Subhash Chandra Bose Jayanti 2020 Speech, Essay, Nibandh, Bhashan, Slogan, Quotes in Hindi: देश को अंग्रेजों से आजाद कराने में जितना योगदान महात्मा गांधी का माना जाता है, ऐसे ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का भी रहा है। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था और इस साल देश उनकी 123वीं जयंती मनाने जा रहा है। नेताजी ने 1919 में भारत छोड़ आंदोलन में हिस्सा लिया।
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उस दौर में भी भारतीय सिविल सेवा में चयन होने के बावजूद उन्होंने 1921 में इस्तीफा दे दिया और कैंब्रिज से भारत लौट आए। उन्होंने देश की आजादी के लिए जवाहर लाल नेहरू के साथ मिलकर आंदोलन और अन्य काम किए। उनकी मृत्यु को लेकर कई विवाद हैं, हालांकि ये माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को उनकी मृत्यु हो गई।
उनके कुछ प्रसिद्ध कथन या कोट्स थे जिन्हें आज भी याद किया जाता है:
1.”मुझे यह नहीं मालूम कि स्वतंत्रता के इस युद्ध में हम में से कौन -कौन जीवित बचेंगे, परंतु मैं यह जानता हूं कि अंत में विजय हमारी ही होगी।”
2.”आज हमारे अंदर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।”
3.”राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है।”
4.”ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।”
5.”जीवन में प्रगति का आशय यह है कि शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे।”
आइए देश की आजादी में उनके अहम योगदान को उनकी जयंती पर भाषण के जरिए दूसरों को बताएं…


“एक सच्चे सैनिक को सैन्य प्रशिक्षण और आध्यात्मिक प्रशिक्षण दोनों की ज़रुरत होती है।”
“यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का भुगतान अपने रक्त से करें। आपके बलिदान और परिश्रम के माध्यम से हम जो स्वतंत्रता जीतेंगे, हम अपनी शक्ति के साथ संरक्षित करने में सक्षम होंगे।”
“माँ का प्यार स्वार्थ रहित और सबसे गहरा होता है ! इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता।”
“आज हमारे पास एक इच्छा होनी चाहिए ‘मरने की इच्छा’, क्योंकि मेरा देश जी सके – एक शहीद की मौत का सामना करने की शक्ति, क्योंकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीद के खून से प्रशस्त हो सके।”
1941 में उन्हें एक घर में नजरबंद करके रखा गया था, जहां से वे भाग निकले। नेताजी कार से कोलकाता से गोमो के लिए निकल पड़े। वहां से वे ट्रेन से पेशावर के लिए चल पड़े। यहां से वह काबुल पहुंचे और फिर काबुल से जर्मनी रवाना हुए जहां उनकी मुलाकात अडॉल्फ हिटलर से हुई।
नेता जी का देश के प्रति समर्पण उनकी इस कहावत से छलकता है- ”आज हमारे अंदर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।”
नेता जी का अपना ही रुतबा था, वहीं अंग्रेजी सेना की गिरफ्त से नेता जी उस वक्त भाग गए थे जब उन्हें एक घर में नजरबंद कर कैद कर रखा था। नेता जी को उनकी कही इस बात के लिए याद किया जाता है। ”मुझे यह नहीं मालूम कि स्वतंत्रता के इस युद्ध में हम में से कौन -कौन जीवित बचेंगे, परंतु मैं यह जानता हूं कि अंत में विजय हमारी ही होगी।”
19 मार्च 1944 के दिन था जब हिंद फौज के सैनिकाों ने पहली बार झंड़ा फहराया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज गठित की थी। राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले लोगों में कर्नल शौकत मलिक, कुछ मणिपुरी और आजाद हिंद के लोग शामिल थे।
पिता की इच्छा पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1920 में सिविल सर्विस परीक्षा इंग्लैंड में जाकर पास की। कुछ ही दिन नौकरी करने के बाद उनका मन अंग्रेजों की गुलामी से उक्ता गया और 23 अप्रैल 1921 को इस्तीफा भी दे दिया। इसके बाद वह स्वाधीनता संग्राम में शामिल हो गए।
अंग्रेजों ने सुभाष चंद्र बोस को 1941 में एक घर में नजरबंद कर कैद कर रखा था। तब उन्होंने महानिष्क्रमण यात्रा नाम के अभियान के तहत भेष बदलकर भागने की योजना बनाई और सफल हुए। इसके तहत वह सबसे पहले कार के माध्यम से कोलकाता से गोमो गए। वहां ट्रेन से पेशावर रवाना हो गए। फिर पेशावर से काबुल होते हुए नेताजी जर्मनी गए जहां उन्होंने अडॉल्फ हिटलर से मुलाकात की।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े तमाम दस्तावेजों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि जिन दिनों में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया था, तब नेताजी ने भेष बदल कर भागने की योजना तैयार की थी। इस पूरी रणनीति का नाम दिया गया महानिष्क्रमण यात्रा। इसकी योजना बनाई थी उनके मित्र सत्यव्रत बनर्जी ने।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस कई मामलों में महात्मा गांधी की बातों और विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते थे। वह मानते थे कि हिंसक प्रयास के बिना भारत को आजादी नहीं मिलेगी। अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए मजबूत क्रांति की जरूरत है।
