यदि आपको चूहों की फौज देखनी हो तो राजस्थान के करणी माता मंदिर जाइए। यहां पहुँच आपको अचरज तो होगा ही साथ ही कौतुहल भी। कलकत्ता के गवर्नर हॉउस के सामने मैदान में भी काफी तादाद में हमने चूहों का झुंड देखा है। मगर करणी माता मंदिर के चूहे यहां की आस्था का प्रतीक हैं। दिलचस्प बात कि माता को चढ़ाया प्रसाद पहले चूहे ही खाते हैं। तब उसे श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया जाता है। मसलन चूहों का जूठा प्रसाद ही वहां जाने वाला दर्शक बड़ी श्रद्धा से ग्रहण करता है। हमने भी राजस्थान की जनवरी में यात्रा की और प्रसाद पाया।
करणी माता मंदिर बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक गांव में है। जहां हजारों चूहे मंदिर परिसर में धमाचौकड़ी करते दिख जाएंगे। और तो और बेख़ौफ। आपको ही संभल-संभल कर अपने पांव जमीन पर रखने होंगे। कहीं पांव के नीचे कोई चूहा दब न जाए। बड़ा अपशगुन मना जाता है।
यदि आपके घर में आपको एक भी चूहा नजर आ जाए तो आप बेचैन हो जाते है। और तमाम तरह की तरकीब चूहा भगाने या पकड़ने के लिए लगाते हैं। यह मानव स्वभाव भी है और प्लेग जैसी खतरनाक बीमारी होने का डर भी। करीब एक दशक पहले गुजरात के सूरत शहर में यह रोग बड़ा घातक तरीके से फैला था। दर्जनों जानें गई थीं। मगर करणी माता मंदिर में चूहों के जमघट के बावजूद न बदबू है और न किसी रोग का खतरा। वहां के गोविन्दजी बताते हैं कि मंदिर में तकरीबन 20 हजार काले चूहे हैं। कुछ सफेद भी है। सफेद चूहे सब को नजर नहीं आते। जिसको दिख गया उसकी बस पौबारह है। ऐसी मान्यता है। मसलन आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। सच में मुझे तो दो सफेद चूहे दिखे। पता नहीं आगे क्या होगा। हाँ यह तय है कि मेरी और मेरे परिजनों की यात्रा सुखमय रही।

करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी हैं। बताते हैं कि इनके ही आशीर्वाद से बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना हुई थी। करणी माता मंदिर का निर्माण बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने बीसवीं सदी के शुरुआत में कराया था। माता के मंदिर और चूहों को इकट्ठे झुंड में प्रसाद खाते देखने के अलावे वहां की आबोहवा, आसपास तरीके से बसा बाजार और म्यूजियम आकर्षण का केंद्र हैं।

सबसे दिलचस्प बात ये है कि सुबह 5 बजे मंगला आरती और शाम 7 बजे संध्या आरती के वक्त मंदिर के तमाम चूहे माता के मंडप के आसपास जमा हो जाते हैं। इन चूहों की चील-कौवों से हिफाजत के लिए छोटी जालियां लगी हैं। विदेशी सैलानियों के लिए तो यह दृश्य अजूबे जैसा होता है। एलिन और अलेक्जेण्डर सरीखे एक दर्जन विदेशी सैलानी अपने कैमरे में इन चूहों के धमाल को कैद करने में मशगूल दिखे।करणी माता मंदिर में रहने वाले चूहों को माता की संतान माना जाता है।
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मान्यता है कि देशनोक के चारण जाति के लोगों का मृत्यु के बाद चूहे के रूप में पुनर्जन्म होता है फिर वो माता के मंदिर में ही आ जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि करणी माता को यमराज ने वरदान दिया था। अपनी-अपनी राय अपनी-अपनी मान्यता। पर करणी माता के मंदिर को चूहों का मंदिर अंग्रेजी में आजकल के बच्चे रैट टेंपल भी बोलते है। राजस्थान जाने वाला हरेक सैलानी की कोशिश होती है कि देशनोक जाकर करणी माता का दर्शन करे।