पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री एमएए फातमी ने केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा नीत सरकार पर प्रतिगामी और संकीर्ण शिक्षा नीति पर चलने का आरोप लगाया है। फातमी ने आज यहां संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ’’ (प्रधानमंत्री नरेन्द्र) मोदी ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रगतिशील नीति अपना कर देश को 21वीं सदी में ले जाने का दावा किया था। मगर दुर्भाग्यवश उसका उलट हो रहा है।’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘मौजूदा सरकार महत्वपूर्ण पदों पर श्रेष्ठ और प्रतिभाशाली शिक्षाविदो की जगह पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोगों की तैनाती कर रही है, जो अपनी दकियानूसी सोच से अब भी ग्रस्त हैं।’’
फातमी ने कहा, ’’संस्कृत को बढ़ावा देने का निर्णय स्वागतयोग्य है, मगर क्षेत्रीय भाषाओं के हितों की कीमत पर कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि यदि सरकार उचित स्थानों पर संस्कृत विद्यालय, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्थापित करती है तो वह उसका समर्थन करेंगे, मगर यदि केंद्र सरकार केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत को अनिवार्य करती है तो छात्रों की तरफ से उसका विरोध हो सकता है।
फातमी ने केंद्र सरकार पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय सहित उच्च शिक्षा के संस्थानों की स्वायत्तता के अतिक्रमण की कोशिश करने का आरोप लगाया।
फातमी ने कहा, ‘‘पिछले दिनों एएमयू के केंद्रीय पुस्तकालय में छात्राओं के आने जाने को भाजपा ने जिस तरह से तूल दिया और अब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा महेन्द्र प्रताप मामले में उसका जो रुख है, उसके संकेत अच्छे नहीं लगते।’’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘यदि सरकार राजा महेंद्र प्रताप को सम्मानित करने के बारे में वाकई गंभीर है तो मैं मजबूती से सिफारिश करूंगा कि उन्हें और उनके निकट सहयोगी मौलाना बरकतुल्ला खां को भारत रत्न से सम्मानित करना चाहिए। मैं कह सकता हूं कि दोनों ही भारत रत्न पाने के हकदार हैं।’’
उन्होंने कहा कि भाजपा में नायकों का अभाव है। एक एक करके वह राजा महेन्द्र प्रताप जैसे धर्म निरपेक्ष नायकों को अपना बताने की कोशिश कर रही है। राजा महेन्द्र प्रताप ने हमेशा ही जनसंघ का विरोध किया। फातमी ने कहा कि भाजपा के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है, जो देश के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुआ हो।