एक छोटी-सी गलतफहमी भी मजबूत से मजबूत रिश्ते में दरार पैदा कर सकती है। इससे एक-दूसरे पर से भरोसा उठ जाता है और आसपास के लोगों को भी बातें बनाने का मौका मिल जाता है।
दरअसल, कई बार हम किसी बात को बिना पूरी तरह जाने-समझे ही दूसरे व्यक्ति के लिए अपने मन में कोई धारणा बना लेते हैं या सामने वाले की बात का गलत मतलब निकाल लेते हैं। कभी-कभी तो हम अपने विचार व्यक्त किए बिना ही यह मान लेते हैं कि सामने वाला हमारे मन की बात समझ गया होगा और जब ऐसा नहीं होता है, तो गलतफहमी पैदा हो जाती है।
गलतफहमी दूर करना है बहुत जरूरी
इसकी वजह से कई दफा मतभेद इस कदर बढ़ जाते हैं कि रिश्ते टूट भी जाते हैं। हालांकि, रिश्तों में गलतफहमी होना सामान्य बात है, क्योंकि हर इंसान का स्वभाव अलग होता है और हर किसी के सोचने का तरीका भी भिन्न होता है, लेकिन समय रहते गलतफहमी दूर करना बेहद जरूरी है।
क्यों होती है गलतफहमी?
कई बार हम अपने मन की बात को स्पष्ट तरीके से अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं, जिससे गलतफहमी पैदा होती है। इस स्थिति से बचने के लिए सबसे पहला और जरूरी कदम है खुलकर और स्पष्ट तरीके से अपनी बात रखना। जब लगे कि कोई बात परेशान कर रही है या हमने किसी बात का गलत मतलब निकाल लिया है, तो उसे मन में दबाकर न रखें। सीधे संबंधित व्यक्ति से बात करें और पूछें कि उसके कहने का मतलब क्या था।
ऐसा करके बिना वजह मन में कोई गलत धारणा बनाने से बचा जा सकता है। इस बात पर गौर करना जरूरी है कि किसी भी समस्या का हल बातचीत से निकाला जा सकता है। स्वस्थ बातचीत हर रिश्ते की नींव होती है। बेहतर तरीके से संवाद स्थापित करने से संबंधों में मजबूती बनी रहती है।
धैर्य की है जरूरत
धैर्य रखना और गलती का एहसास करने या कराने की प्रवृत्ति भी गलतफहमी को दूर करने में बहुत मददगार होती है। कई बार गलतफहमी तुरंत दूर नहीं होती, इसमें समय लग सकता है। ऐसे में संबंधित व्यक्ति से बार-बार बातचीत करने की कोशिश जारी रखनी चाहिए।
माफ करने से होते हैं रिश्ते बेहतर
अगर किसी ने हमें अनजाने में ठेस पहुंचाई है या कोई गलतफहमी पैदा की है, तो उसे भुलाकर रिश्ते में फिर से मिठास लाने का प्रयास करना चाहिए। इस बात को समझना महत्त्वपूर्ण है कि गलती किसी से भी हो सकती है। अगर हमसे कोई गलती हो जाए तो क्या हम दूसरे से माफी की उम्मीद नहीं करते हैं। माफ करने से न केवल रिश्ते पहले जैसे बेहतर हो जाते हैं, बल्कि इससे मानसिक शांति भी मिलती है।
दूसरों का नजरिया
कई बार हम अपनी ही सोच में इतने डूबे रहते हैं कि दूसरे व्यक्ति के नजरिए से सोचना भूल जाते हैं। इसका मतलब है खुद को दूसरे व्यक्ति की जगह रखकर देखना और यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि वह ऐसा क्यों कर रहा है या क्यों कह रहा है।
जब हम दूसरे के नजरिए से देखते हैं, तो स्थिति को ज्यादा निष्पक्षता से समझ पाते हैं और गलतफहमी के बढ़ने की संभावना भी कम हो जाती है। कभी-कभी हम अपने साथी से उम्मीद करते हैं कि वह हमारी बातों के पीछे छिपे असल मतलब को समझे, लेकिन इस सोच पर निर्भर रहना वास्तव में उचित नहीं है। इसके बजाय हमें अपने विचारों को सीधे तौर पर सामने रखने की कोशिश करनी चाहिए।
