Kabir Das Ke Dohe: संत कबीर दास भक्ति काल के प्रमुख कवियों में से एक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को सुधारने का काम किया। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति और साहित्य में बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में फैली बुराइयों को भी कम किया। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से लोगों के बीच पहुंचे और लोगों में भक्ति का बीज बोया। कबीर दास के दोहे आज भी जीवन में सही राह दिखाते हैं।
यहां पढ़ें कबीर दास के फेमस दोहे-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थः इस दोहे का अर्थ है कि जब मैं लोगों में बुराई को खोजने निकला, तो मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला और जब मैं अपने अंतरात्मा को देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है। यानी इस दोहे का मतलब यह है कि अगर आप दूसरे की बुराई को देखते हैं तो इसकी आदत तुरंत छोड़ दें और अपने भीतर झांकें और अपनी कमियों को सुधारें और बेहतर इंसान बनें।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थः इस दोहे का अर्थ है कि किसी साधु या व्यक्ति की जाति, धर्म, या बाहरी पहचान नहीं पुछना चाहिए, बल्कि उसके गुणों को ही महत्व देना चाहिए। यानी तलवार की वैल्यू उसकी धार से होती है न की उसकी खोल से। वैसे ही व्यक्ति की पहचान उसके विचारों, कर्मों, और चरित्र से होनी चाहिए।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थः कबीर दास इस दोहे में कहते हैं कि सिर्फ किताबों और ग्रंथों को पढ़ने से लोग विद्वान नहीं बने हैं। उनके मुताबिक, जो व्यक्ति दूसरों से प्रेम करता है और उसका मर्म समझता है वही सच्चा ज्ञानी और पंडित है। असली ज्ञान तो प्रेम के ढाई अक्षरों में ही छिपा है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
अर्थः इस दोहा में कबीर दास कहते हैं कि अगर कोई बड़ा भी हो जाए, लेकिन दूसरों को इसका लाभ न मिले तो वह व्यर्थ है। खजूर का पेड़ तो काफी ऊंचा होता है, लेकिन न तो किसी को छाया देता है और फल भी लगता है तो काफी दूर लगता है। ऐसे में इसकी उपयोगिता जीरो हो जाती है। यानी इसका मुख्य संदेश यह है कि किसी भी व्यक्ति की महानता यह है कि वह दूसरों के काम आए।
साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।
कबीर दास इस दोहे में ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु मुझे बस इतना ही दीजिए, जिसे मेरे परिवार की जीवनयापन आसानी से हो जाए। वह भगवान से इतना संपत्ति मांगते हैं कि वह कभी भी भूखे न रहें और उनके घर आने वाला कोई भी साधु भूखा न जाए। इस दोहे का मुख्य संदेश यह है कि जीवन में आवश्यकता के अनुसार ही धन की चेष्टा करें।
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