‘उल्टी’ ये शब्द सुनने भर से ही किसी का भी मन खराब हो जाता है। ऐसे में क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी जीव की उल्टी को बाजार में बेचा या खरीदा भी जा सकता है, वो भी करोड़ों के दाम में? बता दें कि यह बात सुनने में आपको चाहे जितनी अजीब लगे, लेकिन है बिल्कुल सच। इतना ही नहीं, इस जीव की उल्टी की तस्करी तक की जाती है। यह जीव व्हेल मछली है। आपको जानकर हैरानी होगी कि बाजार में व्हेल मछली की उल्टी की कीमत 10 करोड़ तक आंकी जाती है। नवंबर 2020 में थाईलैंड के एक मछुआरे को 100 किलो की व्हेल की उल्टी मिली थी, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी व्हेल की उल्टी माना जाता है। उस वक्त इसकी कीमत करीब 22 करोड़ रुपये थी। जाहिर है, ये सब जानने के बाद आपके मन में यह सवाल भी आया होगा कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है या क्यों व्हेल मछली की उल्टी को इस तरह बेचा और खरीदा जाता है और इस उल्टी का क्या होता है? आइए जानते हैं इसके बारे में-

व्हेल मछली की उल्टी को एम्बरग्रीस (Ambergris) कहा जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ये व्हेल के शरीर से निकलने वाला मल होता है जो उसकी आंत से बाहर आता है। व्हेल समुद्र में मौजूद कई छोटी-बड़ी चीजों का सेवन करती है। वहीं, जब ये चीजें व्हेल के पेट में जाने के बाद पच नहीं पाती हैं, तो उल्टी के रूप में बाहर आ जाती है। इसे ही एम्बरग्रीस कहा जाता है। एम्बरग्रीस दिखने में किसी मोम के ठोस पत्थर जैसा लगता है और इसका रंग स्लेटी या काला होता है।

करोड़ों में क्यों बिकती है व्हेल की उल्टी?

  • वैसे तो किसी अन्य जीव की तरह ही व्हेल की उल्टी से भी तेज गंद आती है। हालांकि, इसका इस्तेमाल कई खुशबूदार परफ्यूम्स बनाने के लिए किया जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो एम्बरग्रीस की वजह से परफ्यूम की खूशबू लंबे समय तक टिकी रहती है। यही वजह है कि परफ्यूम्स बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां इसे महंगे दाम पर खरीदती हैं। एकदम सफेद व्हेल की उल्टी वाली वैराइटी की डिमांड परफ्यूम इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा होती है।
  • इसके अलावा एम्बरग्रीस का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों से निजात पाने के लिए भी किया जाता है। कुछ देशों में इसका इस्तेमाल दवाइयां बनाने में होता है। यौन संबंधित समस्याओं के इलाज में भी एम्बरग्रीस का इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि वैज्ञानिक व्हेल मछली की उल्टी को फ्लोटिंग गोल्ड कहते हैं।
  • मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 16वीं सदी में ब्रिटेन के राजा चार्ल्स द्वितीय व्हेल की उल्टी के साथ अंडे खाने के बहुत शौकीन थे। वहीं, 18वीं सदी में व्हेल की उल्टी का इस्तेमाल टर्किश कॉफी और यूरोप में चॉकलेट का फ्लेवर बढ़ाने में भी होता था।
  • मिस्र में आज भी सिगरेट में फ्लेवर के लिए व्हेल की उल्टी का इस्तेमाल होता है।
  • ब्लैक प्लेग महामारी के दौर में कुछ यूरोपीय लोगों का मानना था कि व्हेल की उल्टी का टुकड़ा साथ में रखने से वे प्लेग से बच सकते हैं।

हालांकि, आपको बता दें कि भारत में वाइल्डलाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट 1972 के तहत, व्हेल की उल्टी को रखने या इसकी ब्रिकी पर रोक है। स्पर्म व्हेल की घटती आबादी के चलते ये भारत में एक प्रोटेक्टेड स्पीशीज है। ऐसे में व्हेल की उल्टी समेत स्पर्म व्हेल के किसी भी बाइ-प्रोडेक्ट को रखने या उसका व्यापार करने पर भारत में बैन है।