विजयराजे सिंधिया की शादी ग्वालियर के महाराज जीवाजी राव से हुई थी। लेकिन इससे पहले पिता ने उनके लिए कई जगह रिश्ते देखे थे। एक बार तो वह विजयाराजे को दिखाने अपने दोस्त के यहां ले गए थे। विजयाराजे ने इसका जिक्र अपनी आत्मकथा ‘द लास्ट महारानी ऑफ ग्वालियर: एन ऑटोबायोग्राफी’ में किया है। हालांकि उनकी यहां शादी नहीं हो पाई क्योंकि लड़के की प्रेमिका की गुज़ारिश पर राजमाता ने झूठ बोला था।

विजायाराजे लिखती हैं, मेरे पिता बिना किसी देरी मेरी शादी करना चाहते थे। इसी क्रम में वह मुझे 120 मील दूर बांदा ले गए थे। यहां हमारी मुलाकात एक धनी ‘ज़मींदार’ और अथाह संपत्ति के मालिक से हुई थी। उनका नाम चौधरी के. सिंह था और वह मेरे पिता के दोस्त थे। पिता ने मुझे कहा था कि उन्होंने सभी बातें कर ली हैं और मुझे सिंह के बेटे से शादी कर लेनी चाहिए। ऐसे में बस हम दोनों की रजामंदी बची थी बाकि सब कुछ पूरा हो चुका था।

बेहोश हो गई थी लड़की: इसके बाद विजयाराजे सिंधिया के परिवार ने कुछ समय तक बांदा में ही रुकने का निर्णय किया। दरअसल वह पड़ोसियों से दूल्हे की जानकारी लेना चाहते थे। एक शाम पड़ोस में रहने वाली लड़की विजयाराजे के पास आई। वह उनसे अकेले में बात करना चाहती थी और कई बार उसे दूल्हे के घर में भी देखा गया था। विजयाराजे याद करती हैं, लड़की मुझसे शादी के बारे में जानकारी लेना चाहती थी और पूछा कि क्या मैं चौधरी के बेटे से शादी करने वाली हूं।

आगे की पढ़ाई करने का फैसला: विजयाराजे ने इसके जवाब में कहा, अगर मेरे माता-पिता इस शादी के लिए तैयार हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। ये सुनते ही वह लड़की बेहोश हो गई। डॉक्टर को बुलाया गया और मुझे एहसास हुआ कि वह लड़के से बेतहाशा मोहब्बत करती है। मैं उन दोनों के प्रेम के बीच में नहीं आना चाहती थी।

एक या दो दिन बाद मुझसे मेरे फैसले के बाद में पूछा गया तो मैंने जानबूझकर ऐसा दिखाया कि मैं उससे शादी नहीं करना चाहती हूं। कुछ समय बाद उस लड़की से चौधरी के लड़के ने शादी कर ली। हालांकि वो शादी कामयाब नहीं हो पाई और दोनों बहुत जल्दी अलग हो गए। इस फैसले ने मेरा जीवन पूरी तरह बदल दिया और मुझे आगे पढ़ाई करने का भी एक उद्देश्य मिल गया।