिकारी, 4 सेंट्रल एजेंसियां और इंटरपोल साथ मिलकर इस शिकारी गैंग को एक्सपोज कर रहे हैं। जांच में पता चला है कि इस रैकेट के तार नेपाल-म्यांमार तक फैले हैं।
शिकारी हो रहे एडवांस
इंडियन एक्सप्रेस ने भी जब अपने स्तर पर जांच की, जब उसने पुराने अरेस्ट रिकॉर्ड्स को खंगाला, जब वन अधिकारियों से बात की, जब पुराने उन शिकारियों से बात की जो इनफॉर्मर्स बन गए, चौंकाने वाली डिटेल्स सामने आई हैं। पता चला है कि मोबाइल के जरिए सारा ऑपरेशन चलाया जा रहा है, अब कम से कम बिचौलियों को शामिल किया जा रहा है। इसके अलावा नारकोटिक्स और आर्म्स सिंडिकेट्स के लोगों से भी ये शिकारी संपर्क साध रहे हैं, उनके जरिए भी अपने नेटवर्क को मजबूत कर रहे हैं।
चीतों की कितनी कीमत, कैसे हो रही तस्करी?
एक दर्जन से भी ज्यादा गिरफ्तारी इस मामले में हो चुकी हैं, सात हफ्तों के अंदर में महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश के वन अधिकारी और Centre’s Wildlife Crime Control Bureau (WCCB) ने मिलकर इस कार्रवाई को अंजाम दिया है। इन अधिकारियों को पता चला है कि यह मॉड्यूल ज्यादातर म्यांमार बॉर्डर के जरिए रन किया जा रहा है। इस पूरे रैकेट को एक्सपोज करने के लिए सीबीआई काम कर रही है, डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) भी साथ दे रही है और अब तो ईडी भी सक्रिय हो चुकी है। इन सभी एजेंसियों ने ही अब तक 7.5 से 8 करोड़ तक का पेयमेंट ट्रैक किया है, माना जा रहा है कि 90 चीतों की यही रकम है। इसक हिसाब से एक चीते की कीमत 8 से 12 लाख मानी जा रही है।
यहां भी ऐसा नहीं है कि चीतों के मौत का आंकड़ा सिर्फ 100 पर सिमट सकता है, उससे ज्यादा भी यह जा सकता है। इसका कारण यह है कि शिकारियों का बिजनेस सिर्फ म्यांमार रूट से नहीं चल रहा है बल्कि नेपाल तिब्बत रूट का इस्तेमाल भी हो रहा है। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक चीतों की मौत का आंकड़ा 100 से लेकर कहीं तक भी जा सकता है। समझने वाली बात यह भी है कि इस पूरे रैकेट में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के गैर-बाघ जंगलों से से होने वाले तेंदुए की खाल और हड्डियों के व्यापार को शामिल नहीं किया गया है।
देश में कितने चीते, कहां तक फैला रैकेट?
