ज्योतिरादित्य सिंधिया ने साल 2020 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का हाथ थामा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया परिवार के पहले सदस्य नहीं हैं जिन्होंने बीजेपी के साथ राजनीति में आगे कदम बढ़ाने का फैसला किया है। ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता विजयराजे सिंधिया तो बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में शामिल थीं। विजयराजे सिंधिया ने भले ही कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव लड़ा हो, लेकिन बाद में पार्टी के तल्खियां बढ़ने के बाद उन्होंने जनसंघ (अब बीजेपी) का हाथ थाम लिया था।

विजयराजे सिंधिया ने जनसंघ के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए अपने गहने तक बेच दिए थे। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राशिद किदवई अपनी किताब ‘द हाउस ऑफ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रिग’ में इसका विस्तार से जिक्र किया है। किदवई लिखते हैं, ‘विजयराजे सिंधिया के ससुर माधो राव सिंधिया ने बंबई में 20 एकड़ सी-फेसिंग प्रोपर्टी खरीदी थी। इसे उन्होंने समुद्र महल का नाम दिया था। 2010 के आंकड़ों के मुताबिक, इस प्रोपर्टी पर बने हर फ्लैट की कीमत 100 करोड़ रुपए थी।’

बंबई वाले महल बेचना नहीं चाहते थे: माधो महाराज को ये प्रोपर्टी बेहद पसंद थी और उनके पास इसका मालिकाना हक भी थी तो उन्होंने सिंधिया वंश के सभी लोगों को 8 अप्रैल 1925 को आदेश दिया था कि इस प्रोपर्टी को कभी भी न बेचा जाए। ये एक लग्जरी प्रोपर्टी थी और उस दौरान बंबई में ये अकेला समुद्र महल पैलेस था। ज्योतिरादित्य के दादा जीवाजी राव ने भी अपने पिता के आदेश का पालन किया। जबकि जीवाजी राव के निधन के कुछ ही सालों बाद उनकी पत्नी विजयराजे ने ये प्रोपर्टी बेच दी।

कीमती गहने तक बेच दिए थे: माधव राव सिंधिया की जीवनी लिखने वाले पत्रकार वीर सांघवी और नमिता भंडारे के हवाले से किदवई आगे लिखते हैं, 1960 और 1970 के दौरान जनसंघ के लिए फंड इकट्ठा करने वालों में विजयराजे सिंधिया मुख्य थीं। विजयराजे ने पार्टी के लिए काफी फंड इकट्ठा कर लिया था, लेकिन आगे कोई रास्ता नज़र नहीं आने के बाद उन्होंने सिंधिया परिवार के कीमती गहने तक बेच दिए थे। क्योंकि पार्टी को चलाने के लिए काफी फंड की जरूरत थी।

उद्योगपतियों को ग्वालियर लाए: राशी किदवई लिखते हैं, जीवाजी राव का शासन अपने पिता की तरह बिल्कुल नहीं था। जीवाजी ने कई आंदोलन देखे और उन्हें घुड़सवारी का बेहद शौंक था। उन्होंने कई उलझे हुए मामले अपने दीवान और सरदारों पर छोड़ दिए थे। वह अपना शौंक पर ही ज्यादातर समय देते थे। इसके अलावा उन्होंने अपने उद्योगपति दोस्तों को भी ग्वालियर में निवेश करने के लिए प्रेरित किया था। जीवाजी राव के एक दोस्त सेठ घनश्याम दास बिरला भी थे। यहां तक कि उनकी रेयोन और सिल्क की मिल के नाम ‘जयाजी’ है जो जीवाजी के नाम पर ही रखे गए थे।