तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। 15 अगस्त को तालिबानी लड़ाकों ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में प्रवेश किया। इसके बाद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति देश छोड़कर निकल गए। अफगानिस्तान से आने वाली तस्वीरें और वीडियो में आम लोग भी अपना सामान बांधकर ताजाकिस्तान और ईरान की तरफ जाते नज़र आने लगे।

दरअसल लोगों को तालिबान 90 के दशक की याद दिलाता है। जब इस संगठन का अफगानिस्तान पर एक तरफा कब्जा था और महिलाओं को पढ़ने-लिखने की आजादी नहीं थी। महिलाओं के लिए बुर्का अनिवार्य था। साथ ही पुरुषों के लिए दाढ़ी अनिवार्य और सड़कों पर कत्लेआम बिल्कुल आम हुआ करता था। आइए जानते हैं कि आखिर तालिबान की शुरुआत कैसे हुई थी-

क्या है तालिबान: अफगानिस्तान पर कभी सोवियत संघ का कब्जा हुआ करता था, लेकिन 90 के दशक में समझौते के तहत सोवियत संघ की सेना ने वापस जाना शुरू कर दिया था। माना जाता है कि इस दौरान ही तालिबान का बीज डला था। पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है- छात्र, खासकर कट्टरपंथी लड़ाके जो कमांडर और संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के इशारों पर चलते थे। हालांकि तब संगठन इतना मजबूत नहीं था और अफगानिस्तान मुजाहिदीन के हाथ में था।

1995 में तालिबान ने पहली बार अफगानिस्तान में अपने पैर फैलाए जब हेरात को उन्होंने अपने कब्जे में ले लिया। करीब एक साल बाद 1995 में कंधार के साथ काबुल की सत्ता का नियंत्रण भी तालिबान के पास आ गया। धीरे-धीरे अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों पर तालिबान का कब्जा हो गया था। लेकिन साल 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के बाद तालिबान पर पूरी दुनिया की नज़र गई और अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद इस संगठन के समर्थकों को अफगानिस्तान छोड़कर भागना पड़ा।

तालिबान के टॉप 5 कमांडर:

हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा: 2016 में अमेरिका के ड्रोन हमले में मुल्ला मंसूर अख्तर मारा गया था। मुल्ला मंसूर अख्तर के हाथ में तब तालिबान की कमान थी, लेकिन उसके बाद हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा को तालिबान का नेता नियुक्त किया गया था। अब संगठन के सभी अहम फैसले हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा के द्वारा ही लिए जाते हैं।

मुल्ला याकूब: तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब संगठन के विदेशों में चल रहे ऑपरेशन की कमान संभालता है। ‘अलजज़ीरा’ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुल्ला याकूब अभी अफगानिस्तान में ही है। तालिबान के शीर्ष कमांडर के लिए याकूब ने ही हैबतुल्लाह का नाम आगे किया था क्योंकि उसे जमीन पर लड़ाई का बहुत कम अनुभव था।

सिराजुद्दीन हक्कानी: मुजाहिदीन कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा सिराजुद्दीन ‘हक्कानी नेटवर्क’ की कमान संभालता है। इसका काम तालिबान के लिए पैसे और हथियार मुहैया करवाना है। अफगानिस्तान में कई आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी भी ये ले चुका है।

मुल्ला अब्दुल घनी बरादार: अब्दुल घनी बरादार तालिबान का सह-संस्थापक है। अभी अब्दुल घनी के पास तालिबान के राजनीतिक संगठनों की जिम्मेदारी है। अब्दुल घनी ने सोवियत के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी थी। इस दौरान वह मुल्ला उमर के साथ हर मौके पर नज़र आता था। संगठन के अहम फैसले उसके इजाज़त के बिना नहीं लिए जाते।

शेर मोहम्मद अब्बास स्टैनिकजई: अफगानिस्तान से तालिबान सरकार के हटने से पहले स्टैनिकजई डिप्टी मिनिस्टर था। लंबे समय तक शेर मोहम्मद दोहा में रहा था। साल 2015 में वह संगठन के पॉलिटिकल ऑफिस का हेड बन गया था। शेर मोहम्मद ने अफगानिस्तान सरकार को सत्ता से हटने की चुनौती भी दी थी।