Maharana Pratap Jayanti 2020: देश के वीर सपूत, महान योद्धा और अदम्य साहस व शौर्य के प्रतीक महाराणा प्रताप का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1540 इस्वी में 9 मई को कुंभलगढ़ दुर्ग (पाली) में हुआ था। उनका जन्म महाराजा उदयसिंह एवं माता रानी जयवंताबाई के यहां हुआ था। 28 फरवरी, 1572 में राणा उदय सिंह ने देहांत से पहले अपनी सबसे छोटी पत्नी के पुत्र व अपने 9वें पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। हालांकि, उनके इस निर्णय से जनता प्रसन्न नहीं थी और उदय सिंह के अंतिम संस्कार के कुछ समय बाद ही महाराणा प्रताप को राजगद्दी पर बिठा दिया गया था। आज उनके जयंती के मौके पर आइए जानते हैं शूरवीर महाराणा प्रताप कैसे बनें मेवाड़ के राजा-
जगमाल ने गुस्से में छोड़ा मेवाड़: ‘बीबीसी’ की एक रिपोर्ट के अनुसार राणा उदय सिंह ने 20 से भी ज्यादा शादियां की थीं। सबसे बड़े पुत्र राणा प्रताप के अलावा उनके 25 पुत्र व 20 पुत्रियां थीं। मेवाड़ की ये प्रथा थी कि पिता के दाह संस्कार में सबसे बड़ा पुत्र शामिल न होकर राजमहल में ही रहता था ताकि दुश्मन की ओर से हमला होने पर वो उनका खात्मा कर सके। इसलिए उदय सिंह के अंतिम संस्कार में भी प्रताप मौजूद नहीं थे। इसके अलावा, राजकुमार जगमाल भी अंत्येष्टि स्थल पर मौजूद नहीं थे। इस पर प्रताप के मामा अखई राज और ग्वालियर के राम सिंह राजमहल पहुंचे तो वहां जगमाल के राज्याभिषेक की तैयारी चल रही थी। उन दोनों ने राज्याभिषेक को रोककर एक बावड़ी पर बैठे प्रताप को राणा बनने के लिए मनाया और वहीं पर उनका राज्याभिषेक किया गया। इससे क्रोधित होकर जगमाल ने मेवाड़ छोड़ दिया और अकबर की शरण में चला गया।
इस वजह से महाराणा प्रताप जमीन पर सोते थे: गद्दी संभालने के बाद महाराणा प्रताप ने ऐलान किया था कि चित्तौड़ पर जब तक वो दोबारा कब्जा नहीं कर लेते हैं तब तक वो पलंग की जगह जमीन पर घास पर सोएंगे। साथ ही साथ, वो भोजन के लिए सोने और चांदी की थाली का इस्तेमाल नहीं करेंगे। बता दें कि उनके राणा बनने से चार साल पहले ही 1568 में मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर मुगलों ने कब्जा कर लिया था। गद्दी संभालते ही राणा प्रताप ने मुगलों से युद्ध की तैयारी शुरू कर दी। उन्होंने खड़ी फसल को नष्ट करने का आदेश दे दिया ताकि अकबर के सैनिकों को अपने लिए खाना जुटाने में संघर्ष करना पड़े। इसके साथ ही चित्तौड़ से उदयपुर के बीच पड़ने वाले सारे कुओं में कूड़ा फेंक दिया गया जिससे मुगल सैनिकों को पानी के लिए भी तरसना पड़े।
महाराणा प्रताप की मौत के बाद दुश्मन के आंखों से भी निकले थे आंसू: महाराणा प्रताप और अकबर के बीच की दुश्मनी के चर्चे बहुत ही प्रसिद्ध हैं। 1596 में शिकार खेलने के समय लगी चोट की वजह से 2 साल बाद 19 जनवरी, 1598 में केवल 57 वर्ष की आयु में प्रताप का देहांत हो गया। खबर के अनुसार जब इस बात की जानकारी अकबर के दरबार में दी गई तब राजस्थान के मशहूर कवि दुरसा आढ़ा भी वहीं मौजूद थे। महाराणा प्रताप की मौत के बाद उन्होंने कहा था कि तुमने कभी भी अपने दुश्मनों के सामने हार नहीं मानी। तुम स्वयं कभी भी बादशाह अकबर से मिलने नहीं आए और न ही कभी अपने घोड़े पर शाही मोहर लगने दिये। आज तुम्हारी मौत की सूचना पाकर बादशाह अकबर की आंखें भी नम हो चुकी हैं।