होलिका दहन जिसे छोटी होली और होलिका दीपक के नाम से भी जाना जाता है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। होली का त्योहार बुराई रूपी होलिका की हार और अच्दाई रूपी प्रहलाद की जीत के रूप में मनाया जाता है। होली मनाने के पीछे एक कहानी भी है। कहा जाता है कि हिरण्याकश्यप नाम का राजा था, उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया था कि वह भगवान की जगह उसकी पूजा करें। लेकिन उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसने अपने पिता के इस आदेश को न मान कर भगवान के प्रति अपनी आस्था हमेशा बनाए रखी। एक दिन हिरण्याकश्यप ने अपने बेटे को सजा देने का फैसला किया। होलिका हिरण्याकश्यप की बहन थी अपने भाई की बात मनाते हुए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे वह अपने शरीर पर लपेट लेती थी तो आग उसे छू भी नहीं सकती थी।
वहीं आग में बैठने के दौरान प्रह्लाद भगवान विष्णु का स्मरण करता रहा। उसके बाद होलिका का वह कपड़ा उड़कर प्रह्लाद के उपर आ गया जिसकी वजह से उसकी जान बच गई और होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। तभी से होली के अवसर पर होलिका दहन की यह प्रथा चली आ रही है। होलिका दहन सूरज ढलने के बाद प्रदोष काल शुरू होने के बाद जब पूर्णमासी तिथि चल रही होती है तब किया जाता है। इस साल होलिका दहन 12 मार्च 2017 को शाम 6 बज कर 32 से 8 बजकर 50 मिनट तक किया जाएगा।
होलिका दहन का धार्मिक महत्व भी है लोग होली ही इस अग्नि में जौ को सेंकते हैं और उसे अपने घर लेकर जाते हैं। हालांकि हर जगह होलिका दहन का अलग—अलग मुहर्त होता है। ऐसा इसलिए होता है कि हर जगह चांद निकले का समय एक नहीं होता। इस दिन सूरज ढलने के बाद होलिका दहन किया जाता है। इस दिन महिलाएं एक लोटा जल, चावल, धूपबत्ती, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल और नारियल से होलिका का पूजन करती हैं। महिलाएं होलिका के चारों ओर कच्चे सूत को सात परिक्रमा करते हुए लपेटती हैं।
इसके बाद लोटे का शुद्ध पानी और अन्य पूजन की सभी चीजें एक-एक करके होलिका की पवित्र अग्नि में डालती हैं। कई जगहों पर महिलाएं होलिया दहन के मौके पर गाने भी गाती हैं। होलिका दहन के अगले दिन लोग रंगों से होली खेलते हैं। रंगों के इस त्योहार पर एक दूसरे को रंग लगाकर एक-दूसरे को इस त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं।

