नाथूराम गोडसे का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में महात्मा गांधी की हत्या कौंध जाती है। हालांकि एक वक्त ऐसा था जब गोडसे महात्मा गांधी को खासा पसंद करते थे और गांधी द्वारा ब्रिटिश शासन के विरोध की सराहना भी करते थे। इतना ही नहीं, गोडसे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कांग्रेस के जुलूसों और विरोध प्रदर्शनों में भी भाग लिया करते थे। लेकिन कुछ समय बाद उनके विचारों में परिवर्तन आना शुरू हो गया था। तमाम इतिहासकार कहते हैं कि उनकी विचारधारा में परिवर्तन वीडी सावरकर से हुई मुलाकात के बाद आना शुरू हुआ था।

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कैसे हुई थी सावरकर और गोडसे की मुलाकात? स्क्रॉल डॉट इन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे कहते हैं कि दोनों के बीच संबंध तब विकसित हुआ, जब वह 1929 में रत्नागिरी गए थे। गोपाल गोडसे ने इस बारे में बताया था, “अनजाने में ऐसा हुआ था कि जिस जगह पर हम रुके थे, वह वही स्थान था जहां सावरकर पहली बार रत्नागिरी आने पर रुके थे।”

गोपाल गोडसे ने इस बारे में आगे कहा, “लेकिन इसके बाद वह उसी गली की दूसरी छोर पर स्थित घर में शिफ्ट हो गए थे।” बताया जाता है कि जिस वक्त नाथूराम गोडसे और वीडी सावरकर की मुलाकात हुई थी, उस वक्त गोडसे की उम्र मात्र 19 वर्ष थी। रत्नागिरी में शिफ्ट होने के करीब तीन बाद पहली बार वह वीडी सावरकर से मिले थे। नाथूराम गोडसे, वीडी सावरकर के क्रांतिकारी कद से काफी प्रभावित थे। हालांकि उस वक्त भी गोडसे की राजनीतिक विचारधारा अस्पष्ट ही थी। इसके साथ ही सावरकर के अनुयायी बनने का उनका सफर भी ज्यादा सहज नहीं था। इस बात का जिक्र खुद नाथूराम गोडसे ने किया था।

वीडी सावरकर के बारे में बात करते हुए नाथूराम गोडसे ने कहा था, “वह (सावरकर) उस वक्त नाराज लग रहे थे, जब मैंने उन्हें गांधी के स्कूल और कॉलेज के बहिष्कार के आह्वान के जवाब में मैट्रिक परीक्षा दोबारा न देने के निर्णय के बारे में बताया। उन्होंने यह कहते हुए मुझे मनाने की कोशिश की कि मेरा पढ़ाई जारी रखना जरूरी है।” सावरकर के मनाने के बाद भी गोडसे अपने फैसले पर अड़े थे।

आजीवन किया ब्रह्मचर्य का पालन: आपको बता दें कि नाथूराम गोडसे ने 28 साल की उम्र में ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था और आजीवन उसका पालन किया। गोडसे ने आजादी के तुरंत बाद एक नवंबर 1947 को ‘हिंदू राष्ट्र’ नाम के अखबार की शुरुआत की थी। चर्चित इतिहास का डोमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट’ में लिखते हैं कि इसी अखबार के उद्घाटन कार्यक्रम में गोडसे ने बंटवारे का सारा ठीकरा महात्मा गांधी के सिर फोड़ दिया था।

जासूसी किताब-फिल्मों का शौक: नाथूराम गोडसे को जासूसी उपन्यास पढ़ने का भी खासा शौक था। खासकर लैरी मेसन की जासूसी कथाएं। लॉपियर और कॉलिन्स के मुताबिक वह पूना के चर्चित कैपिटल सिनेमा में अक्सर जासूसी फिल्में देखते पाए जाते थे।