एल्गार परिषद केस में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता और कवि वरवरा राव और प्रोफेसर जीएन साईंबाबा की रिहाई के लिए दुनिया के 100 बुद्धिजीवियों ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से अपील की है। इस अपील पर नॉम चोम्स्की, जुडिथ बटलर, नैंसी फ्रेजर, इंद्राणी चटर्जी, सुवीर कौल, वेंडी ब्राउन और होमी के भाभा आदि के हस्ताक्षर हैं। अपील में कहा गया है कि वरवरा राव और जीएन साईंबाबा के खिलाफ लगाए गए आरोप ‘फर्जी’ हैं।

बुद्धिजीवियों का तर्क है कि उनकी गिरते स्वास्थ्य, कोरोना वायरस माहमारी से जेलों में उनके जीवन को खतरा बढ़ा है। ऐसे में उन्हें तुरंत जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। पत्र में कहा गया है कि साईंबाबा कई बीमारियों से जूझ रहे हैं, जिनमें एक्यूट पेनक्रिएटाइटिस, हृदय संबंधी दिक्कत, हाइपरटेंशन और गालब्लैडर में पथरी जैसी समस्याएं हैं। जब से वह जेल में बंद हैं, तब से उनके दोनों हाथों ने भी काम करना बंद कर दिया है।

पत्र में कहा गया है कि “जेल अथॉरिटीज ने उन्हें उनकी मातृभाषा तेलगू में पत्र भेजने या प्राप्त करने की इजाजत नहीं दी है। बीते दिनों जब उनकी मां उनसे मिलने पहुंची तो उनसे अंग्रेजी में बात करने को कहा गया, जबकि वह अंग्रेजी जानती भी नहीं हैं। अब वह खुद मृत्युशैय्या पर हैं और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं। पत्र में आरोप लगाया गया है कि एक राजनैतिक कैदी को मेडिकल केयर भी मुहैया नहीं करायी जा रही है।”

इसी तरह बुजुर्ग कवि और सामाजिक कार्यकर्ता वारवरा राव को भी स्वास्थ्य के आधार पर जमानत देने की मांग की गई है। बता दें कि भीमा कोरेगांव केस में वारवरा राव आरोपी हैं। वहीं जीएन साईंबाबा माओवादियों से संपर्क रखने और भारत के खिलाफ षडयंत्र रचने के दोषी हैं। उन्हें इस मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई है।