ऐसा माना जाता है कि 1945 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु एक प्लेन दुर्घटना में हुई थी। इससे देश की आजादी की उम्मीद लगाए लोगों को बहुत बड़ा सदमा लगा था। पर आज भी लोग नेताजी की बहादुरी के किस्से बहुत चाव से सुनते हैं। उनकी वीरता के बारे में लोग कई बातें करते हैं। खासकर युवाओं के लिए नेताजी बहुत बड़े प्रेरणास्रोत हैं। हर भारतीय बच्चे को उनको और भारत की स्वतंत्रता के लिये किये गये उनके कार्यों के बारे में जरुर जानना चाहिये।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जिस आजाद हिंद फौज का गठन किया था, पहले इस फौज में वे लोग आए जो जापान की ओर से बंदी बनाए गए थे। फिर धीरे धीरे बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी शामिल हुए।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित आजाद हिंद फौज के सैनिकों ने पहली बार 19 मार्च 1944 के दिन झंडा फहराया था। राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले लोगों में कर्नल शौकत मलिक, कुछ मणिपुरी और आजाद हिंद के लोग शामिल थे।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए एक अलग सेना ही तैयार कर ली थी। उसका नाम था आजाद हिंद फौज। बताया जाता है कि इस फौज का गठन करने में जापान ने उस दौर में काफी मदद की थी। एक अनुमान के मुताबिक, आजाद हिंद फौज में करीब 85000 सैनिक थे जिनमें महिलाएं और पुरुष दोनों थे।
ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।
हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो, हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक हो, फिर भी हमें आगे बढ़ना ही है। सफलता का दिन दूर हो सकता है, पर उसका आना अनिवार्य है।
माँ का प्यार स्वार्थ रहित और सबसे गहरा होता है। इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता।
साल 1921 में बोस महात्मा गांधी से मिले उसके उपरांत ही उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने का फैसला किया। देशसेवा के साथ ही सुभाष सामाजिक कार्यों में भी आगे रहते थे। 1922 में कोलकाता में आई भयानक बाढ़ से पीड़ित लोगों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने से लेकर उनके खाने- पीने की व्यवस्था तक, सब में नेताजी ने मदद की थी। इसके अलावा उन्होंने युवाओं के एक समूह का भी गठन किया था जिसका उद्देश्य समाज की सेवा करना था।
नेताजी ने अपनी खुद की भारतीय राष्ट्रीय शक्तिशाली पार्टी 'आजाद हिन्द फौज' का गठन गांधी जी से मनमुटाव होने के बाद किया। कहा जाता है कि कांग्रेस ज्वॉइन करने के बाद उनका और गांधी जी वैचैरिक मतभेद हमेशा बना रहा। लेकिन दोनों का मकसद सिर्फ एक था, भारत को आजाद करवाना। बोस को कई बार जेल जाना पड़ा लेकिन इससे न तो वो निराश हुए और न ही हताश। वो कुछ समय के लिए जर्मनी भी गए और वहां रहने वाले भारतीयों और कुछ भारतीय युद्धबंदियों की मदद से भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन किया। हिटलर से निराश होने के बाद वो जापान गए और अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना को दिल्ली चलो का एक प्रसिद्ध नारा दिया।
कुशाग्र बुद्धि के धनी सुभाष चंद्र बोस ने पिता की मर्जी के अनुसार आईसीएस की परीक्षा दी और उसमें सफलता प्राप्त की। हालांकि, अंग्रेजों के अधीन काम करना उन्हें कतई मंजूर नहीं था जिस वजह से सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दे दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- 'जब तुमने देशसेवा का प्रण ले ही लिया है, तो कभी इस रास्ते से कदम पीछे मत हटाना।'
23 जनवरी 1897 में जन्में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का निधन 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते वक्त ताइवान के पास एक हवाई दुर्घटना में हुआ था ऐसा बताया जाता है। लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया, जिसके कारण आज भी उनकी मौत पर विवाद बना हुआ है और ये एक रहस्य बनी हुई हैं।
नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने मोहन सिंह द्वारा गठित की गई आजाद हिंद फौज की कमान अपने हाथों में ले ली और उसका पुनर्गठन किया। नेता जी के इस संगठन के प्रारंभ में झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। इसके अलावा 4 जुलाई 1944 को नेता जी अपनी फौज के साथ बर्मा पहुंच गए और वहीं उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा दिया। ''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा''
