आजादी के वक्त भारत 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा था। इन रियासतों के राजा, रजवाड़ों, निजाम और महाराजाओं के शौक से लेकर मिजाज तक निराले थे। उस वक्त ग्वालियर का सिंधिया राजघराना सबसे बड़ी रियासतों में से एक था। सिंधिया परिवार तमाम चीजों के अलावा अपनी मेहमाननवाजी के लिए भी जाना जाता था। शाही दावतों में तमाम लजीज व्यंजन तो परोसे ही जाते थे, लेकिन मेहमानों की नजर चांदी की उस रेलगाड़ी पर टिकी रहती थी जिसके जरिए खाना उन तक पहुंचता था।
दरअसल, ग्वालियर के महाराजा ने अपने लिए एक खास रेलगाड़ी तैयार कराई थी। चांदी की यह रेलगाड़ी एक मेज पर 250 फिट लंबी पटरी पर चला करती थी। यह मेज उस हाल में रखा गया था जहां महाराजा अक्सर दावत देते थे। चर्चित लेखक और इतिहासकार डॉमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ‘फ्रीडम ऐट मिड नाइट’ में लिखते हैं कि ग्वालियर के महाराजा बिजली की रेलगाड़ियों के तमाशबीन थे। उनके पास एक ऐसी रेलगाड़ी थी, जिसकी कल्पना कोई खिलौनों का शौकीन लड़का भी नहीं कर सकता था।
महाराज खुद करते थे कंट्रोल: खाना परोसने वाली इस रेलगाड़ी को कंट्रोल करने के लिए एक बोर्ड लगाया गया था, जिसमें तरह-तरह के बटन लगे थे। इन बटन को दबाकर दस्तरख्वान पर बैठे किसी भी मेहमान तक कोई व्यंजन झटपट पहुंचाया जा सकता था। अक्सर महाराजा खुद इसे कंट्रोल किया करते थे।
वायसराय के सामने हो गए थे शर्मिंदा: हालांकि इस रेलगाड़ी के चलते महाराजा को एक बार शर्मिंदा भी होना पड़ा था। दरअसल, महाराजा ने वायसराय के लिए बड़ी धूमधाम से भोज का आयोजन किया गया था। उस शाम सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था। अचानक उस रेलगाड़ी के तार एक-दूसरे से उलझ गए और कंट्रोल नहीं रहा। रेलगाड़ी पर रखा व्यंजन मेहमानों के कपड़ों पर गिरता रहा। किसी मेहमान के कपड़े पर शोरबा गिरा तो किसी के उपर भुना हुआ गोश्त। वायसराय के सामने हुई इस घटना से महाराजा बहुत शर्मिंदा हो गए थे।
भरतपुर के महाराजा की शानो-शौकत थी खास: भरतपुर के महाराजा भी उस वक्त अपनी शानो-शौकत के लिए जाने जाते थे। उनकी कार उस वक्त की सबसे आधुनिक कारों में से एक थी। महाराजा की इस रॉल्स रॉयस कार की बॉडी चांदी से बनी हुई थी और छत भी खुलने वाली थी। इस कार की कीमत और शान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महाराजा अपनी बिरादरी के दूसरे रजवाड़ों को ये कार शादी-व्याह जैसे खास मौकों पर उधार दिया करते थे।