तीज का त्योहार सावन महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीय के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार शिव-पार्वती के दोबारा मिलने के उपलक्ष में मनाया जाता है। सावन के महीने में बारिश होती है, जिस वजह से चारों ओर हरियाली बढ़ जाती है। इसलिए इसे हरियाली तीज कहा जाता है। इस त्योहार पर महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं, नए-नए कपड़े खरीदती हैं। व्रत करती हैं और मिलकर झूला झूलती हैं। ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती ने शिव भगवान को पाने के लिए 107 जन्म लिए थे। मां पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर उनके 108वें जन्म में भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था तभी से इस व्रत की शुरुआत हुई थी। अपने सुहाग की सलमाती और रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए इस दिन महिलाएं व्रत करती हैं। कई जगह इस त्योहार को कज्जली तीज के नाम से भी जाना जाता है।

पुराने तौर तरीकों की बात करें तो इस त्योहार को तीन दिन तक मनाया जाता है। लेकिन आजकल समय की कमी के चलते इसे एक ही दिन धूमधाम से मनाया जाता है। महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। चूड़ियां पहनती हैं, हाथों में मेहंदी और पैरों में आल्ता लगाती हैं। इस दिन सभी महिलाएं एक साथ किसी एक जगह इकट्ठे होकर मां पार्वती की मूर्ति को सजाती हैं। इसके बाद पूजा कर कथा सुनती हैं और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

इस त्योहार पर मेहंदी लगाने का भी विशेष महत्व होता है। मेहंदी सुहाग का प्रतीक होती है। इसलिए महिलाएं इस त्योहार पर मेंहदी जरूर लगाती हैं। इसकी ठंडी तासीर प्यार और उमंग को एक संतुलन देने का भी काम करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि सावन में काम की भावना बढ़ जाती है। मेहंदी इस भावना को नियंत्रित करने का काम करती है। साथ ही इस व्रत का एक और नियम है कि मन में क्रोध का ना आने दें। मेहंदी के औषधीय गुण क्रोध को नियंत्रित करने में महिलाओं की मदद करती है।