अब यह रैकेट कितना बड़ा है, इसे कुछ दूसरे आंकड़ों से समझा जा सकता है। भारत में इस समय सिर्फ 58 टाइगर रिजर्व्स में आठ ऐसे जहां पर 100 या उससे ज्यादा चीते मौजूद हैं। वहीं देश में इस समय 3682 चीते मौजूद हैं। वाइल्ड लाइफ बायोलॉजिस्ट डॉक्टर धर्मेंद्र खंडल कहते हैं कि राजस्थान के रणथम्बोर टाइगर रिजर्व को तो इस जांच का हिस्सा तक नहीं बनाया गया है। लेकिन कोविड के बाद से इस रिजर्व में भी 40 चीतों की मौत हुई है, वहां भी 14 पुरुष और 6 महिला चीतों की मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है। ज्यादा उम्र, अंतर-प्रजाति संघर्ष की वजह से तो सिर्फ 20 चीतों की मौत हुई है। लेकिन बाकी कैसे गायब हुए, उनकी कोई जानकारी नहीं।
जानकार मानते हैं कि अगर इतना बड़ा रैकेट सक्रिय था, अगर इतने चीतों की मौत हुई, अगर शिकारी इतने बेखौफ हुए, इसमें सिस्टम की लापरवाही भी मायने रखती है क्योंकि वो इसे पकड़ नहीं पाई। इसके ऊपर जो एनजीओ इस दिशा में काम करते हैं, उन्होंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया। इतना जरूर है कि जुलाई 2023 में दो बड़े शिकारियों को जांच एजेंसी ने गिरफ्तार किया था- एक रहा अजीत सियाल परिधि जिसे मध्य प्रदेश से पकड़ा गया था, दूसरा रहा सोनू सिंह बवारिया जिसे महाराष्ट्र से धर दबोचा गया था। लेकिन जब 2024 में असल में शिकारियों का रैकेट ज्यादा सक्रिय हुआ, उस समय इन दोनों को जमानत मिल गई।
शिकारी गैंग के दो सबसे बड़े अपराधी
अब जमानत पर बाहर आने के बाद एजेंसियों को अजीत की तो कोई खबर नहीं लगी, वो पूरी तरह रडार से बाहर हो गया, लेकिन सोनू बवारिया के पीछे जरूर जांच एजेंसियां लगी रहीं। 6 महीने तक उसकी गतिविधियों पर नजर रखी गई। लेकिन कभी इनफॉर्मर बन तो कभी दूसरे तरीके से वो भी अधिकारियों की आंखों में धूल झोकता रहा। वैसे इस समय भी जो इस रैकेट को एक्सपोज किया जा रहा है, जिस तरह से गिरफ्तारियां हुई हैं, उसमें WCCB ने अपनी भूमिका अदा की है। जितने भी वाइल्ड लाइफ क्राइम होते हैं, उनमें अहम रोल WCCB का रहता है। इस एजेंसी बकायदा संदिग्ध शिकारियों की एक पूरी लिस्ट जारी करती है, अपनी वेबसाइट के उनके एड्रेस तक लिखती है। उस जानकारी के दम पर ही एमपी और हरियाणा में इ शिकारियों को सेंट्रल एंजेसी फिर पकड़ने का काम करती है।
लेकिन यहां भी इतनी जरूरी एजेंसी में अभी तक कोई चीफ नियुक्त नहीं किया गया है। आखिरी चीफ तिलोल्तमा वर्मा थे जिन्होंने वो पद अगस्त 2022 में छोड़ दिया था। इंडियन एक्सप्रेस ने इस बारे में WCCB के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉक्टर मनोज कुमार से सवाल-जवाब करने की कोशिश की थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। वैसे इतना बड़ा रैकेट क्योंकि चल रहा है, ऐसे में जांच एजेंसियों ने भी अपना विस्तार किया है। एक स्पेशल इनवेस्टिगेशन ग्रुप का गठन हुआ है। इस बारे में National Tiger Conservation Authority (NTCA) के हेड जीएस भारद्वाज ने काफी विस्तार से बताया है।
जांच एजेंसियां क्या कर रही हैं?
