National Sports Day 2020: सन् 1905 में आज यानी 29 अगस्त को ही हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान सिंह का जन्म हुआ था। उनके सम्मान में ही इस दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। किसी भी खिलाड़ी की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि उसके साथ जीवन से कितनी कहानियां और किस्से जुड़े हुए हैं। मेजर ध्यानचंद के बारे में अनगिनत बातें हैं जो खूब याद की जाती हैं। हिटलर के प्रलोभन को नकारने वाले ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को कई मैच में चुंबक लगाए जाने की आशंका पर तोड़कर देखा जाता था। आइए जानते हैं –

हॉकी स्टिक से चिपकी रहती थी गेंद: ध्यानचंद का जन्म तो इलाहाबाद मे हुआ था लेकिन पूरा बचपन और जीवन झाँसी में बीता था। उनके पिता समेश्वर सिंह के ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार होने के कारण उनका तबादला होता रहता था जिसके बाद झाँसी में आकर वे बसे। उनके पिता भी हॉकी खेलते थे, ध्यानचंद को हॉकी की आदत उन्हीं से लगी।

झाँसी से ही उनकी हॉकी की शुरुआत हुई। वे घर के पास की रेल की पटरियों पर बॉल से खेलते थे और गेंद को रेल की पटरी से नीचे नहीं गिरने देते थे। रेल की पटरी पर की गई प्रैक्टिस के कारण बॉल हमेशा उनकी हॉकी से चिपकी रहती थी। इसी वजह से कई अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में उनकी हॉकी को तोड़कर तक देखा गया कि कहीं हॉकी स्टिक मे कोई चुम्बक तो नहीं लगी है।

दद्दा कहने लगे लोग: हॉकी के जादूगर के नाम से लोग उन्हें पहचानते हैं जबकि उनका असली नाम ध्यान सिंह था। लेकिन खेल में उनकी प्रतिभा देखकर उनके नाम में चाँद जुड़ गया। लोग कहते थे कि आप एक चमकते चाँद की तरह हैं। साथ ही ध्यानचंद जिस क्षेत्र से आते हैं वह बुन्देलखण्ड क मध्यभाग माना जाता है। बुन्देलखण्ड में अपने से बड़ों को सम्मान और प्रेम से “दद्दा” कह कर पुकारते हैं। झाँसी में मेजर से ज्यादा उन्हें आज भी लोग “दद्दा ध्यानचंद” के नाम से ही पुकारते हैं।

भाई भी साथ खेल चुके हैं हॉकी: मेजर ध्यानचंद के साथ ही उनके बड़े भाई रूप सिंह भी हॉकी के बड़े खिलाड़ी रहे। ध्यानचंद के साथ उन्होंने भी बराबरी से ओलम्पिक में गोल दागे। यही नहीं, 1932 के ऑलम्पिक के बाद इन दोनों की जोड़ी को लोग हॉकी के जुड़वा भी कहने लगे। उनके बाद मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक ध्यानचंद भी हॉकी के जाने माने खिलाड़ी रहे हैं।