हर व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी खुद को हताश महसूस करता है, लेकिन यही हताशा कई बार कुंठा में बदल जाती है। दरअसल, कुंठा एक निराशाजनक और असंतोष की भावना है, जो तब पैदा होती है जब किसी व्यक्ति की अपेक्षाएं पूरी नहीं होती या लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाधा आती है।
अपने विचारों को अभिव्यक्त न कर पाने और संवादहीनता के कारण भी इस तरह की स्थिति पैदा हो सकती है। इससे न केवल व्यक्ति की मानसिक शांति भंग होती है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक संबंधों पर भी इसका असर पड़ सकता है। कई बार लगातार कुंठा के कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं।
विफलता कमजोरी नहीं
सफलता और विफलता जीवन के पहलू हैं। सफलता हासिल होने से खुशी, संतोष और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो जीने की राह को आसान बना देता है। वहीं, विफलता से भले ही निराशा का भाव पैदा होता है, लेकिन यह कमजोरी की निशानी नहीं है।
अक्सर हम विफलता को कमजोरी से जोड़कर देखते हैं, जिससे हताशा और फिर कुंठा का शिकार हो जाते हैं। ज्यादातर लोग जिंदगी के प्रति न्यूनतम दृष्टिकोण अपनाते हैं: जल्दी पैसा कमाना और सुख-सुविधाएं हासिल करना, न सोच में गहराई और न कोई प्रतिबद्धता। ऐसे में विफलता के बाद आगे की राह उन्हें पहाड़ की तरह मुश्किल नजर आने लगती है और यही कुंठा का कारण बन जाता है।
अभिव्यक्ति जरूरी
कई बार हमारे मन में विचार आते हैं, लेकिन हम उन्हें अभिव्यक्त नहीं कर पाते। ऐसा या तो आत्मविश्वास की कमी या फिर किसी भय के कारण होता है। इससे बचने के लिए सबसे पहले परिवार में खुला माहौल होना जरूरी है, ताकि हर सदस्य अपने विचारों और भावनाओं को दूसरों के साथ साझा कर सके।
हो सकता है कि परिवार के किसी सदस्य का विचार किसी बड़ी बाधा को दूर करने के लिए बेहतर सुझाव के तौर पर काम करे। साथ ही इससे उस व्यक्ति के भीतर वैचारिक द्वंद्व का भी अंत होगा और सोच में सकारात्मकता का भाव पैदा होगा, जिससे मन-मस्तिष्क में नई ऊर्जा का संचार होगा।
अतीत से प्रेरणा
अगर अतीत में हुई अप्रिय घटनाओं को बार-बार याद किया जाए तो उससे भी मन में निराशा बैठ जाती है। इसलिए अतीत में जो कुछ हुआ उससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने से ही जीवन की राहें आसान होती हैं। खुद को यह एहसास दिलाना जरूरी है कि जीवन वर्तमान से ही परिभाषित होता है, अतीत या भविष्य से नहीं। किसी व्यक्ति को अतीत के दायरे से बाहर निकालने के लिए परिवार, रिश्तेदार या दोस्तों की भूमिका भी अहम होती है।
संबंधित व्यक्ति के आसपास ऐसा माहौल बनाने की आवश्यकता होती है कि अतीत की कड़वी यादें उसके लिए सिर्फ प्रेरणास्रोत बनकर रह जाए। उसे ऐसी गतिविधियों में शामिल करें, जो खुशी देती हों।
चिंताओं को साझा कर उनके निराकरण का प्रयास करें। लगातार प्रयासों से किसी भी अवरोध या बाधा को पार करके लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। सकारात्मक सोच से निराशा को उम्मीद की नई किरण में बदला जा सकता है, जिससे कुंठा स्वत: ही खत्म हो जाती है।