वे कहते हैं कि पिछले कुछ हफ्तों में हमने कई कदम उठाए हैं अब एक मल्टी एजेंसी स्पेशल इनवेस्टिगेशन ग्रुप का गठन भी किया जा चुका है। इस समय NTCA लगातार उन सभी राज्यों के संपर्क में है जहां यह रैकेट सक्रिय है, प्रयास है कि इस जांच को एक सही निष्कर्ष तक लेकर जाया जाए। वैसे जब इंडियन एक्सप्रेस इस पूरे मामले की तफ्तीश कर रहा था, कुछ सूत्रों ने जरूर बताया कि आज के शिकारी अपने बाप-दादाओं के समय से काफी अलग हैं। ये लोग अब बिचौलियों पर निर्भर नहीं रहते हैं, इन्हें इंटरनेट का पूरा ज्ञान बै, इन्हें सोशल मीडिया चलाना आता है। ये लोग आराम से बैंक अकाउंट ऑपरेट कर सकते हैं, ऑनलाइन पेयमेंट को भी ट्रैक कर लेते हैं।
नए दौर के ये शिकारी अब ट्रांसपोर्टर्स के जरिए पूरे-पूरे कंसाइनमेंट बुक करते हैं। अगर किसी जानवर की खाल या हड्डियों की तस्करी हो भी रही है, तो वो सुरक्षित तरीके से करने की कोशिश हो रही है, पूरा प्रयास है कि खतरे को कम किया जाए और इस बिजनेस में मार्जिन को बढ़ाया जाए। लेकिन अब जब जांच शुरू हुई है तो काफी कुछ निकलकर आया है। पूर्वोत्तर के मेघालय और मिजोरम के जरिए बांघ के अंगों को म्यांमार तक पहुंचाया जा रहा है, इसके अलावा रुइली नदी के रास्ते चीन को भी बाघ के अंग सप्लाई हो रहे थे। बड़ी बात यह है कि इस पूरे बिजनेस का जो मनी ट्रेल है वो कम से कम 13 राज्यों तक जुड़ा हुआ है। इसमें असम, बिहार, आंध्र प्रदेश, टीएन, महाराष्ट्र, एमपी, यूपी, दिल्ली, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर शामिल है।
कहां तक फैला है नेटवर्क, विदेशी कनेक्शन क्या?
जांच में एक खुलासा यह भी रहा है कि तस्करी की कई खेप म्यांमार के माध्यम से गुवाहाटी, शिलांग और अंत में मणिपुर के चुराचांदपुर जिले और मिजोरम के चम्फाई जिले के माध्यम से भी भेजी गई थी। यहां भी अगर कुछ रिकॉर्ड्स को खंगाला जाए तो कुछ ऐसे आरोपियों का नाम भी सामने आए हैं, जो हैरान कर सकते हैं। इस पूरे रैकेट में एक आरोपी असम रेजिमेंट का रिटायर्ड जवान Lalneisung है। दूसरा आरोपी असम राइफल्स का जवान Kap Lian Mung है जो इस पूरे रैकेट में अपनी पत्नी की मदद कर रहा था। उस पत्नी के घर से ही बाद में जांच एजेंसी को चीतों की 500 तस्वीरें और दूसरे जानवरों के अंग बरामद हुए थे। इस पूरे मामले में म्यांमार के दो बिजनेसमेन किंगपिन के रूप में सामने आए हैं। भारतीय एजेंसियां अब इंटरपोल से सहायता लेकर उनकी गिरफ्तारी की भी कोशिश करने वाली हैं।
हवाला कारोबार के बारे में क्या पता चला?
जांच में पता चला है कि म्यांमार के ये दोनों ही व्यापारी हवाला रूट के जरिए किसी Zamkhan Kap नाम के शख्स को पैसे भेज रहे थे। उस शख्स को 2022 में ईडी ने एक बार गिरफ्तार भी किया था। तब तो मामला बालों की समगलिंग से जुड़ा हुआ था, लेकिन अब इसके तार चीतों की तस्करी और उनकी मौतों से भी जुड़ गए हैं। वैसे जांच एजेंसियों को अब इस रैकेट को पूरी तरह ध्वस्त करने में कई चुनौतियों का सामना इसलिए भी करना पड़ रहा है क्योंकि ये आरोपी काफी चालाक हो चुके हैं। उदाहरण के लिए अब जब भी जानवरों की हड्डी की तस्करी की जाती है, ये लोग powdered alum उन हड्डियों पर अप्लाई कर देते हैं, उससे बदबू कम हो जाती है। इसी तरह बोन ग्लू भी हड्डियों पर अप्लाई की जा रही है, वेतनाम में तो ये काफी ज्यादा चलन में चल रही है। असल में तो इस ग्लू का आविष्कार थाईलैंड में हुआ है और इसको वाइन में मिलाकर Arthritis और Rheumatism का इलाज होता है।
चीतों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?
Jay Mazoomdaar की रिपोर्ट