गुड़ी पड़वा का त्योहार चैत्र के महीने में मनाया जाता है इसे मराठी नववर्ष के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन चैत्र के नवरात्रों की भी शुरुआत होती है। गुड़ी पड़वा को शिवाजी के जीत के रूप में भी मनाया जाता है। महाराष्ट्र के लोगों के लिए इस त्योहार का अपना ही महत्व है। इस दिन लोग सुबह उठकर अपने शरीर पर बेसन और तेल का उबटन लगाकर स्नान करते हैं और नए वस्त्र धारण कर भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। महाराष्ट्र में लोग इस दिन पर नए चीजें, नए आभूषण और घर खरीदने के लिए बेहद ही शुभ मानते हैं। महाराष्ट्र में लोग इस अवसर पर अपने घरों में गुड़ी की स्थापना करते हैं। गुड़ी एक बांस का डंडा होता है जिसे हरे या पीले रंग के कपड़े से सजाया जाता है। इस कपड़े को बांस के डंडे पर सबसे ऊपर बांधा जाता है।

इसके अलावा माला, इस पर नीम और आम के पत्तें भी बांधें जाते हैं। सबसे ऊपर तांबे या चांदी का लोटा रखा जाता है। पारंपरिक रूप से गुड़ी पड़वा को जीत और आध्यामिक समृद्धि का प्रतीक है। माना जाता है कि गुड़ी पाड़वा के दिन विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने से आपको पूरे साल किसी भी चीज की कमी नहीं होती है। साथ ही घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है। अगर आप चाहते है कि आपका यह साल शांति और सुख-समृद्धि के साथ बीतें तो इस दिन इस तरह पूजा करें। जिससे हर देवी-देवता की कृपा आप पर बनी रहें।

गुड़ी को लोग भगवान बह्मा के झंडे के रूप में देखते हैं। इसकी स्थापना कर लोग भगवान विष्णु और बह्मा के मंत्रों का उच्चारण कर उनसे प्रार्थना करते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन सुबह उठकर बेसन और तेल का उबटन लगाकर स्नान करें। पूजा के लिए एक चौकी या वेदी बनाकर कर उस पर साफ सफेद रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल कमल बनाकर उस पर ब्रह्माजी की मूर्ति स्थापित करें।

इसके बाद गणेशाम्बिका की पूजा करें और फिर इस मंत्र का जाप करें। ऊं ब्रह्मणे नमः। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इस दिन ब्रह्मांड बनाया था और मानव सभ्यता की शुरुआत हुई थी। भगवान ब्रह्मा को याद करने के लिए गुड़ी (गुड़िया) ऊपर उठाते हैंऔर भगवान विष्णु से आशीर्वाद का आह्वान करते हैं।