ग्वालियर और सिंधिया राजघराना एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। ढाई सौ से अधिक सालों से सिंधिया राज-परिवार ग्वालियर की संस्कृति, परंपरा और विरासत को संजोता-संवारता रहा है। एक वक्त ऐसा था जब मुहर्रम वाले महीने में सिंधिया परिवार ग्वालियर में कोई शादी-विवाह या शुभ कार्य नहीं करता था। चूंकि मुहर्रम मुस्लिम समुदाय के लिए ग़म का महीना होता है। ऐसे में सिंधिया राजघराना मुस्लिम समुदाय की भावनाओं का आदर करता था। अगर मुहर्रम वाले महीने में कोई शादी होती भी थी तो वो शहर से बाहर हुआ करती थी।

जरूरी हुआ तो 100 किलोमीटर दूर जाते थे: वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राशिद किदवई  ने अपनी किताब ‘द हाउस ऑफ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रिग’ में इस किस्से की विस्तार से चर्चा की है। बकौल किदवई, ‘सिंधिया परिवार में सभी धर्मों का आदर देखने को मिलता है। कभी राजघराने में मुस्लिम समुदाय की भावनाओं की बहुत कद्र की जाती थी।

‘द लल्लनटॉप’ से बातचीत में किदवई कहते हैं कि यदि सिंधिया परिवार के किसी शख़्स को मुहर्रम के महीने में शादी करनी पड़ती तो उसे ग्वालियर से बाहर 100 किलोमीटर जाना होता था, जिससे मुस्लिम समुदाय को कोई ठेस न पहुंचे। जबकि वहां मुस्लिम आबादी 6 प्रतिशत से भी कम थी।’

ऐसी हुई थी परंपरा की शुरुआत: राशिद किदवई बताते हैं, ‘इसकी शुरुआत हुई थी पानीपत की लड़ाई से। महादजी शिंदे पानीपत की लड़ाई में घायल हो गए थे। यहां एक अंजान आदमी ने उनकी मदद की थी। महादजी को घायल स्थित में वह बैलगाड़ी में डालकर डेक्कन तक ले गया था जो आज महाराष्ट्र का हिस्सा है। उसने अपने मानवीय दृष्टिकोण से भले ही ऐसा किया हो, लेकिन सिंधिया परिवार ने इसे इतना गंभीरता से लिया कि जीवनभर उसका एहसाननंद रहा।’

सिंधिया परिवार की तारीफ करते हुए राशिद किदवई कहते हैं, ‘सूफी संत मंसूर शाह ने भी कभी परिवार की मदद की थी। आज भी जब मुहर्रम या कोई कार्यक्रम होता है तो सिंधिया परिवार का मुखिया उसमें शिरकत करता है और कार्यक्रम का शुभारंभ करता है। सिंधिया परिवार ऐसा परिवार है जो सिर्फ दिखावे के लिए धर्मनिरपेक्षता का पाठ नहीं पढ़ाता था।’

 

परंपरा के साथ आधुनिकता की मेल: सिंधिया राजघराने ने संस्कृति और परंपरा को तो संवारा ही, समय के साथ-साथ आधुनिकता भी अपनाई। बकौल किदवई, माधो राव (माधो महाराज) को एक तरीके से सिंधिया राजघराने का पहला मॉडर्न महाराजा कहा जा सकता है। माधो राव को साल 1886 में गद्दी मिली थी।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज से एलएलडी की पढ़ाई करने वाले माधो महाराज ने सेना के आधुनिकीकरण पर खासा जोर दिया था। उन्हें कारों का भी शौक था। लंदन में पढ़ाई के दौरान एक से बढ़कर एक शानदार कारें देखकर वह काफी प्रभावित हुए थे। वापसी के समय अपने साथ सिंगल सिलेंडर वाली 6 एचपी डी-डायन कार ले भी आए थे।