नेता जी सुभाष चंद्र बोस की प्रारंभिक पढ़ाई कटक में हुई थी। उसके बाद उन्होंने कोलकाता के प्रेजिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इंडियन सिविल सर्विसेस की तैयारी के लिये उनके माता पिता ने उन्हें इंग्लैंड भेज दिया था। उस वक्त जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था उस वक्त किसी भी भारतीया का सिविल सर्विसेस के लिये जाना बहुत कठिन था। लेकिन फिर भी नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सर्विसेस में चौथा स्थान प्राप्त किया।
देश के युवाओं में कम ही लोग इस बारे में जानते होंगे कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने सन् 1937 में अपनी सेक्रेटरी और आस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की थी। उन दोनों की एक अनीता नाम की बेटी भी है। जो जर्मनी में सपरिवार रह कर अपना जीवन यापन करती है।
5 जुलाई 1943 को 'आजाद हिन्द फौज' का विधिवत गठन हुआ। 21 अक्टूबर 1943 को एशिया के विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीयों का सम्मेलन कर उसमें अस्थायी स्वतंत्र भारत सरकार की स्थापना कर नेताजी ने आजादी प्राप्त करने के संकल्प को साकार किया।
सुभाष चंद्र बोस ने जब अंग्रेजों की नौकरी को ठुकराकर देश सेवा का प्रण लिया तो उस समय उनके पिता ने भी उनके फैसले का सम्मान किया। उन्होंने कहा कि- 'जब तुमने देशसेवा का प्रण ले ही लिया है, तो कभी अपने कदमों को डगमगाने मत देना।'
सुभाष के पिता का नाम जानकीनाथ और माता का प्रभावतीदेवी था। इनके पिता कटक के मशहूर वकीलों में से एक थे। पिताजी की इच्छा थी कि सुभाष बड़े होकर आईएएस बनें। उनकी इच्छा को देखते हुए उन्होंने इस परीक्षा में सफलता भी हासिल कर ली लेकिन बचपन से ही अंग्रेजों से बैर रखने वाले सुभाष को उनके अंदर काम करना मंजूर नहीं था। इसलिए इस्तीफा देकर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनना उचित समझा।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस का दिया हुआ नारा, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' विश्व प्रसिद्ध है। आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बोस की बातें आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। अपने जोशीले नारों से देशवासियों में उत्साह भरने वाले जननायक सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक शहर में हुआ था।
मान्यता है कि 16 अगस्त 1945 को एक हवाई यात्रा पर निकले नेताजी का विमान ताइहोकु हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और आजाद भारत का स्वप्न देखने वाले नेताजी कभी न उठने वाली नींद के आगोश में समा गए। हालांकि उनकी मौत को लेकर इस तथ्य की किसी भी तरह से अब तक पुष्टि नहीं हुई है। पूरी दुनिया में उनकी मौत आज भी एक रहस्य है।
नेताजी एक ओजस्वी वक्ता थे। अपने हर भाषण में वो देशप्रेम और देश के नौजवानों को अवश्य शामिल करते थे। 12 सितंबर 1944 को रंगून के जुबली हॉल में शहीद यतीन्द्र दास के स्मृति दिवस पर नेताजी ने अत्यंत मार्मिक भाषण देते हुए कहा- 'अब हमारी आजादी निश्चित है, परंतु आजादी बलिदान मांगती है। आप मुझे खून दो, मैं आपको आजादी दूंगा।' यही देश के नौजवानों में प्राण फूंकने वाला वाक्य था, जो भारत ही नहीं दुनिया के इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा गया।
साल 1921 में बोस महात्मा गांधी से मिले उसके उपरांत ही उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने का फैसला किया। देशसेवा के साथ ही सुभाष सामाजिक कार्यों में भी आगे रहते थे। 1922 में कोलकाता में आई भयानक बाढ़ से पीड़ित लोगों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने से लेकर उनके खाने- पीने की व्यवस्था तक, सब में नेताजी ने मदद की थी। इसके अलावा उन्होंने युवाओं के एक समूह का भी गठन किया था जिसका उद्देश्य समाज की सेवा करना था।
कुशाग्र बुद्धि के धनी सुभाष चंद्र बोस ने पिता की मर्जी के अनुसार आईसीएस की परीक्षा दी और उसमें सफलता प्राप्त की। हालांकि, अंग्रेजों के अधीन काम करना उन्हें कतई मंजूर नहीं था जिस वजह से सुभाष ने आईसीएस से इस्तीफा दे दिया। इस बात पर उनके पिता ने उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- 'जब तुमने देशसेवा का प्रण ले ही लिया है, तो कभी इस रास्ते से कदम पीछे मत हटाना।'
नमस्कार,
आज जिस आजाद फिजा में हम सांस ले रहे हैं उसके पीछे कई सेनानियों ने अपने रक्त बहाए हैं। न जान कितने दिन और महीने जेल में गुजारने के बाद उन लोगों ने यह आजादी हासिल की। इन्हीं शूरवीरों में एक नाम सुभाषचंद्र बोस का भी था। 23 जनवरी 1897 का दिन भारतीय इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण है। इसी दिन उड़ीसा के कटक शहर में स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाषचंद्र बोस का जन्म के प्रसिद्ध हुआ था। वकील जानकीनाथ तथा प्रभावतीदेवी के पुत्र सुभाष बचपन से ही देशप्रेम की भावना से भरे थे।