सरोगेसी एक ऐसी जरिया है जिसमें ऐसी महिलाएं भी मां बन सकती हैं जो अपने गर्भ में भ्रूण का विकास कर पाने में सक्षम नहीं होतीं। इस प्रक्रिया में भ्रूण को किसी अन्य महिला के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। जिस मां के गर्भ में भ्रूण बच्चे का रूप लेता है उसे सरोगेट मदर कहा जाता है। सरोगेसी से जन्में बच्चे के पोषण के लिए तीन तरीके होते हैं। या तो उन्हें फॉर्मूला मिल्क दिया जाए या सरोगेट मां उन्हें स्तनपान कराए या फिर बायोलॉजिकल मां बच्चे को अपना दूध पिलाए। इसमें सवाल ये है कि बायोलॉजिकल मां गर्भधारण के बिना अपने बच्चे को दूध कैसे पिला सकती है?
बच्चे के जन्म के 6 महीने तक उसका आहार केवल दूध होता है। डॉक्टर्स का कहना होता है कि ऐसे में बच्चे को मां का दूध मिले तो इससे उसके स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ता है। सरोगेसी के जरिए पैदा हुए बच्चे को उसकी बायोलॉजिकल मां दूध पिला तो सकती है लेकिन इसके लिए उसे महीनों पहले से तैयारियां करनी पड़ती हैं। इसके लिए सबसे पहले मां के शरीर, उसकी जीवनशैली और स्वास्थ्य की जांच की जाती है। उसके बाद उसे हार्मोनल सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं। जरूरत पड़ने पर पंपिग के जरिए या फिर दवाइयों से उनके स्तन ग्रंथियों को दूध बनाने के लिए उत्तेजित किया जाता है। इसके बाद बच्चे को दूध पिलाने के लिए बायोलॉजिकल मां को सौंपा जाता है।
एक वेबसाइट हेल्थसाइट के हवाले से डॉ अनीता बताता हैं कि सरोगेट मदर और बायोलॉजिकल मदर दोनों के दूध में पाए जाने वाले माइक्रो-न्यूट्रिएंट्स बराबर होते हैं, इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे दूध कौन पिलाता है। उन्होंने बताया कि दोनों में से कोई भी मां अगर बच्चे को स्तनपान कराती है तो इससे बच्चे की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और उसकी हड्डियां मजबूत होती हैं। बायोलॉजिकल मदर यानी कि जैविक मां के स्तनपान कराने के पीछे की वजह न सिर्फ बच्चे की सेहत होती है बल्कि मां और बच्चे के बीच रिश्ते को और भावनात्मक बढ़त देने के लिए भी यह बहुत ज्यादा जरूरी होता है। चूंकि सरोगेसी में जैविक मां बच्चे को अपनी कोख में पालने के अवसर से वंचित होती है ऐसे में उसके लिए बच्चे को स्तनपान कराना काफी महत्वपूर्ण होता है।
