Swami Vivekananda Quotes, Chicago Speech: 1893 ई. में जब अमेरिका के प्रसिद्ध शिकागो में विश्व धर्म संसद का आयोजन किया गया तो भरत की तरफ से स्‍वामी विवेकानंद इसमें हिस्सा लने पहुंचे थे। इस धर्म संसद में दुनिया भर से अलग-अलग धर्मों के विद्वानों ने हिस्सा लिया लेकिन जब विवेकानंद ने सबके सामने वेदांत का ज्ञान दिया तो पूरा संसद तालियों से गूंज उठा। विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत में अमेरिका के लोगों को भाईयों और बहनो कहकर संबोधित किया जिससे वहां के लोग कापी प्रसन्न हुए। दरअसल विवेकानंद ने दुनिया को बताया कि भारत सभी लोगों को एक परिवार की तरह देखता है। उन्होंने  पूरी दुनिया को बताया कि भारत न केवल शांति प्रिय देश है बल्कि वो सारे संसार के साथ सामंजस्य बिठाकर रहने और सबके लिए मदद के दरवाजे खोलने की नीति में भरोसा करता है।

शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन के मंच पर स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन में सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और हिंसा का का मुद्दा बखूबी उठाया था। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता और कट्टरता लंबे वक्त से धरती को अपने शिकंजे में जकड़े हुए है और पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। अनेकों बार यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। उन्होंने पूरब की अगुवाई करते हुए कहा कि सहनशीलता का विचार पूरब के देशों से आया और दूर-दूर तक फैला।

स्वामी विवेकानंद के महान विचार इस प्रकार हैं-

1. उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते।

2. आप जो भी सोचेंगे, आप वही हो जाएंगे। अगर आप खुद को कमजोर सोचेंगे तो आप कमजोर बन जाएंगे। अगर आप सोचेंगे की आप शक्तिशाली हैं तो आप शाक्तिशाली बन जाएंगे।

3. पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान। ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।

4. ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।

5. ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमी ही हैं जो अपनी आंखों पर हांथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है।

6. जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हुआ हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।

7. किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़ें, अपने भाइयों को आशीर्वाद दें और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दें।

8. हमारा कर्तव्य हैं की हम हर उस व्यक्ति का होंसला बढ़ाए, जो अपने ऊंचे विचारों पर जीवन व्यतीत करने के लिए संग्रह कर रहा है।

9. यदि स्वयं में विश्वास करना, अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।

10. अंदर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हें पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हारी आत्मा के आलावा तुम्हारा कोई गुरु नहीं है।