हमारे समाज में यह धारणा बनी हुई है कि समय और उम्र के साथ हर व्यक्ति परिपक्व हो जाता है। सही है कि बढ़ती उम्र के साथ-साथ जीवन में पेश आने वाली चुनौतियों और अनुभवों से व्यक्ति सीखता है और उसके व्यवहार में स्थिरता एवं संतुलन का तत्त्व भी शामिल हो जाता है। मगर हर उम्रदराज व्यक्ति में परिपक्वता के सभी गुण हों, यह जरूरी नहीं।

परिपक्वता वह नहीं, जब हम बड़ी-बड़ी बातें करने लगें, बल्कि ये वह स्थिति है जब हमारे भीतर छोटी-छोटी बातों को समझने की समझ विकसित हो जाए। उचित और अनुचित के बीच अंतर को जब हम ठीक से परिभाषित कर सकें और अपने कर्त्तव्यों और जिम्मेदारियों का सही तरीके से निर्वाहन कर सकें।

क्या है परिपक्वता का मतलब?

दरअसल, परिपक्वता का मतलब है किसी व्यक्ति का शारीरिक, भावनात्मक और मानिसक रूप से पूरी तरह विकसित होना। यह एक निरंतर प्रक्रिया है, जो जन्म से शुरू होती है और मृत्यु तक जारी रहती है। परिपक्व व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहार पर नियंत्रण रख सकता है।

वह अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग होता है और उसके भीतर दुनियादारी को जानने-समझने का विवेक होता है। वह जीवन की चुनौतियों का धैर्य और हौसले से सामना करता है। परिपक्वता इस बात पर भी निर्भर करती है कि किसी व्यक्ति की सोच कैसी है और वह किस तरह से कार्य करता है।

उम्र नहीं होता है कोई पैमाना

परिपक्वता के लिए उम्र कोई पैमाना नहीं है। कुछ लोग कम उम्र में ही परिपक्वता की सीढ़ियां चढ़ लेते हैं, तो कोई ताउम्र यह गुण हासिल नहीं कर पाते हैं। परिपक्व लोग नए विचारों और अलग-अलग राय के लिए खुले मन वाले होते हैं। वे दूसरों की बातों को सुनते हैं, उन पर विचार करते हैं और फिर सधी प्रतिक्रिया देते हैं। वे अपने आसपास की दुनिया के बारे में जानने और समझने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

परिपक्व होने का एक पहलू यह भी है कि आप अपना ख्याल रख सकते हैं, अपने फैसले खुद ले सकते हैं और अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। परिपक्वता का मतलब है- चीजों को जैसी हैं, वैसी ही स्वीकार करना, न कि जैसी हम चाहते हैं वैसी हो। यानी सच्चाई को पहचान कर हालात और परिस्थितियों से निपटने के लिए खुद को तैयार करना। अपने व्यवहार में संतुलन और जीवन के विभिन्न पहलुओं में सामंजस्य कायम करना।

धैर्य का तत्त्व परिपक्वता का एक अहम हिस्सा है। किसी भी विकट स्थिति में विचलित न होना, हालात को खुद पर हावी न होने देना और अनुकूल परिस्थितियों का इंतजार, ये सभी परिपक्वता के अंश हैं।

बदलाव के लिए रहें तैयार

परिपक्वता के लिए स्वभाव और व्यवहार में लचीलापन जरूरी है, ताकि नई परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाला जा सके और किसी एक ही तरह की सोच या काम में न उलझे रहें। बदलाव के लिए हमेशा तैयार रहना और जरूरत पड़ने पर बदले हुए हालात के मुताबिक कार्य करना परिपक्वता का ही लक्षण है।

परिपक्व लोग वर्तमान का बेहतर तरीके से सदुपयोग करने के साथ-साथ भविष्य को लेकर भी सतर्क एवं सजग रहते है। वे ऐसे समझदारी भरे फैसले लेने में सक्षम होते हैं, जो उनके लिए आज ही नहीं, बल्कि कल भी फायदेमंद हों। परिपक्व होने का मतलब अपने और दूसरों के लिए यथार्थवादी लक्ष्य और अपेक्षाएं निर्धारित करना भी है।

निजी जीवन में भी परिपक्वता रिश्तों और व्यक्तिगत विकास को गहराई से प्रभावित करती है। इसमें स्वयं को और दूसरों को समझना शामिल है, जिससे मजबूत और विश्वसनीय संबंधों की नींव तैयार होती है। जीवन की चुनौतियों का संतुलन और शालीनता से सामना करना, अपने अनुभवों से निरंतर सीखते रहना, दूसरों की भावनाओं को समझना और बेहतर परिवार एवं समाज की परिकल्पना, यह सब परिपक्वता का ही हिस्सा है।

दूसरों से न करें तुलना

कोई भी व्यक्ति सर्वगुण संपन्न नहीं हो सकता, उसमें कोई न कोई कमी होती है। हम जीवन भर पूर्णता की चाहत रखते हैं। हमारे भीतर यह चाहत खुद की दूसरे से तुलना करने से पैदा होती है। यही भावना हमें हमेशा निराश और परेशान करती है। किसी दूसरे व्यक्ति की अच्छाई को अपनाना अच्छी बात है, लेकिन भौतिक चमक-दमक से प्रभावित होकर अपने भीतर उसी तरह की चाहत पैदा करना परिपक्वता नही है।

खुद के परिश्रम से जितना मिले, उसमें संतोष करना, और बेहतरी के लिए प्रयासरत रहना तथा चुनौतियों को अवसर में बदलना ही परिपक्वता की पहचान है। किसी बात या विचार को पकड़े रहना उसे छोड़ने से अधिक नुकसानदायक हो सकता है।

परिपक्व व्यक्ति परिस्थितियों का गहराई से विश्लेषण करने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचना बेहतर समझता है। वह इस बात पर भी गौर करता है कि शांत मन और धैर्य से दूसरों की बातों को सुनना-समझना सहज व्यवहार का एक अहम पहलू है। शब्दों की कद्र भी तभी होती है, जब वे किसी शांत एवं धैर्यवान व्यक्ति के मुंह से निकले हों।

क्या जरूरी है?

परिपक्व होने के लिए सर्वप्रथम आत्म-चिंतन की जरूरत है। अपनी शक्तियों, कमजोरियों और मूल्यों को समझने का विवेक विकसित करना जरूरी है। रचनात्मक आलोचना का खुले मन से स्वागत किया जाना चाहिए और उससे सकारात्मक संदर्भ को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए।

परिपक्वता व्यक्ति के स्वयं निर्णय लेने की क्षमता को भी दर्शाती है। स्पष्ट लक्ष्य तय करने से परिपक्व निर्णय लेने में मदद मिलती है। अपने कार्यों और उनके परिणामों की जिम्मेदारी लेने की प्रवृत्ति पैदा करना, दूसरों के दृष्टिकोण से समझने का प्रयास, बिना सोचे-समझे आवेगपूर्ण प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति को नियंत्रित करना और व्यवहार में भावनात्मक एवं सरलता का अंश शामिल करना परिपक्वता के मार्ग पर ले जाता है।