रिश्तों का आधार ही स्वभाव पर टिका होता है। जब दो लोग एक-दूसरे के व्यवहार से संतुष्ट होते हैं और खुद को सहज महसूस करते हैं, तो उनके बीच रिश्ते के धागे स्वत: जुड़ने लगते हैं। वहीं, कई बार स्वभाव में बदलाव संबंधों में तनाव पैदा कर देता है।

आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी, भौतिकवादी सोच और मानवीय मूल्यों के गिरते स्तर के माहौल में अक्सर इस तरह की स्थिति पैदा हो जाती है। दरअसल, मनुष्य का स्वभाव जीवन के अनुभवों, विचारधारा, आदतों और परिस्थितियों से प्रभावित होता है। अगर स्वभाव में बदलाव सकारात्मक हो, तो यह पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के लिए बेहतर होता है।

आत्म नियंत्रण जरूरी

जीवन के अनुभव, शिक्षा, संगत और नई आदतें किसी भी व्यक्ति का स्वभाव बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अनुभव और शिक्षा से स्वभाव में आने वाला परिवर्तन अक्सर सकारात्मक होता है। यानी व्यक्ति कोई भी ऐसा काम करने से परहेज करेगा, जो उसके साथी, परिवार या समाज के लिए किसी भी रूप में अहितकारी है। मगर संगत और नई आदतें अगर अच्छी नहीं है, तो उनसे स्वभाव में आने वाला बदलाव दूसरों को कष्ट पहुंचाने वाला हो सकता है।

ऐसे में आत्म नियंत्रण बेहद जरूरी है। व्यक्ति को ऐसी संगत और आदतों से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि एक बार किसी आदत की लत लग जाती है, तो उससे छुटकारा पाना आसान नहीं होता है। खुद को ऐसे दायरे में रखना चाहिए, जहां पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के साथ-साथ रिश्तों की गरिमा बनी रहे।

जिम्मेदारियों का अहसास

समय, परिस्थितियां और माहौल अक्सर मनुष्य के लिए एक जैसे नहीं रहते। इनके लिहाज से खुद को ढालना जरूरी होता है और यह निश्चित रूप से स्वभाव में बदलाव का एक हिस्सा है। मगर जब हम हालात से लड़ने के बजाय समझौते की राह को चुनते हैं तो इस बदलाव में कुछ नकारात्मक अंश में शामिल हो जाते हैं, जो हमारे रिश्तों को प्रभावित कर सकते हैं।

कहा जाता है कि व्यक्ति का मूल स्वभाव तब तक नहीं बदलता, जब तक  कि कोई घटना या परिस्थितियां उसे बदलने के लिए मजबूर न कर दे। इसलिए हालात से समझौता करते वक्त इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि कहीं इससे हमारे स्वभाव पर कोई विपरीत असर तो नहीं पड़ेगा।

संवाद को दें महत्व

जीवन के एक नए पड़ाव में प्रवेश करते ही कुछ धारणाओं, मूल्यों या आदतों में बदलाव आना स्वाभाविक है। ऐसे में साथी या पारिवारिक सदस्यों को संबंधित व्यक्ति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए। समझना जरूरी है कि स्वभाव में जो बदलाव आया है, उससे तालमेल कैसे कायम किया जा सकता है।

बदले स्वभाव में कुछ बातें या फैसले दूसरों को पसंद न आए, लेकिन उनका प्रतिकार करने की बजाय संवाद से परिस्थितियों को संभाला जा सकता है। इससे न केवल परस्पर सम्मान का भाव जिंदा रहेगा, बल्कि रिश्तों की मजबूती और खूबसूरती भी बनी रहेगी।