मातृत्व किसी की भी जिंदगी का सबसे सुखद एहसास होता है। लोगों को गर्भावस्था के दौरान गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर सबसे ज्यादा चिंता रहती है। बच्चे के प्रत्यक्ष न होने की वजह से उसके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी के लिए थोड़ी अतिरिक्त कोशिश करनी पड़ती है। हालांकि गर्भावस्था के दौरान मां को अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि उसके स्वास्थ्य का सीधा संबंध भ्रूण के स्वास्थ्य से होता है। प्रेग्नेंसी के 10वें सप्ताह में बच्चा भ्रूण बन जाता है और ऐसे समय में उसका तेजी से विकास होता है। उसकी कोशिकाएं तेजी से विकसित होती हैं।

ऐसे में बाहरी चीजों के हस्तक्षेप से उसके प्रभावित होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। बच्चे के भ्रूण बन जाने के बाद उसकी हलचल उसके स्वास्थ्य के बारे में सिग्नल देने लगती है। हलांकि यह जानकारी आपको डॉक्टर्स रुटीन टेस्ट्स के द्वारा भी दे सकते हैं। गर्भ में भ्रूण स्वस्थ है या नहीं इस बात का अंदाजा गर्भ में उसके द्वारा की जा रही हरकतों के आधार पर लगाया जा सकता है। प्रेग्नेंसी के 5 महीने के बाद भ्रूण मूव करना शुरु कर देता है। छठें महीनें में मूवमेंट के साथ वह साउंड करना भी शुरु कर देता है। भ्रूण का झटके साथ मूवमेंट बताता है कि उसे हिचकी आ रही है। सातवें महीने में वह दर्द, आवाज या फिर लाइट पर रिएक्शन देना शुरु कर देता है।

भ्रूण अक्सर अपनी जगह बदलता रहता है। नवें महीने में उसके पास जगह कम होती है इसलिए उसका मूव करना कम हो जाता है। डॉक्टर्स भी बच्चे के मूवमेंट के आधार पर ही उसके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं। बच्चे का स्वास्थ्य जानने के लिए रुटीन टेस्ट करवाना सबसे सही तरीका होता है। अल्ट्रासाउंड के माध्यम से डॉक्टर्स भ्रूण के स्वास्थ्य के विषय में सटीक जानकारी देते हैं। नानस्ट्रेस टेस्ट और कांट्रैक्शन स्ट्रेस टेस्ट बच्चे के दिल का स्वास्थ्य बताने वाले टेस्ट्स होते हैं। स्वस्थ भ्रूण के दिल की धड़कन एक मिनट में तकरीबन 110-160 बार धड़कती है। इस तरह से गर्भ में बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति जानकर उसके लिए उचित ट्रीटमेंट दी जा सकती है जिससे एक स्वस्थ बच्चे का जन्म हो सके।